चिड़िया की चहचहाट में जिंदगी के सपने दर्ज हैं और चिड़िया की उड़ान में सपनों की तस्वीर झिलमिलाती है चिड़िया जब चहचहाती है तो मौसम में एक नई ताजगी और हवाओं में गुनगुनाहट सी आ जाती है चिड़िया का हमारे आँगन में आना हमारी जिंदगी में लय भर देता है। चिड़िया जब दाना चुनती है तो बच्चे इंतज़ार में देर तक माँ को निहारते रहते हैं और घर बड़े बुजुर्ग चिड़ियों को दाना डाल कर एक अलग ही सुकून का अनुभव करते है
कितना मनमोहक लगता है जब गौरेया एक कोने में जमा पानी के में पंख फड़फड़ाकर नहाती है और पानी उछालती है. इसके अलावा चिड़िया एक कोने में पड़ी मिट्टी में भी लोटपोट करती है ........तभी तो चिड़िया का
हर मनुष्य के साथ एक भावनात्मक रिश्ता है पर आज के समय में चिड़ियों का संसार सिमटता जा रहा है और इस संतुलन को बिगड़ने में जाने-अनजाने मनुष्य का बहुत बड़ा रोल है तथा शहरों में तो ऐसी स्थिति है बन गई गई कि लगता है एक दिन आगन चिड़ियों से सूना हो जाए और चिड़िया की चहचहाट के लिए मौसम तरस जाए, हवाएं तरस जाए और हम सब तरस जाए आज के समय में हो रहे शहरीकरण की मार भी सीधे रुप से इन्हीं पर पड़ी है। जिसकी वजह से घरेलू चिड़ियों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है और घरेलू चिड़ियों का अस्तित्व लगातार संकट में है। जब से खेती में नई-नई तकनीकें प्रयोग में आई हैं, खेतों में उठने-बैठने वाली घरेलू चिड़ियों पर भी बुरा असर पड़ा है। जिस तेजी से इधर कुछ सालों में घरेलू चिड़ियों की संख्या में कमी आई है, वह चिंताजनक है। प्राय: यह चिड़िया गावों में ज्यादा पाई जाती थीं। लेकिन आजकल गावों में भी घरेलू चिड़िया कम ही नजर आती हैं जो की चिंताजनक है अगर हम सचेत होंगे तो शायद गौरेया को एकदम लुप्त होने से अभी भी बचा पाएंगे. अगर हम प्रयास करेंगे तो आने वाले सालों में शायद दूसरे पंछियों को भी लुप्त होने से बचा पाएंगे..!!
हर मनुष्य के साथ एक भावनात्मक रिश्ता है पर आज के समय में चिड़ियों का संसार सिमटता जा रहा है और इस संतुलन को बिगड़ने में जाने-अनजाने मनुष्य का बहुत बड़ा रोल है तथा शहरों में तो ऐसी स्थिति है बन गई गई कि लगता है एक दिन आगन चिड़ियों से सूना हो जाए और चिड़िया की चहचहाट के लिए मौसम तरस जाए, हवाएं तरस जाए और हम सब तरस जाए आज के समय में हो रहे शहरीकरण की मार भी सीधे रुप से इन्हीं पर पड़ी है। जिसकी वजह से घरेलू चिड़ियों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है और घरेलू चिड़ियों का अस्तित्व लगातार संकट में है। जब से खेती में नई-नई तकनीकें प्रयोग में आई हैं, खेतों में उठने-बैठने वाली घरेलू चिड़ियों पर भी बुरा असर पड़ा है। जिस तेजी से इधर कुछ सालों में घरेलू चिड़ियों की संख्या में कमी आई है, वह चिंताजनक है। प्राय: यह चिड़िया गावों में ज्यादा पाई जाती थीं। लेकिन आजकल गावों में भी घरेलू चिड़िया कम ही नजर आती हैं जो की चिंताजनक है अगर हम सचेत होंगे तो शायद गौरेया को एकदम लुप्त होने से अभी भी बचा पाएंगे. अगर हम प्रयास करेंगे तो आने वाले सालों में शायद दूसरे पंछियों को भी लुप्त होने से बचा पाएंगे..!!
- संजय भास्कर
बहुत सुन्दर सृजन संजय जी । वैसे शब्द चित्र कहूँ तो भावनाओं के अधिक करीब महसूस होगा । यूं लगा जैसे आँगन में माँ ने चुग्गा डाला ...और महीन सी आवाज में बातें करती चिड़िया दाना चुगती उछल-कूद मचाये हैंं।बचपन की यादों के दर्शन करवाने के लिए आभार संजय जी ।
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप सभी को पावन दिवाली की शुभकामनाएं.....
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
03/11/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०३ -११ -२०१९ ) को "कुलीन तंत्र की ओर बढ़ता भारत "(चर्चा अंक -३५०८ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
गौरेया सचमुच बहुत सुन्दर और सुरीली आवाज का पक्षी है सुबह सुबह इसकी चहचहाहट दिमाग को फ्रेश कर देती है मेरे घर पर अनार व जामुन के पेड़ पर अभी भी बहुत चिड़िया आती है सुबह सुबह.....इस मामले में मैं अभी सौभाग्यशाली हूं ❤️
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना सर
अजीब संयोग है आपके लेख पढ़ रही हूं ...और ठीक उसी वक्त गोरैया का एक झुंड बाहर शोर मचाने लगा एक एक शब्द एक एक पंक्तियां उनकी सच्ची चाहचाहट को वास्तविकता के काफी करीब ले आई ,शहरों में तेजी से बढ़ रहे कंक्रीट के जंगल इन छोटे चिड़ियों का घर उखाड़ कर फेंकने लगे हैं आपकी चिंता जायज है अगर इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह लुप्त हो जाएंगे ...प्रयास करूंगी कि अपनी खिड़की के बाहर इस चहचहाहट को हमेशा जिंदा रख सकूं, चिड़ियों की आवाज बनती आपकी इस लेख ने मुझे थोड़ा सबक सिखा दिया ....इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंये वाकई बेहद चिंता का विषय हैं ,इंटरनेट के आने से तो चिड़ियों का अस्तित्व और खतरे में पद गया हैं। संजय जी ,बहुत ही सुंदर विषय पर आपने प्रकाश डाला हैं
जवाब देंहटाएंगौरैया का आज संकट है कर किसी और पक्षी का और फिर ये संकट इंसान पर भी आने वाला है ...
जवाब देंहटाएंकई बार तरक्की विनाश भी ले कर आती है ...
बहुत गहरा चिंतन है संजय जी आपकी बातों में ...
संजय जी
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के प्रति आपकी भावनाएं देख कर बहुत प्रसन्नता हुई
अच्छे लेखन के लिए बधाई
hmesha utsaah bdhaane ke liye aabhaar
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा आपको पढ़ कर यह गौरय्या तो मेरी फेवरेट है, रोज टंकी के पास आ जाती थी सारे वक्त चींचीं, अब दिल्ली में तो नज़र ही नहीं आती है।
जवाब देंहटाएंअब तो इनका दिखना ही नहीं होता है ।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख।
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