08 मार्च 2010

ख्वाहिशे..........



ख्वाहिशे....

ख़वाहिशो के मोती
इकट्ठा कर
एक ख्वाबो का घर
बना तो दिया था..
मासूम दिल नहीं जानता था
इसकी तासीर रेत के
घरोंदे की तरह है..
जो कुंठाओ के थपेडो से
ढह जायेगा..!
मैं फिर भी
उस मकडी की तरह
अथक प्रयास करती हु
की शायद कभी
इस खवाहिशो के घर को
यथार्थ की धरती
पर टिका पाऊ..
पर ना जाने क्या है..
या तो मेरी चाहत में कमी है
या मेरे सब्र का इम्तिहान...
की हर बार
मायुसिया सर उठा
मुझे और निराशाओ के
गलियारों में खीचती चली जाती है..!!
क्या ये मुनासिब नहीं..,
या फिर मैं झूठी
आशाओ में जीती हु..??
की ये खावाहिशो का घर
यथार्थ का सामना
कर पायेगा..
क्या सच में कभी
ये अपना वजूद
कायम कर पायेगा???

Anamika  ji, aapne bahut khoobsoorat likha
mujhe itna pasand aaya ki apne blog par bhi post kar diya.



 

14 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut sundar ....isi tarah likate rahiye vajud kayam rahane ki baat kya janaab aap badi hasti ban kar ubharenge.....Shubhkaamnae!!

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  2. अच्छा किया आपने अपने ब्लॉग पर पोस्ट करके नहीं तो हम लोग इतनी अच्छी कविता से मरहूम रह जाते,
    विकास पाण्डेय

    www.विचारो का दर्पण.blogspot.com

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  3. बहुत अच्छी रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर रचना.

    रामराम.

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  5. ख्वाहिशों को जिंदा रखना चाहिए ... अच्छी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  6. ख़वाहिशो के मोती
    इकट्ठा कर
    एक ख्वाबो का घर
    बना तो दिया था..
    मासूम दिल नहीं जानता था
    इसकी तासीर रेत के
    घरोंदे की तरह है.. waah, dil tak utar gaya

    जवाब देंहटाएं
  7. संजय जी बहुत बहुत आभारी हू जो आपको मेरी ये रचना पसंद आई और आपने अपने ब्लोग में इसे स्थान दिया. और अब आभारी हू सभी ब्लोग्गार्स की जिन्होने इतनी अच्छी अच्छी टिप्पनिया दी. जो लोग आज तक मेरे ब्लोग पर नही आये उन तक भी आज मेरी रचना पहुंची और उन्होने अपनी टिप्पणी से इसे नवाजा. आप सब की बहुत आभारी हू. आप सब मेरा ब्लोग भी Anamika7577.blogspot.com डेरेक्ट्ली देख सकते है.

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- संजय भास्कर