मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-५ (व्यंग्य)
" दामादजी बिल्कुल सही कह रहे हैं "----- तब तक ससुरजी शोपिंग कर लौट आये थे------" आज मैंने महात्मा गांधी की तस्वीर खोजी.....नहीं मिली फ़िर चिर-यौवना मल्लिका शेरावतजी की तस्वीर ले आया. यह सोचकर कि किन हालातों में इस लङकी ने अपने वस्त्र का त्याग किया होगा ?"
मैंने समानपूर्वक उन्हें समझाया---" पिताजी ये फ़िल्म की हिरोईन है. अपने शरीर को दिखाकर ये करोङो रुपये कमाती है". वह चौंक गये------" शरीर को दिखाकर करोङो रुपये ..? कैसे..?"
"लोग इनके शरीर को देखना चाहते हैं इसलिये.."
" वाह जन-इच्छा का कितना सम्मान करती है यह अबला "
" पापाजी आप गलत समझ रहे हैं. इन हिरोइन को तो एक्टिंग करना चाहिये न ? "
" ये अच्छा एक्टिंग नहीं करती क्या..?"
" अच्छा एक्टिंग करती है लेकिन आज-कल के लोग सिर्फ़ आंग-प्रदर्शन देखना चाहते हैं. "
" फ़िर.......मैं तो इसी हालात की बात कर रहा था. हालात ही ऐसे हो गये हैं जिससे इस बेचारी मल्लिका शेरावत को स्वयं अपना चीर-हरण करना पङा. कौरव- पांडव सभी एक जैसे हो गये. द्रौपदी करे भी तो क्या. महाभारत की पांचाली...आधुनिक भारत की सहस्त्रचाली बन गयी. धृतराष्ट्र तब भी अंधा था और आज भी अंधा है."---ससुरजी कुछ देर तक शांत रहे फ़िर अपनी बेटी से कहने लगे-----" अब तो बाजार भी बहुत बदल गया है. पहले सत्तु खोजा जब नहीं मिला तो कोल्ड-ड्रींक पी आया. लिट्टी-चोखा भी बाजार से गायब हो गया है .इसलिये मैंने फ़ास्ट फ़ूड पैक करवा लिया ." हमलोगों ने काफ़ी फ़ास्टली फ़ास्ट-फ़ूड खाया और अपने कामों मे लग गये. मक्के की रोटी---सरसो का साग और आलू चोखा---सत्तु लिट्टी जैसे विशुद्ध भारतीय खानों पर आजकल फ़ास्ट-फ़ूड और कोल्ड ड्रींक हावी है. यदि इस समय आप लंच या डीनर न कर रहे हों तो मैं उस फ़ास्ट फ़ूड का एफ़ेक्ट बताना चाहुंगा. कुछ देर में खतरनाक रुप से घर में प्रदुषण भी फ़ैला और ग्लोबल वार्मिंग भी बढता चला गया. ससुर दामाद का हमारा संबंध ही इतना मधुर रहा है कि हम दोनों में से किसी ने एक दूसरे पर उंगलिया नहीं उठायी. जबकि घर में फ़ैल रहे प्रदुषण में हम दोनों के योगदान के बारे में हम कन्फ़र्म थे. विडंबना देखिये कि हमारी उंगलियां वायु ग्रहण और त्याग स्थलों के इर्द-गिर्द मंडराता रही. प्रकृर्ति के नियम के मुताबिक इन छिद्रों को बंद भी नहीं किया जा सकता. हमारा पेट तो गैस का सिलिंडर बन ही चुका था. वो तो अच्छा था कि किसी ने माचिस की तिल्ली नहीं जलायी. हम दोनों ससुर दामाद एक दूसरे की समस्या को जान रहे थे लेकिन एक दूसरे से कहते भी तो क्या..इसी बीच टिकू आकर पूछने लगा----"नानाजी ग्लोबल वार्मिंग से क्या होता है ?" पता नहीं टिंकू खुद इस समस्या से परेशान था या शरारत कर रहा था. जो भी हो ससुरजी ने उन्हें समझाना चालू किया----" ग्लोबल वार्मिंग से तापमान बढ जाता है. घर को ठंढा रखो तो सब ठीक है....लेकिन यदि ग्लेशियर पिघले लगे तो जीना मुश्किल हो जाता है."----- अचानक ससुरजी का चेहरा लाल हो गया----" कल विस्तार से बताउंगा." कहते हुए दीर्घशंका के लिये लघु कक्ष में प्रवेश कर गये. जब उनका पुराना ग्लेशियर पिघलने लगा था तो पता नहीं मेरे ग्लेशियर का क्या होनेवाला था.
अगले भाग में फ़ास्ट-फ़ूड का एफ़ेक्ट जारी रहेगा... क्रमश
( शुरु के तीन भाग krantidut.blogspot.com पर देख सकते हैं)
( नोट :- यह पोस्ट हमारे प्रिय अरविंद झा जी द्वारा लिखी गई है, तकनीकी कारणों से वे इसे स्वयं के ब्लॉग - क्रांतिदूत पर पोस्ट नहीं कर पा रहे हैं इसलिए यहाँ प्रकाशित है .... आपकी प्रतिक्रया अपेक्षित है, धन्यवाद )
...rochak post ... shaandaar vyangy !!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य. आज के हालात का चित्रण भी. बधाई.
जवाब देंहटाएं..करारा व्यंग्य। बधाई।
जवाब देंहटाएंएक अर्थपूर्ण और सटीक व्यंग्य.
जवाब देंहटाएंपूर्ण हास्य व्यंग्य कि प्रस्तुती के लिए झा साहब धन्यवाद के पात्र हैं.
......आभार भास्कर जी
रोचक वर्णन ...
जवाब देंहटाएंरोचकता पुर्ण व्यंग, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
interesting,
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया व्यंग है मै तो इस का इन्तजार कर रही थी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंरोचक भी...शानदार व्यंग भी
जवाब देंहटाएंबढ़िया करारा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंzabardast likha hai ,sundar
जवाब देंहटाएंliked very much.
जवाब देंहटाएंkeep it up.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
रोचकता बरकरार है, जारी रहिये. आगे इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंBahut hee mazedaar vyangya chal raha hai..
जवाब देंहटाएं,.....करारा व्यंग्य। बधाई।
जवाब देंहटाएंऔव्यंग्य प्रस्तुती के लिए झा साहब धन्यवाद के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएं......आभार भास्कर जी
मजा आया पढ़कर। बधाई।
जवाब देंहटाएंha ha maja aa gaya!
जवाब देंहटाएंjaandaar....ha ha ha!!
जवाब देंहटाएंसपाट व्यंग।
जवाब देंहटाएंhahaha...bahut khub,,,,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर इस बार धर्मवीर भारती की एक रचना...
जरूर आएँ.....
वाह क्या व्यंग्य किया है .........झा साहब ने .........मुझे इसे पढ़कर अपनी एक कविता याद आ गयी जिसका शीर्षक है " पता है मुझे, तुम इक्कीसवी सदी में जी रही हो " .....
जवाब देंहटाएंरोचक व्यंग्य.. सटीक...
जवाब देंहटाएं1-3 to krantidut mey hai 5 va yahan hai 4tha kahan padhen,suchit karen.Apkey vyangya samajik sthition ka sahi katach kar rahey hai.
जवाब देंहटाएंsahi jarahe ho sanjoo beta.
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