कोरा कागज़ और कलम
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से
कुछ पुरानी यादें लिखने
जिसमें तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा
आज ये ठान कर बैठा हूँ
कलम कोरे पन्नें को भरना चाहती है
पर कोई ख्याल आता ही नही
शब्द जैसे खो गए है मानो
क्योंकि अगर मैं तुमको छोड़ता हूँ
तो शब्द मुझे छोड़ देते है
पता नहीं आज
उन एहसासो को
शब्दो में बांध नही पा रहा हूँ मैं
क्योंकि आज
ऐसा लग रहा है की मुझे
मेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है
शायद तुम जो साथ नहीं हो
और ये सब तुम्हारे प्यार का असर है
हाँ हाँ तुम्हारे प्यार का असर है
जो तुम बार बार आ जाती हो
मेरे ख्यालों में
तभी तो आज ठान का बैठा हूँ
कि तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा .......!!
- संजय भास्कऱ
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से
कुछ पुरानी यादें लिखने
जिसमें तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा
आज ये ठान कर बैठा हूँ
कलम कोरे पन्नें को भरना चाहती है
पर कोई ख्याल आता ही नही
शब्द जैसे खो गए है मानो
क्योंकि अगर मैं तुमको छोड़ता हूँ
तो शब्द मुझे छोड़ देते है
पता नहीं आज
उन एहसासो को
शब्दो में बांध नही पा रहा हूँ मैं
क्योंकि आज
ऐसा लग रहा है की मुझे
मेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है
शायद तुम जो साथ नहीं हो
और ये सब तुम्हारे प्यार का असर है
हाँ हाँ तुम्हारे प्यार का असर है
जो तुम बार बार आ जाती हो
मेरे ख्यालों में
तभी तो आज ठान का बैठा हूँ
कि तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा .......!!
- संजय भास्कऱ
बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-01-2022) को चर्चा मंच "कोहरे की अब दादागीरी" (चर्चा अंक-4314) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग पर मुझे स्थान देने के लिए आभार शास्त्री जी
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
पांच लिंकों का आनन्द में ब्लॉग पर मुझे स्थान देने के लिए आभार पम्मी जी
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत आपका ब्लॉग पर 🙏
हटाएंअरोड़ा जी
यादें न चाहते हुए भी हमें छोड़कर कभी नहीं जाती। विकल मन की मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय संजय। इतने दिन कहां रहे। फेसबुक पर तो दिखते हो। ब्लॉग को भी गुलज़ार रखा करो। हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार रेणु दी
हटाएंमेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है
जवाब देंहटाएंशायद तुम जो साथ नहीं हो।
वाह! शानदार। बहुत दिन बाद कुछ अच्छा पढ़ने को मिला।
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नितेश भाई
हटाएंपर नहीं लिख पाए...
जवाब देंहटाएंसुंदर एहसास लिए हृदय स्पर्शी रचना।
प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार 🙏
हटाएंकि तुमको छोड़ कर
जवाब देंहटाएंसब कुछ लिखूंगा .......!!
चाहा तो उसे छोड़ कर लिखने का
फिर भी उसी पर ही लिख गयें!
यादों के गलियारों से निकलना इतना आसान नहीं होता! लोग कह तो देते हैं जो बीत उसे पीछे छोड़ों और नई शुरुआत करो पर इतना आसान नहीं होता!
बहुत ही गहरे भावों को बयां करती हृदयस्पर्शी रचना
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार मनीषा जी!
हटाएंसब कुछ लिखने पर भी " तुम " कहाँ छूटा ?
जवाब देंहटाएंबेहतरीन 👌👌👌👌
आदरणीय संगीता जी प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार 🙏
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण पंक्तियां
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए आभार भारती दास जी!
हटाएंमन में उतरते गहरे अहसास । भावपूर्ण अभिव्यक्ति 👌👌
जवाब देंहटाएंकोरा कागज़ और कलम
जवाब देंहटाएंशीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से....
बेहतरीन और अप्रतिम लिखा है आपने...भावयुक्त कृति ।
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंस्वागत है संजय जी ... मन के गलियारों से निकले भाव कभी कलम के सहारे उतर आते हैं ...
अच्छा लगता है ...
ये सबकुछ ही तो 'तुम' है। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंछोड़ना संभव नहीं प्रेम में, उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंBahut sundar 👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंHealthy Food Care