बहुत दिनों से पान सिंह तोमर फिल्म देखने की सोच रहा था बहुत चर्चा जो सुनी थी आखिर कल समय मिल ही गया सेट मेक्स पर कल बड़े ध्यान से फिल्म देखी जो बहुत पसंद आई और रात को ९ बजे दोबारा देखी 'पान सिंह तोमर' फिल्म में गाने नहीं हैं !
एक ऐसे नौजवान की कहानी, जो गरीबी के कारण फौज में भर्ती होता है, भूख मिटाने के लिए रेस ट्रैक पर दौड़ता है, देश के लिए मेडल जीतता है, लेकिन एक दिन बंदूक उठाकर डाकू बन जाता है..... दरअसल यह एक सच्ची घटना है,
दोनों फिल्में किसी न किसी रूप में आपको लड़ते रहना सिखाती हैं, जैसा कि पान सिंह तोमर कहते हैं, रेस में एक असूल होता है जो एक बार आपने रेस शुरू कर दी तो उसको पूरा करना पड़ता है, फिर चाहे आप हारें या जीतें..... आप सरेंडर नहीं कर सकते... खैर आज बातें सिर्फ पान सिंह तोमर की करूंगा...
फिल्म में पान सिंह का किरदार बहुत ही स्ट्रोंग बनकर उभरता है, उनका अभिनय, संवाद अदायगी पूरी तरह से आपको बांधे रखते हैं... फिल्म के शुरुआत में ही पान सिंह कहता है कि ''बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में '' फिल्म में सभी किरदार अपनी अपनी जगह पक्की करते हैं, फिल्म कभी भी बोर नहीं करती... बीच बीच में हलके फुल्के हास्य संवाद आपको थोडा मुस्कुराते रहने का मौका देते हैं...
अगर फिल्म के कथानक पर आयें तो पान सिंह हर उस इंसान के अन्दर की आवाज़ है जो सिस्टम से परेशान है, जो देश की आर्मी में इतने साल रहने के बाद में सरकार के खिलाफ ही बन्दूक उठाकर बागी बन जाता है... फिल्म में पान सिंह का वो डायलोग कि सरकार तो चोर है.... देश में आर्मी को छोड़कर सब चोर हैं..... आज के हालात पर करारा तमाचा है.. अपनी कड़क ठेठ बोली में भी पान सिंह हर बार दुखी नज़र आता है, उसके मन की वो टीस बरबस ही उसके चेहरे पर दिख जाती है कि जब उसने देश के लिए इतने मेडल लाये तब उसे किसी ने नहीं पूछा, और जब उसने बन्दूक उठा ली तो पूरा देश उसके बारे में बात कर रहा है... फिल्म पान सिंह और उस जैसे बागियों के बदले की कहानी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है !
फिल्म जब ख़त्म होती है तब तक मन भारी हो चुका होता है, ये फिल्म आपको ये सोचने पर ज़रूर मजबूर करेगी कि आखिर पान सिंह कब तक बनते रहेंगे... ऐसे लोग कहीं बाहर से नहीं आते, ये तो हर गैरतमंद इंसान के अन्दर रहते हैं... पान सिंह आज भी जिंदा है हमारे अन्दर, जब भी किसी के धैर्य का बाँध टूटता है वो खुल कर सामने आता है... फिल्म के अंत में तिग्मांशु देश के उन भुला दिए गए खिलाडियों को याद करना नहीं भूलते जो सरकार की अनदेखी का शिकार हो गए........ कितने पैसे के अभाव में मर गए और कितनो को अपना गोल्ड मेडल तक बेचना पड़ा........!
अगर आप में से किसी ने अभी तक ये फिल्म नहीं देखी तो जरूर देखें और देखने के बाद ज़रूर बताईयेगा कि कैसी लगी .......!फिल्म जब ख़त्म होती है तब तक मन भारी हो चुका होता है, ये फिल्म आपको ये सोचने पर ज़रूर मजबूर करेगी कि आखिर पान सिंह कब तक बनते रहेंगे... ऐसे लोग कहीं बाहर से नहीं आते, ये तो हर गैरतमंद इंसान के अन्दर रहते हैं... पान सिंह आज भी जिंदा है हमारे अन्दर, जब भी किसी के धैर्य का बाँध टूटता है वो खुल कर सामने आता है... फिल्म के अंत में तिग्मांशु देश के उन भुला दिए गए खिलाडियों को याद करना नहीं भूलते जो सरकार की अनदेखी का शिकार हो गए........ कितने पैसे के अभाव में मर गए और कितनो को अपना गोल्ड मेडल तक बेचना पड़ा........!
@ संजय भास्कर
हमें तो पता ही नहीं लगा कि सेट मैक्स पर आ रही है.....
जवाब देंहटाएंबहुत मन है देखने का...आपकी समीक्षा पढकर और उत्सुकता बढ़ गयी.
आभार.
अनु
फिल्म तो नहीं देख पाए लेकिन कहानी पर प्रकाश डालने के लिए आपका आभार.
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत हूँ , पानसिंह तोमर की भूमिका प्रभावशाली थी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संजयजी....आपकी समीक्षा पढ़कर मुझे भी फिल्म देखने की इच्छा हो रही है.. खूब नाम सुना है इस फिल्म का.....
