चित्र - गूगल से साभार
कॉलेज को छोड़े करीब
नौ साल बीत गये !
मगर आज उसे जब नौ साल बाद
देखा तो
देखता ही रह गया !
वो आकर्षण जिसे देख मैं
हमेशा उसकी और
खिचा चला जाता था !
आज वो पहले से भी ज्यादा
खूबसूरत लग रही थी
पर मुझे विश्वास नहीं
हो रहा था !
की वो मुझे देखते ही
पहचान लेगी !
पर आज कई सालो बाद
उसे देखना
बेहद आत्मीय और आकर्षण लगा
मेरी आत्मा के सबसे करीब ..............!!
-- संजय भास्कर
आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 03 नवम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत भावों का सृजन संजय जी ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंसुंदर.भावपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंवाह अनुपम
जवाब देंहटाएंवाह, इस अहसास की बात ही कुछ और है । बहुत सुंदर संजय जी .
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं संजय जी ।
जवाब देंहटाएंसहज,निर्मल,सुकुमार सुन्दर!
जवाब देंहटाएंप्रेम और आकर्षण ऐसे हो बोलता है ...
जवाब देंहटाएंकोई पुराना मिले तो सहसा विश्वास नहीं होता ... छल आता है झरना यादों के साथ ...
अच्छी रचना संजय जी ....
सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना 👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकम ही कविताएं होती हैं जिसके शब्दों को पढ़कर पढ़ने वाला उन शब्दों से अपने आप को जोड़ लेता है। उन्हीं में से एक कविता ये भी है। साधुवाद संजय भास्कर जी ....सृजन जारी रखिये
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
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