उदासी का गम ढ़ोते देखा
देखा सब को तड़पते हुए,
सारी रात मैंने पूरे आसमा को तड़पते देखा,
रात की रौशनी को देखा ,
तारो की चमक को देखा
सुबह होते ही इनकी रौशनी को खोते देखा |
थके से आसमा को देखा ,
अन्दर से रोते
अन्दर से चमक दमक खोते देखा
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर
बस सबको रात भर
हमने बेफिक्र सोते हुए देखा |
........संजय कुमार भास्कर
31 टिप्पणियाँ:
- आसमान के सितारों को मैंने रोते देखा , उदासी का गम ढ़ोते देखा देखा सब तो तड़पते हुए, सारी रात मैंने पूरे आसमा को तड़पते देखा ....man ke gahan udasi ka sundar nayanabhiram chitran
- सभी यूं ही सोते है बेफिक्री में... उम्दा रचना डा.अजीत
- कविता में एक बनावट उभर रही है. उसे संरक्षण दें.
- कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | संजय जी.....बड़ी उम्दा पंक्तियाँ हैं वास्तविक जीवन में भी ऐसा होता है. आभार ....
- सुंदर कविता पर तारों के बारे में मेरी राय तो कुछ यह है... मन रोया तो तारे रोये सब तो चादर तान कर सोये खुश होकर जब इन्हें निहारो ये भी तुम्हारे साथ हंसेंगे अंधियारे में रह सकते रोशन आओ समझाएं यही कहेंगे
- Dhanyawaad @ Kavita ji @ Dr.Ajeet ji @ Bhshan ji @ Virender Chohan ji धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
- अच्छी प्रस्तुति, आभार
- अच्छा प्रयास है हार्दिक शुभकामनायें !
- कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | .............बहुत खूब, लाजबाब !
- वास्तविक जीवन में भी ऐसा होता है...
- धन्यवाद @ सुधीर जी.. @ रचना दीक्षित जी.. @ सतीश सक्सेना जी.. @ Karan ji सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए आभार अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें....”
- बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं! काव्यशास्त्र (भाग-3)-काव्य-लक्षण (काव्य की परिभाषा), आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
- कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा बहुत सच्ची बात कह दी आपने कविता के माध्यम से.
- कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | ---------------------------- वाह मेरे भाई। आपने तो कहर ढाह दिया। वाकई लाजवाब है, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं।
- sundar sirjan badhai
- कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | ---------------------------- वाह मेरे भाई। आपने तो कहर ढाह दिया। वाकई लाजवाब है, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं।
- संजय भाई आसमान के सितारों के रोने का दर्द आपने इस बेदर्द दुनिया के सामने जिस अंदाज़ में पेश किया हे वाकई मजा भी आया और इस दर्द का एहसास भी हो गया. बहुत खूब बधाई हो. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
- धन्यवाद @ मनोज जी.. @ Vandana ji ! @ आमीन जी.. @ ALOK KHARE JI @ अख्तर खान अकेला जी.. .........ब्लॉग में आने और सराहने के लिए आभार!
- बढ़िया है ।
- वाह..बढ़िया प्रस्तुति जी
- bahut sundar rachna, shubhkaamnaayen.
- सार्थक और बेहद खूबसूरत, रचना है....शुभकामनाएं।
- बहुत सुंदर कविता.. बधाई
- बहुत बहुत बधाई अच्छी कविता के लिए..
- अरे भाई रात चैन से सोने के लिये होती है, ये देखा दाखी में वक्त खराब मत किया करो। अब आप अगली कविता में यह न कहना कि रात का दर्द मैं चुपचाप सुना करता हूँ है न आईडिया सर जी।
- कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | चलो कुछ लोग तो बेफिक्र सो रहे हैं वर्ना आज के समय में तो नींद भी नहीं आती ... सुन्दर रचना रचा है आपने
- दूसरों की तकलीफ नजर अंदाज कर बेफिक्र सोना तो आज इन्सान की फितरत बन गई है... देखा सब तो तड़पते हुए ///शायद तो की जगह को/// -बाकी बढ़िया/
- धन्यवाद @ डॉ टी एस दराल जी.. @ विनोद कुमार पांडेय जी.. @ जेन्नी शबनम जी.. @ Arun C Roy Ji @ मेरे भाव जी.. @ तिलक राज कपूर जी.. @ M VERMA JI @ Udan Tashtari Ji आप सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें. .......ब्लॉग में आने और सराहने के लिए आभार!
