06 जून 2018

माँ के हाथों की बनी रोटियां :)

( चित्र गूगल से साभार  )

रोजगार की तलाश में 
घर से बहुत दूर बसे लोग 
ऊब जाते है जब 
खाकर होटलो का बना खाना 
तब अक्सर ढूंढते है माँ के हाथों की बनी रोटियां 
पर नहीं मिलती 
लाख चाहने पर भी वो रोटियां 
क्योंकि कुछ समय बाद 
याद आता है की घर तो छोड़ आये 
इन्ही रोटियों के लिए  !!

- संजय भास्कर   

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.06.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2994 में दिया जाएगा

    हार्दिक धन्यवाद

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  2. संवेदना जगााती हुई सुंदर रचना..

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  3. "याद आता है की घर तो छोड़ आये
    इन्ही रोटियों के लिए !!"
    हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति संजय जी । हर नौकरीपेशा की व्यथा को प्रकट करते भाव ।

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  4. जीवन की सच्चाई है ये ...
    रोटी के लिए स्वाद भरी रोटी छोड़ते लोगों को अकसर देखा है ...

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  5. सच कहा संजय जी। माँ के हाथों की रोटियों की बात ही कुछ और हैं।

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  6. वाह!!संजय जी ,बहुत सुंदर !! सही कहा आपनें रोटी के लिए माँ के हाथ की रोटियाँ छोडनी पडती है । लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।

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  7. भावमय करती अभिव्यक्ति .....

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  8. भाव विभोर करती रचना

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  9. बेहद खूबसूरत रचना
    खाकर होटलो का बना खाना
    तब अक्सर ढूंढते है माँ के हाथों की बनी रोटियां
    पर नहीं मिलती

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  10. ये तो आपने मन भिगोने वाली बात लिख दी प्रिय संजय | माँ के हाथ की रोटियों का संसार में कोई विकल्प नही | पर आजिविका के लिए पलायान आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत बन क्र रह गया है | मेरी हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार हों |

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  11. बहुत सुन्दर रचना

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आपके द्वारा दी गई प्रतिक्रिया मेरे लिए मूल्यवान है
- संजय भास्कर