ये सौभाग्य की बात है कि आकाशवाणी पर कुछ साल पहले कवितायेँ सुना करता था उन्ही दिनों मृदुला जी की रचनाओँ का प्रसारण सुना पर अनसुना कर देता था साहित्य का शौक ही नहीं था पर जब ब्लॉगिंग से जुड़ा और कुछ समय बाद मृदुला जी के ब्लॉग से परिचय हुआ उनकी कविताये पढ़ने को मिली और बहुत कुछ सीखने को मिला और मुझे .... बड़ी माँ के रूप में उनका आशीर्वाद भी मिला अब तक तीन बार मृदुला जी मिला बेहद अपने अपने पन का अहसास .... कभी लगा ही नहीं कि किसी बड़े रचनाकार से मिल रहा हूँ हमेशा ऐसा लगा अपने घर ही जा रहा हूँ इस बार फिर 17 सितंबर 100 कदम का विमोचन और फिर से मुलाकात का एक मौका !
मृदुला जी जब 2014 में पहली बार मिला मिलने पर कुछ पंक्तियों ने मन में ऐसे जन्म लिया :-
उनकी ममता बहुत प्यारी थी
उनका आँचल बहुत सुंदर था
मैं एक छोटे शहर से आया था
उनकी ऊँगली थामे मैं पहुच गया
उनके घर तक था !!
निकल जब
दूर चला जाता है
समय सिमट कर छोटे से
बिंदु में रह जाता है
हलकी सी कोई टीस आँखों में
कुछ खारा सा
अक्सर सीने में कोई मोम पिघल जाता है
जरा जरा सी याद दर्द सा
कहीं सुनी कोई बात
जख्म सा
दबे पाँव कोने में छुपकर
आ जाता है
रिश्तो से विश्वास
निकल जब
दूर चला जाता है !
मृदुला जी जब 2014 में पहली बार मिला मिलने पर कुछ पंक्तियों ने मन में ऐसे जन्म लिया :-
उनकी ममता बहुत प्यारी थी
उनका आँचल बहुत सुंदर था
मैं एक छोटे शहर से आया था
उनकी ऊँगली थामे मैं पहुच गया
उनके घर तक था !!
निकल जब
दूर चला जाता है
समय सिमट कर छोटे से
बिंदु में रह जाता है
हलकी सी कोई टीस आँखों में
कुछ खारा सा
अक्सर सीने में कोई मोम पिघल जाता है
जरा जरा सी याद दर्द सा
कहीं सुनी कोई बात
जख्म सा
दबे पाँव कोने में छुपकर
आ जाता है
रिश्तो से विश्वास
निकल जब
दूर चला जाता है !
मृदुला प्रधान जी का कविता संग्रह " धड़कनों की तर्जुमानी " पिछले कुछ वर्षो में लिखी कविताओं का संकलन है प्रकृति प्रेमी और रिश्तों के विश्वास का संग्रह जिसमे कवयित्री अपनी हर बात को विश्वास और रिश्तों के माध्यम से कहने की कोशिश की है... खेत खलिहान, बरगद का पेड़ ,महानगर की धुप, जाने कितनी ही कवितायेँ और हैं जहाँ प्रकृति के रंगों की छटा के साथ दिल के रंग भी उकेरे हैं कवयित्री ने अपने आप में कुछ अलग सा प्रकृति को देखने और समझने के नज़रिये को भी प्रस्तुत करता है ज़िन्दगी सबका अपना एक परिवेश है जिनका सीधा सा सम्बन्ध मानव जीवन से है !
मृदुला जी का लेखन बहुत ही कमाल का है मेरी और से मृदुला जी को काव्य संकलन धड़कनों की तजुर्मानी के लिए ढेरों शुभकामनाएं !
-- संजय भास्कर
-- संजय भास्कर
मृदुला प्रधान जी की कृति ‘धड़कनों की तर्जुमानी’ की संक्षिप्त किंतु सारगर्भित समीक्षा ।
जवाब देंहटाएंबधाई, आपको और मृदुला जी को ।
bahut sarthak sameeksha
जवाब देंहटाएं'धड़कनों की तर्जुमानी' पुस्तक के लेखन के लिए मृदुला प्रधान जी को बहुत बहुत बधाई..सुंदर समीक्षा.
जवाब देंहटाएंमैं एक छोटे शहर से आया था
जवाब देंहटाएंउनकी ऊँगली थामे मैं पहुच गया
उनके घर तक था !!
बहुत बढ़िया
सुन्दर समीक्षा, बधाई व शुभकामनाएँ !!
समीक्षा के साथ-साथ आपने मृदुला जी के लिए मां के रिश्ते और स्नेह को जिस तरीके से उजागर किया है वहां बेहद प्रभावी और यथार्थ है। बहुत- बहुत शुभकामनाएं और बधाई!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमैं इस दर्शन से वंचित हूँ अभी तक भागिनेय. किन्तु उनसे मिलने की तमन्ना है और जल्द ही मिलूँगा!
जवाब देंहटाएंआपने इतना कुछ कह दिया संजय भास्कर जी ..अच्छा भी लग रहा है ये स्नेह और भावुक भी कर रहा है ..आप किताब पढ़े,उसके बारे में लिखे इसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद . आपकी सहजता और सरलता के कारण आपसे मिलकर लगा जैसे घर का कोई बच्चा हो .खूब खुश रहिये..
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा। मृदुला जी को बधाई और शुभकामनाएँ।
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जवाब देंहटाएंHello ! This is not spam! But just an invitation to join us on "Directory Blogspot" to make your blog in 200 Countries
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'धड़कनों की तर्जुमानी' पुस्तक के लेखन के लिए मृदुला प्रधान जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसारगर्भित समीक्षा भास्कर जी
जवाब देंहटाएं'धड़कनों की तर्जुमानी' पुस्तक के लेखन के लिए मृदुला प्रधान जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंधड़कनों की तर्जुमानी’ की संक्षिप्त किंतु सारगर्भित समीक्षा भास्कर जी
जवाब देंहटाएंमैं एक छोटे शहर से आया था
जवाब देंहटाएंउनकी ऊँगली थामे मैं पहुच गया
उनके घर तक था !!
बहुत बढ़िया
बहुत ही खूबसूरत..हृदय छू लेती कविता।
बहुत आत्मीय प्रसंग . लोग जैसे होते हैं उन्हें कहीं न कहीं अपने पसंदीदा लोग मिल ही जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत आत्मीय प्रसंग . लोग जैसे होते हैं उन्हें कहीं न कहीं अपने पसंदीदा लोग मिल ही जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत आत्मीय प्रसंग . लोग जैसे होते हैं उन्हें कहीं न कहीं अपने पसंदीदा लोग मिल ही जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत आत्मीय प्रसंग . लोग जैसे होते हैं उन्हें कहीं न कहीं अपने पसंदीदा लोग मिल ही जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया है।
जवाब देंहटाएंधड़कनों की तर्जुमानी’ की संक्षिप्त किंतु सारगर्भित समीक्षा भास्कर जी
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित समीक्षा संजय जी ... म्रोदुला जी जानी पहचानी शक्सियत हैं ब्लॉग जगत की ...
जवाब देंहटाएंसारगर्भित समीक्षा
जवाब देंहटाएंVery nice.
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित समीक्षा|
जवाब देंहटाएंधड़कनों की तर्जुमानी' के बहाने बहुत सुन्दर यादगार भेंटवार्ता प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंमृदुला जी को बधाई!
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सूंदर समीक्षा ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सूंदर समीक्षा ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित व सार्थक लेख .
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