- Udan Tashtari Ji Apka Bahut Bhaut Abhaar Meri galti Se Avgat Karane ke liye Sanjay Bhaskar
- . संजय जी, कवी-ह्रदय को समझ पाना मेरे बस की बात नहीं। एक दो बार प्रयास किया लेकिन हार गयी। इसलिए अभी भी नहीं जानती की कवि , इस कविता के माध्यम से क्या कहना चाहता है । अपनी तो स्पष्ट एवं सरल शब्दों में कहने की आदत है। इसलिए तारों को देखकर जो ख़याल मेरे मन में आता है वो कुछ इस प्रकार है-- तारों की छाँव में , चन्द्रमा की शीतल किरणों के मध्य इंदलोक में अप्सराएं नृत्य करती होंगी, मधुर संगीत गुन्जायेमान होगा। न तो वहां दुःख होगा, न ही आंसू होंगे। हर तरफ अलौकिक आभा बिखरी होगी । रोते तो पृथ्वी के कमज़ोर लोग हैं। मैं भी कभी-कभी रोती हूँ। लेकिन दिल भर कर रोने के बाद दोगुनी ऊर्जा के साथ जगमगाते तारों भरे आकाश को मुट्ठी में समेटने की कोशिश में पुनः लग जाती हूँ। आभार। .
- बढ़िया रचना जन्मदिन पर आपकी शुभकामनाओं ने मेरा हौसला भी बढाया और यकीं भी दिलाया कि मैं कुछ अच्छा कर सकता हूँ.. ऐसे ही स्नेह बनाये रखें..
बहुत खूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंकौन किसी की तकलीफ देखता है सब को अपना सुख चाहिये। च्छी रचना है मगर अभी कुछ काम माँगती है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंbhaut umda rachna....apki sooch ko namskar
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है! बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंकोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | .............बहुत खूब, लाजबाब !
जवाब देंहटाएंवाह.....बढ़िया प्रस्तुति जी
जवाब देंहटाएंवास्तविक जीवन में भी ऐसा होता है...
Dhanyawaad
जवाब देंहटाएं@ Sangeeta swaroop Ji
@ Santosh Kumar Ji
@ Nirmla Maa
@ Rewa Ji
@ Nilesh Mathur ji
@ Karan ji
धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
Aaj ki post ke sath jo tipani hai..
जवाब देंहटाएंwo isi post ki hai..
Kuch chages karte wakt post pori post delete ho gai thi..
par alag window me khuli hone ke karan comment nai post par daal diye
nahi to post delete hone se hosla toot gya tha..
par ab sab thik hai........
बहुत सुंदर, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत खूब संजय जी,
जवाब देंहटाएं"बस सबको रात भर
हमने बेफिक्र सोते हुए देखा"
भाई आपने तो पुरे आशिक जगत की मनोव्यथा ही लिख दी.
साधुवाद.
प्रतीकों में आपने बहुतों के मन की बात कह दी ... लेकिन ऐसा भी होता है कि दिन भर तारे बेफिक्री से सोते हैं और धरती के सारे लोग रोते रहते हैं
जवाब देंहटाएंरात में इतना कुछ देख लिया आपने। हमें तो मन के अँधेरे के अतिरिक्त कुछ दिखता ही नहीं।
जवाब देंहटाएंBilkul sahi kaha aapna Zeal ji aapne.
जवाब देंहटाएंकवी-ह्रदय को समझ पाना मेरे बस की बात नहीं। एक दो बार प्रयास किया लेकिन हार गयी। इसलिए अभी भी नहीं जानती की कवि , इस कविता के माध्यम से क्या कहना चाहता है ।
maine to bas
आसमान के सितारों के रोने का दर्द आपने इस बेदर्द दुनिया के सामने जिस अंदाज़ में पेश किया हे
धन्यवाद
जवाब देंहटाएं@ ZEAL JI
@ दीपक 'मशाल' जी..
@ ताऊ रामपुरिया जी..
@ DEEPAK BABA JI
@ Mahendra verma ji
@ प्रवीण पाण्डेय जी..
आप सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें. .......ब्लॉग में आने और सराहने के लिए आभार!
...bahut sundar !!!
जवाब देंहटाएंSundar kavita...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
ये दर्द तारो के साथ -२ किसी और का भी दर्द बयां कर रही है बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!! अभी तक तो आसमान ने ही हमें सोते देखा था...अब आसमान पर नज़र रखने वाला आ गया कोई!!!:)
जवाब देंहटाएंरात की रौशनी को देखा ,
जवाब देंहटाएंतारो की चमक को देखा
सुबह होते ही इनकी रौशनी को खोते देखा
Bahut Khoob
आसमान के सितारों को मैंने रोते देखा ,
जवाब देंहटाएंउदासी का गम ढ़ोते देखा
देखा ...अच्छा प्रयास है हार्दिक शुभकामनायें ....
