18 जनवरी 2022

......तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा :)

 


















कोरा कागज़ और कलम                        
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से
कुछ पुरानी यादें लिखने
जिसमें तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा
आज ये ठान कर बैठा हूँ
कलम कोरे पन्नें को भरना चाहती है
पर कोई ख्याल आता ही नही
शब्द जैसे खो गए है मानो
क्योंकि अगर मैं तुमको छोड़ता हूँ
तो शब्द मुझे छोड़ देते है
पता नहीं आज
उन एहसासो को
शब्दो में बांध नही पा रहा हूँ मैं
क्योंकि आज
ऐसा लग रहा है की मुझे
मेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है
शायद तुम जो साथ नहीं हो 
और ये सब तुम्हारे प्यार का असर है
हाँ हाँ तुम्हारे प्यार का असर है
जो तुम बार बार आ जाती हो
मेरे ख्यालों में
तभी तो आज ठान का बैठा हूँ
कि तुमको छोड़ कर
सब कुछ लिखूंगा .......!!

- संजय भास्कऱ

27 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-01-2022) को चर्चा मंच     "कोहरे की अब दादागीरी"  (चर्चा अंक-4314)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'     

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    1. ब्लॉग पर मुझे स्थान देने के लिए आभार शास्त्री जी

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 19 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

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    1. पांच लिंकों का आनन्द में ब्लॉग पर मुझे स्थान देने के लिए आभार पम्मी जी

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  3. यादें न चाहते हुए भी हमें छोड़कर कभी नहीं जाती। विकल मन की मार्मिक अभिव्यक्ति प्रिय संजय। इतने दिन कहां रहे। फेसबुक पर तो दिखते हो। ब्लॉग को भी गुलज़ार रखा करो। हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार रेणु दी

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  4. मेरे सवालो के जवाब नही मिल रहे है
    शायद तुम जो साथ नहीं हो।
    वाह! शानदार। बहुत दिन बाद कुछ अच्छा पढ़ने को मिला।

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    1. सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नितेश भाई

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  5. पर नहीं लिख पाए...
    सुंदर एहसास लिए हृदय स्पर्शी रचना।

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    1. प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार 🙏

      हटाएं
  6. कि तुमको छोड़ कर
    सब कुछ लिखूंगा .......!!
    चाहा तो उसे छोड़ कर लिखने का
    फिर भी उसी पर ही लिख गयें!
    यादों के गलियारों से निकलना इतना आसान नहीं होता! लोग कह तो देते हैं जो बीत उसे पीछे छोड़ों और नई शुरुआत करो पर इतना आसान नहीं होता!
    बहुत ही गहरे भावों को बयां करती हृदयस्पर्शी रचना

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार मनीषा जी!

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  7. सब कुछ लिखने पर भी " तुम " कहाँ छूटा ?
    बेहतरीन 👌👌👌👌

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    1. आदरणीय संगीता जी प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार 🙏

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  8. बहुत सुंदर भावपूर्ण पंक्तियां

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    1. प्रतिक्रिया के लिए आभार भारती दास जी!

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  9. मन में उतरते गहरे अहसास । भावपूर्ण अभिव्यक्ति 👌👌

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  10. कोरा कागज़ और कलम
    शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
    जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
    बैठा हूँ फिर से....
    बेहतरीन और अप्रतिम लिखा है आपने...भावयुक्त कृति ।

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  11. बहुत खूब ...
    स्वागत है संजय जी ... मन के गलियारों से निकले भाव कभी कलम के सहारे उतर आते हैं ...
    अच्छा लगता है ...

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  12. ये सबकुछ ही तो 'तुम' है। सुन्दर सृजन।

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  13. छोड़ना संभव नहीं प्रेम में, उम्दा रचना

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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- संजय भास्कर