बात करीब 2010 में नवरात्री के दिनों में जब शरद कोकास जी के ब्लॉग को मैंने पहली बार पढ़ा शरद कोकास जी के लेखन की तारीफ हर कोई करता है.उनकी कलम से निकला हर शब्द दिल को छूकर गुज़र जाता है मुझे तो हमेशा ही उनकी हर पोस्ट में कुछ अलग ही पढ़ने को मिलता है शरद जी मुख्य रूप से कवितायेँ लिखते है कभी कभी कहानी,व्यंग्य,लेख और समीक्षाएँ भी एक कविता संग्रह "गुनगुनी धूप में बैठकर " और "पहल" में प्रकाशित लम्बी कविता "पुरातत्ववेत्ता " के अलावा सभी महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं में कवितायें व लेख प्रकाशित एक लम्बे समय से मैं कोकास जी का ब्लॉग पढ़ रह हूँ !
२०१० में नवरात्री के दिनों में जब शरद कोकास जी के ब्लॉग मैंने एक पोस्ट पढ़ी जया मित्र की कविता
हाथ बढ़ाने से
कुछ नहीं छू पाती उंगलियाँ
न हवा
न कुहासा
न ही नदी की गंध
बस कीचड़ में डूबते जा रहे हैं
तलुवे पाँवों के
अरे ! ये क्या है ?
पानी ?
या इंसान के खून की धारा ?
अन्धकार इस प्रश्न का
कोई जवाब नहीं देता
मेरे एक ओर फैली है
ख़ाक उजड़ी बस्ती
दूसरी ओर
इस कविता का बांगला से हिन्दी अनुवाद किया था कवयित्री नीता बैनर्जी ने कविता की कुछ पंक्तियाँ कई दिनों तक दिमाग में घूमती रही मन के शाश्वत सटीकता से अभिव्यक्त रचना ! तब पहली बार शरद कोकास जी ब्लॉग से प्रभावित हुआ !
उन्ही दिनों शरद कोकास जी एक और पोस्ट पढ़ी क्यों मेरी आदत बिगाड़ना चाहती हो ? जो शायद रश्मि जी के ब्लॉग 'अपनी ,उनकी, सबकी बातें 'पर जावेद अख़्तर साहब की एक खूबसूरत नज़्म " वो कमरा "
जो शरद जी ने बैचलर लाइफ के दौरान लिखी थी उसे भी पढ़ने का मौका मिला कविता थी मेरा कमरा
मेरा कमरा
फर्नीचर सिर्फ फर्नीचर की तरह
नहीं इस्तेमाल होता है
एक बैचलर के कमरे में
बुर्जुआ उपदेशों की तरह
मेज़ पर बिछा घिसा हुआ कांच
नीचे दबे हुए कुछ नोट्स
रैक पर रखी मार्क्स की तस्वीर के साथ
चाय के जूठे प्यालों की
तलहटी में जमी हुई ऊब
किनारे पर किन्ही होंठों की छाप
पलंग पर उम्र की मुचड़ी चादर पर फ़ैली
ज़िन्दगी की तरह खुली हुई किताबें
अधूरी कविता जैसे खुले हुए कुछ कलम
तकिये के नीचे सहेजकर रखे कुछ ताज़े खत
अलग अलग दिशाओं का ज्ञान कराते जूते
कुर्सी के हत्थे से लटकता तौलिया
खिड़की पर मुरझाया मनीप्लांट
खाली बटुए को मुँह चिढ़ाता
एक रेडियो खरखराने के बीच
कुछ कुछ गाता हुआ और एक घड़ी
ग़लत समय पर ठहरी हुई
मेरे सुंदर सुखद सुरक्षित भविष्य की तरह
इन्हे सँवारने की कोशिश मत करो
मुझे यह सब ऐसे ही देखने की आदत है
क्यों मेरी आदत बिगाड़ना चाहती हो ?
