07 अगस्त 2017

..... मैं अकेला चलता हूँ :)

जिंदगी में इंसान अकेले ही आया है ओर उसे अकेले ही जाना है ... छाया फिर भी उम्र भर साथ देती है मरने के बाद भी इसी पर मन की भावनाओं से उपजी कुछ पंक्तियाँ कविता के माध्यम से उम्मीद है पसंद आये कविता की पंक्तियाँ है मैं अकेला चलता हूँ.......!!

चित्र - गूगल से साभार 

मैं अकेला चलता हूँ
चाहे कोई साथ चले
या न चले
मैं अकेले ही खुश हूँ
कोई साथ हो या न हो
पर मेरी छाया
हमेशा मेरे साथ होती है !
जो हमेशा मेरे पीछे- २
अक्सर मेरा पीछा करती है
घर हो या बाज़ार
हमेशा मेरे साथ ही रहती है
मेरी छाया से ही मुझे हौसला मिलता है !
क्योंकि नाते रिश्तेदार तो
समय के साथ ही चलते है
पर धुप हो या छाव
छाया हमेशा साथ रहती है
और मुझे अकेलेपन का अहसास नहीं होने देती
इसलिए मैं अकेला ही चलता हूँ ......!!

रक्षाबंधन के पावन अवसर पर सभी मित्रों व पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं !

-- संजय भास्कर

15 टिप्‍पणियां:

  1. दिनांक 08/08/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
    आप की प्रतीक्षा रहेगी...

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  2. बहुत भावुक रचना‎ . सीधे दिल में उतरने वाली .....,मन को सम्बल देने वाली . रक्षाबन्धन के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएँ संजय जी .

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  3. बहुत सुंदर मन छूती आपकी रचना संजय जी।

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  4. सत्य कहा आदरणीय ये मौक़ापरस्त दुनिया समस्याओं में ही दूर भागती है सुन्दर रचना आभार ,"एकलव्य''


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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : भीष्म साहनी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  6. रवि ठाकुर ने भी कहा था - 'जोदि तोर डाक शुनि केऊ ना आसे,तवे एकला चलो ....'
    बस,(प्र)गति बनी रहे!

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  7. अकेले चलने का सामर्थ्य जिसमें हो वह कभी भी अकेला नहीं होता..कोई छाया बनकर उसके साथ रहता ही है..

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  8. Nice sir
    Pls visit
    https://wazood.blogspot.in/2017/08/Silent-truth.html

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  9. अकेला ही आया है इंसान और अकेले ही जाना है उसे ... कोई साथ दे न दे ...
    वैराग के भाव जितना जल्दी आ जाएँ उतना ही अच्छा होता है ... इन्सान खुद के करीब हो जाता है ...

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  10. यहाँ हर इंसान वास्तव में अकेला ही है। पर जो अपनेआप से प्यार करता है चाहे वह उसकी छाया ही क्यो न हो तो उसको ये अकेलापन काटने नही दौड़ता। सुंदर प्रस्तुति।

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  11. बार बार इस कविता में मैं खुद को पा रहा हूँ

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- संजय भास्कर