तारों के गम पर किसकी निगाह जाती है………………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंshuruaati do panktiya aur antim do panktiya.. bahut achchi lagi.. khaas kar antim kyo ki vo bilkut sach kahti hain .. lekin phir bhi kavita me kahin kuch kami nazar aayi. comments me Zeal ki kahin baaton se sahmat hu..k bhaav kuch spasht nahi hue. Zeal ki kahin panktiya bhi sundar lagi.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, बहुत खूब, बहुत खूब।
जवाब देंहटाएं................
जबरदस्ती पोस्ट पढ़वाने वालों का उपाय..
नारीवादी चेतना पर केन्द्रित एक सामाजिक विज्ञान कथा- निर्णय
behad khoobsurat bhaiya....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने बहुत पसंद आया शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआसमान के सितारों को रोते देखा ,
जवाब देंहटाएंउदासी का गम ढ़ोते देखा
देखा सब को तड़पते हुए,
सुबह इनकी रौशनी को खोते देखा
बहुत खूब !
बहुत खूबसूरती से तराशा है..!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.....बहुत बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसंजय जी, कविता के मामले में दिल-तोड़ टिप्पणियों के लिए बदनाम हूँ.. झेल सको तो आगे चलूँगा ..फिलहाल तो इस तस्वीर की तारीफ किये बिना नहीं रह सकता जिसमें मुझे लगा सितारे हँस रहे हैं आदमी की कारस्तानियों को देख देख कर .. रोते हुए तो हम आदमी लोग हैं और यह रोना कोई कुदरत का किया धरा नहीं हमारे अपने ही बुने जाल हैं जिनमें फंस कर रोना हमारी आदत बन चुकी है ... चलते चलते .. कविता को साधना.. बैरिस्टर मोहनलाल करमचंद गाँधी का महात्मा गाँधी होना है
जवाब देंहटाएंmaaf kijiyega thodi der ho gayi aane mein..aap to jante hi hain thoda bzy hoon...
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna,...
बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंधन्यवा
जवाब देंहटाएं@ 'उदय' जी..
@ Monali ji
@ देव कुमार झा जी..
@ S.M.MAsum Ji
@ Asha Ji
@ Minakshi Pantji
@ Shah Nawaj ji
@ Pragya ji
@ मंजुला जी..
@ वन्दना जी..
@ Nisha Ji
@ ज़ाकिर अली जी..
@ Amit Bhai
@ संजय कुमार चौरसिया जी..
@ रंजना [रंजू भाटिया] जी..
@ पी.सी.गोदियाल जी..
@ Priyankaabhilaashi Ji
@ डॉ. मोनिका शर्मा जी..
@ Shyam 1950 Ji
@ Shekhar Suman Ji
@ Mahak Ji
आप सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें. .......ब्लॉग में आने और सराहने के लिए आभार!
भाई शब्दों के साथ चित्र भी खूबसूरत है । बधाई ।
जवाब देंहटाएंहमने बेफिक्र सोते हुए देखा...सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंखूबसूरती से लिखी रचना...बधाई.
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्तिया लिखी है ........
जवाब देंहटाएंजाने काशी के बारे में और अपने विचार दे :-
काशी - हिन्दू तीर्थ या गहरी आस्था....
ब्लॉग मे आने का आभार
जवाब देंहटाएंकृपया यूँ ही मार्गदशन करते रहें
धन्यवाद
सच है .... सभी तेज़ चमकने वाली चीज़ को देखते हैं .... चाँद के सामने तारों को कौन पूछता है ....
जवाब देंहटाएंSANJAYJI,
जवाब देंहटाएंKavita key bhav achchey hain.Rachna badhia hai.
धन्यवाद
जवाब देंहटाएं@ शरद कोकास जी..
@ दुधवा लाइव जी..
@ Akanksha~आकांक्षा जी..
@ ओशो रजनीश जी..
@ दीप्ति शर्मा जी..
@ दिगम्बर नासवा जी..
@ Vijai Mathur Ji
आप सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें. .......ब्लॉग में आने और सराहने के लिए आभार!
बहुत अच्छा लिखा हैं आपने.
जवाब देंहटाएंमैंने अभी तक तारो को टूटते ही देखा था.
आज आपने रोते हुए भी दिखा दिया.
नया अनुभव कराने के लिए आभारी हूँ.
बहुत बढ़िया.
धन्यवाद.
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gam ka bahut achha varnan kiya hai aapne rachna me ..........badhai
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधिजनों ( ब्लागरों ) को मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआशा है आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
संजय भास्कर