शारद की ये ये कविता लगभग सभी के दिल के करीब लगे
हर कमरे की एक जुदा दास्ताँ होती है..और हर उम्र का एक जुदा कमरा..अक्सर हमारी जिंदगी की बहते पानी के बीच ऐसे कुछ कमरे ही पत्थर बन कर चुपचाप पड़े रहते हैं..वक्त की चोटें खाते हुए..
शरद कोकास जी लेखन शानदार है उनका उनके अपार स्नेह के कारण ही आज ये पोस्ट लिख पाया हूँ उनके बारे में लिखना शायद मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है....!!
-- संजय भास्कर
२०१० में नवरात्री के दिनों में जब शरद कोकास जी के ब्लॉग मैंने एक पोस्ट पढ़ी जया मित्र की कविता
हाथ बढ़ाने से
कुछ नहीं छू पाती उंगलियाँ
न हवा
न कुहासा
न ही नदी की गंध
बस कीचड़ में डूबते जा रहे हैं
तलुवे पाँवों के
अरे ! ये क्या है ?
पानी ?
या इंसान के खून की धारा ?
अन्धकार इस प्रश्न का
कोई जवाब नहीं देता
मेरे एक ओर फैली है
ख़ाक उजड़ी बस्ती
दूसरी ओर
इस कविता का बांगला से हिन्दी अनुवाद किया था कवयित्री नीता बैनर्जी ने कविता की कुछ पंक्तियाँ कई दिनों तक दिमाग में घूमती रही मन के शाश्वत सटीकता से अभिव्यक्त रचना ! तब पहली बार शरद कोकास जी ब्लॉग से प्रभावित हुआ !
उन्ही दिनों शरद कोकास जी एक और पोस्ट पढ़ी क्यों मेरी आदत बिगाड़ना चाहती हो ? जो शायद रश्मि जी के ब्लॉग 'अपनी ,उनकी, सबकी बातें 'पर जावेद अख़्तर साहब की एक खूबसूरत नज़्म " वो कमरा "
जो शरद जी ने बैचलर लाइफ के दौरान लिखी थी उसे भी पढ़ने का मौका मिला कविता थी मेरा कमरा
मेरा कमरा
फर्नीचर सिर्फ फर्नीचर की तरह
नहीं इस्तेमाल होता है
एक बैचलर के कमरे में
बुर्जुआ उपदेशों की तरह
मेज़ पर बिछा घिसा हुआ कांच
नीचे दबे हुए कुछ नोट्स
रैक पर रखी मार्क्स की तस्वीर के साथ
चाय के जूठे प्यालों की
तलहटी में जमी हुई ऊब
किनारे पर किन्ही होंठों की छाप
पलंग पर उम्र की मुचड़ी चादर पर फ़ैली
ज़िन्दगी की तरह खुली हुई किताबें
अधूरी कविता जैसे खुले हुए कुछ कलम
तकिये के नीचे सहेजकर रखे कुछ ताज़े खत
अलग अलग दिशाओं का ज्ञान कराते जूते
कुर्सी के हत्थे से लटकता तौलिया
खिड़की पर मुरझाया मनीप्लांट
खाली बटुए को मुँह चिढ़ाता
एक रेडियो खरखराने के बीच
कुछ कुछ गाता हुआ और एक घड़ी
ग़लत समय पर ठहरी हुई
मेरे सुंदर सुखद सुरक्षित भविष्य की तरह
इन्हे सँवारने की कोशिश मत करो
मुझे यह सब ऐसे ही देखने की आदत है
क्यों मेरी आदत बिगाड़ना चाहती हो ?
शारद की ये ये कविता लगभग सभी के दिल के करीब लगे
हर कमरे की एक जुदा दास्ताँ होती है..और हर उम्र का एक जुदा कमरा..अक्सर हमारी जिंदगी की बहते पानी के बीच ऐसे कुछ कमरे ही पत्थर बन कर चुपचाप पड़े रहते हैं..वक्त की चोटें खाते हुए..
