24 जून 2019

व्यस्तताओं के जाल में :)


अक्सर हो जाती है 
इकट्ठी
ढेर सारी व्यस्तताएँ
और आदमी 
फस जाता है इन व्यस्तताओं 
के जाल में  
पर आदमी सोचता जरूर 
है की छोड़ आएँ
व्यस्तताएँ कोसो दूर अपने से 
पर जब हम निकलते 
व्यस्तताओं को 
दूर करने के लिए 
तब लाख कोशिशों 
के बाद पीछा नहीं छोड़ती 
ये व्यस्तताएँ हमारा  
और हमे 
मजबूरन जीना पड़ता है 
ये व्यस्तताओं भरा जीवन 
और लड़ना पड़ता है अपने आपसे 
और व्यस्तताओं से 
तब इन व्यस्तताओं से बचने के बहाने
तलाशता आदमी 
हमेशा व्यस्त नजर आता है  !!

- संजय भास्कर 

25 टिप्‍पणियां:

  1. पर जब हम निकलते
    व्यस्तताओं को
    दूर करने के लिए
    तब लाख कोशिशों
    के बाद पीछा नहीं छोड़ती
    ये व्यस्तताएँ हमारा ... सही कहा आपने ये वयस्तताएँ ज़िंदगी भर हमारा पीछा नहीं छोड़ती... बेहतरीन प्रस्तुति

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  2. जीवन सचमुच भागते दौड़ते बीत जाता है समय के पहिए के
    साथ...व्यस्त जीवन के सत्य पर बहुत सुन्दर सृजन संजय जी ।

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  3. जीना तो इन्ही के साथ पड़ता है ... बहाना हो न हो ... और समय भी निकालना होता है ...
    सत्य की रचना है ...

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  4. व्यस्त रहना और व्यस्त हैं यह दिखाना, दोनों ही आदमी की मजबूरी हैं, व्यस्तता जीवन को एक अर्थ देती हुई सी लगती है, वरना खाली आदमी को कोई नहीं पूछता, न घर न बाहर..

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 26 जून 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  6. कभी कभी व्यस्त रहना भी जरुरी होता है वरना एकाकीपन भी बहुत सताता हैं। बहुत सुंदर रचना.... संजय जी

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  7. वाह!!संजय जी ,क्या बात है !!व्यस्तताएँ ,दिन निकलने के साथ शुरू हो जाती है ,भागमभाग भरा जीवन ....सही भी है ,व्यस्त रहना अन्यथा मानव बिन सिर -पैर की बातें सोचकर व्यर्थ परेशान ।

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  8. वाह !बहुत ही सुन्दर जीवन का जीवित चित्रण मन को मोहता
    चंद पंक्ति कहना चाहुंगी ....

    मन को भा गई ये व्यस्तता
    जीवन को रास आ गई
    झाँकती रह गई तन्हाईयाँ
    दुल्हन बना जिंदगी को मैं उस के साथ हो गई |

    प्रणाम
    सादर

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  9. व्वाहहहह..
    व्यस्तता के चलते देर हुई..
    बेहतरीन..
    सादर..

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  11. भास्कर जी , हमारी बढ़ती जरुरतो ने हमारी व्यस्तताएँ बढ़ा दी है .
    सुंदर रचना .

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  12. संजय जी, आज के समय में तो बच्चे भी बहुत व्यस्त हैं। समय तो किसी के पास हैं ही नहीं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  13. व्यस्तता तो आज के जीवन का पर्याय बन गया है.
    सुंदर् रचन

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  14. बहुत सुन्दर रचना

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  15. सही कहा। व्यस्तता से बचने के लिए व्यस्त होने का ढोंग भी हम करने लगते हैं।

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  16. व्यस्तता को इतना ऋणात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए भाई ... जब कभी हम सो रहे होते हैं तब भी हमारा ये छोटा सा दिल धड़क रहा होता है।
    इसकी व्यस्तता से हमें सबक लेनी चाहिए। है ना !?

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  17. प्रिय संजय आपने तो मेरी ही कहानी लिख दी |और ब्लॉग पर आने के कर्ण तो अव्यवस्थाएं एक पहाड़ सरीखी बन गयी हैं | रोचक लेखन के लिए शुभकामनायें

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  18. कृपया आने के कारण पढ़े

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  19. हम भी अक्सर
    व्यस्त रहते हैं।
    ढूढने में,
    अपनी व्यस्तताओं को!.... सुंदर रचना।

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  20. उचित कहा बढ़िया कहा

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- संजय भास्कर