06 जुलाई 2018

.... ज़िंदादिल :)

( चित्र गूगल से साभार  )

उस आदमी से मैं रोज़
मिलता हूँ 
उसकी सुनता हूँ अपनी बताता हूँ 
परिवार में सब ठीक है 
और आगे निकल जाता हूँ 
पर यह कभी नहीं जाहिर होने देता वो 
की वह कितना दुखी है 
मकान की मरम्त बाकी है अभी 
बाबा का इलाज जरूरी है 
कमाई का ज़रिया भी कुछ खास नहीं है 
परेशान है 
पर इन सब से लड़ता वह 
हमेशा चेहरे पर रखता है मुस्कराहट
नहीं दिखाता अपना दुःख दूसरों को 
क्योंकि सुख के सब साथी है 
दुःख में कोई नहीं 
और इसीलिए वो हमेशा बना रहता है
ज़िंदादिल !!

- संजय भास्कर   

15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आपकी संजय जी..👌👌👌

    रहिमन निजमन की विथा मन ही राखो गोय
    सुनि अठिलैहे लोग सब बाँट न लैहे कोय

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  2. सुख के सब साथी दुःख में न कोय ....
    ये बात ऐसे ही नहीं कही जाती ... सिल के दर्द को दिल में रखना ज़िंदादिल इंसान का ही काम होता है ...
    बढ़िया बात कही है ...

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  3. "पर यह कभी नहीं जाहिर होने देता वो
    की वह कितना दुखी है
    मकान की मरम्त बाकी है अभी
    बाबा का इलाज जरूरी है
    कमाई का ज़रिया भी कुछ खास नहीं है
    परेशान है" जिन्दादिली को कितने सुन्दर शब्दों में बांध दिया है आपने । जब भी लिखते हैं बहुत अच्छा लिखते हैं । आप की रचनाओं की सदैव प्रतीक्षा रहती है ।

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  4. बेनामी7/09/2018

    जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 10/07/2018
    को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  5. जीवन का सुंदर सूत्र देती भावपूर्ण कविता..

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  6. बहुत सुंदर अपना दर्द बताते ही लोग पराये हो जाते हैं,।

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  7. कैसा समय आया
    कहते थे पहले , कहने से दुख आधा और सुख दोगुना हो जाता है
    अब कुछ भी बताने पर व्यंग मिलता है

    अच्छी भावाभिव्यक्ति
    सस्नेहाशीष पुत्तर जी

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  8. बेहतरीन रचना
    हमेशा चेहरे पर रखता है मुस्कराहट
    नहीं दिखाता अपना दुःख दूसरों को
    क्योंकि सुख के सब साथी है
    दुःख में कोई नहीं

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  9. प्रिय संजय -- यही तो आजकल के निष्ठुर समाज का कटु सत्य है | कमजोरी किसी को नहीं भाती
    सच कहा अपने दुःख के साथी इस प्रगतिवादी युग में कहाँ ?? जिन्दादिली दिखाना एक जरूरत गयी है | सस्नेह |

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  10. इस तरह दो चेहरे लगाकर ही अधिकतर मध्यमवर्गीय इंसान जी रहे हैं और घुटघुट कर तरह तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। ऐसी नकली जिंदादिली क्या काम की ?

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  11. जिस पर बीतती है वही जानता है, बहुधा दुःख अकेले ही झेलने होते हैं सभी को
    बहुत अच्छी रचना

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- संजय भास्कर