शरद कोकास जी लेखन शानदार है उनका उनके अपार स्नेह के कारण ही आज ये पोस्ट लिख पाया हूँ उनके बारे में लिखना शायद मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है....!!
-- संजय भास्कर
आपके समीक्षात्मक विश्लेषण में आदरणीय शरद कोकास
जवाब देंहटाएंको जान पाना अद्भुत लगा। कितनी सहजता से आपने
उनकी उपलब्धियों को उकेर दिया शब्दों में सच में सराहनीय है। साथ में जिन कविताओं का चुनाव किया वो आपके लेखक की सार्थकता को प्रमाणित करती है।
बहुत अच्छी लगी आपकी ये समीक्षा।
संजय जी,बधाई स्वीकार करे मेरी और हार्दिक शुभकामनाएँ भी।
संजय जी आपके लेखन की जितनी तारीफ की जाए कम ही होगी .शरद कोकास जी के लेखन और व्यक्तित्व के समान ही उनके प्रति आपका आदर भाव भी अतुलनीय है .
जवाब देंहटाएंशरद कोकस जी को अरसे से ब्लॉग जगत के माध्यम से जानता हूँ और उनकी लेखनी का प्रशंसक रहा हूँ ...
जवाब देंहटाएंआज एक बार फिर से यादें ताज़ा हो गयीं ... प्रणाम है उन्हें ...
बढ़िया लिखा है भाई . उनको पढता रहा हूँ . मेरे प्रिय कवि हैं .कवि और लेखक दोनों को शुभ्क्काम्नाएं .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षात्मक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आलेख। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंशरद कोकास जी के लेखन से परिचय करवाने के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंसुंदर परिचय दिया आपने, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
Now I have to read his work. He appears to be an amazing writer.
जवाब देंहटाएंप्रिय भाई संजय भास्कर , आज आपकी यह पोस्ट पढ़कर मन कमरे में कुर्सी के हैंडल पर लटके उस नम तौलिये सा भीग गया . ब्लोगिंग के प्रारंभिक दिन याद आ गए और वे तमाम मित्र भी याद आये जिनके साथ घर परिवार के सदस्यों जैसा रिश्ता था मैं आभारी हूँ दिगंबर नासवा जी का , ताऊ रामपुरिया जी का ,कविता रावत जी का,अरुण रॉय जी का ,मीना भारद्वाज जी का साथ ही अपने मित्रों सरू सिंघई , सुशील जोशी ,अनिता,और श्वेता सिन्हा जी के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ , साथ ही यह सूचना भी कि मेरी लम्बी कविता 'पुरातत्ववेत्ता' तथा 'देह ' सहित सभी संकलनों की कविताएँ अब कविता कोश पर उपलब्ध हैं . कविता कोश शरद कोकास ,गूगल पर लिख कर इन्हें पढ़ सकते हैं . विशेष रूप से ' देह ' कविता मित्रों से पढ़ने का आग्रह है . आपके प्रति वही स्नेह और प्यार .
जवाब देंहटाएंपरिचय कराने के लिये आभार और कवि को शु्ुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंशरद कोकास जी का परिचय कराने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद। आपने इतना अच्छा आलेख लिखा है कि जो उन्हें नहीं जानते, उनके मन में उन्हें पढ़ने की उत्सुकता जागेगी, जैसे मेरे मन में जागी है । सादर ।
जवाब देंहटाएंमैं ने शरद कोकास जी का लेखन नही पढ़ा है। लेकिन आपकी इतनी अच्छी समीक्षा पढ़ कर बहुत ही उत्सुकता हो रही है। अतः अब जरूर पढूंगी।
जवाब देंहटाएंशरद कोकास जी और उनके कृतित्व से परिचय करने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंआज 3 साल बाद आपने इस पोस्ट की याद दिला दी फिर से बहुत-बहुत शुक्रिया संजय भाई
जवाब देंहटाएं