जवाब देंहटाएंऐसी लड़ाई झगड़े की फिल्म देखने का मन ही नहीं करता। किसी भी अत्याचार या हताशा से डाकू बन जाना समस्या का हल नहीं है। यदि यही हल है तो महिलाएं तो सारी ही डाकू बन जाएंगी।
जवाब देंहटाएंbahut satik...sahi me paan singh tomar me irfan me bariya rol kiya he..
जवाब देंहटाएंbahut sundar....
जवाब देंहटाएंपानसिंह तोमर की भूमिका प्रभावशाली थी !बहुत सुन्दर संजय!!
जवाब देंहटाएंमैंने फिल्म देखी है
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छी है ...
सुंदर समीक्षा ...
सही कहा आपने
पान सिंह हर उस इंसान के अन्दर की आवाज़ है जो सिस्टम से परेशान है....
badhiya hai, vaise aapne film dekhne kafi der kar di.
जवाब देंहटाएंsanjay jee ab to lagta hai film dekhnee hee padegee..is beech kafi achhi films release hui hain..sadar badhayee ke sath
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ... मुझे भी इस बार अवसर मिल ही गया इसे देखने का ...
जवाब देंहटाएंकल 18/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' ख्वाब क्यों ???...कविताओं में जवाब तलाशता एक सवाल''
देखने के बाद ही बता रहे हैं --- अच्छी है, पर पता नहीं, कितनी सच्ची है .
जवाब देंहटाएंसही कहा , अंत अच्छा नहीं लगा .
मुझे पता है संजय पानसिंह तोमर एक बहुत ही अच्छी फिल्म है..लेकिन अफसोस नही हाल में देख पाए न ही सेट मैक्स पर देख पाए ..पर जरुर देखने की तम्मना है..याद दिलाने केलिए आभार..
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा पढकर और उत्सुकता बढ़ गयी....:))
जवाब देंहटाएंहमने तो देख ली ये फिल्म और कमाल की लगी ... बहुत दिनों बाद हिंदी सिनेमा में बनती हैं ऐसी फ़िल्में ..
जवाब देंहटाएंYe film dekhne kee badee ichha hai....bahut badhiya likha hai!
जवाब देंहटाएंबढिया समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंइस फिल्म की तारीफ़ सुनकर पहले ही सीडी से देख
जवाब देंहटाएंचुका हूँ,,,,वाकई ये फिल्म देखने लायक,,,,,
लाजबाब समीक्षा,,,,,बधाई,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
बढिया समीक्षा की है आपने .फिल्म हमने देखि है .पान सिंह आखिर तक सकारात्मक ,पोजिटिव रहतें हैं डाकू उनका सिर्फ लिबास है मन नहीं मन आखिर तक राष्ट्र प्रेम से ही संसिक्त रहता है .
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रसतुति ..
जवाब देंहटाएंइस फिल्म के बारे में पढी तो बहुत ..
देखने का मौका अबतक नहीं मिल सका है ..
समग्र गत्यात्मक ज्योतिष
देखी है फिल्म, बहुत ही अच्छा अभिनय किया है...
जवाब देंहटाएंबड़ी सशक्त समीक्षा की है संजय जी आपने फिल्म की ! बड़ी इच्छा थी यह फिल्म देखने की आपकी समीक्षा ने इसे और बढ़ा दिया है !
जवाब देंहटाएंआपने कहा है तो अगली बार आयेगी तब जरूर देखेंगे, इस खूबसूरत समीक्षा के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम
अब तो जरुर देखेंगे
जवाब देंहटाएं:-)
बढिया समीक्षा की है आपने .
जवाब देंहटाएंसंजय भाई वैसे तो मैं फिल्मे कम ही देखता हूँ ,क्योंकि सारा परिवार एक साथ बैठकर फिल्म देख सके, ऐसी फिल्मे बहुत ही कम बनती हैं !पान सिंह तोमर फिल्म की आपने इतनी अच्छी समीक्षा की है तो जब भी वक्त लगेगा जरुर देखूंगा !
जवाब देंहटाएंपानसिंह तोमर की भूमिका प्रभावशाली थी !
जवाब देंहटाएंबढिया समीक्षा की है आपने संजय जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग
विचार बोध पर आपका हार्दिक स्वागत है।
pictur to nahi dekhi hai ...ab awashay dekhungi ...waise ..pecture ya kahani adhiktar sacchi ghatnaon kahi pratibibm hoti hai...thore se kalpna ke sath....
जवाब देंहटाएंपान सिंह तोमर उस ज़ज्बे का नाम है जो कभी हार नहीं मानता ,आदर्श रूप बनाए रहता है आखिर तक .फौज को उसने कहैं भी नहीं लजाया है ,जो पाया है उस पर गौरवान्वित है इसीलिए अपने बेटे को जो फौज में भर्ती ले चुका है क्रूर सम्बन्धी की हत्या करने से रोकता है .
जवाब देंहटाएंjab res suru ko jati hai to fir aap aage ho aakhir me res finishing line ko touch karno hot hai .....!!!
जवाब देंहटाएंmovie acchi hai..maine dekhi hai.. apka review bhi pasand aaya!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया समीक्षा ... यह पिछले रविवार को भी सोनी चैनल पर आ चुकी है
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन पिक्चर...सुन्दर समीक्षा..
जवाब देंहटाएंsolid movie.
जवाब देंहटाएंयही तो विडम्बना है हमारे समाज की. बेहतरीन चलचित्र की उम्दा समीक्षा. आजकल ब्लॉग पर सक्रियता बहुत कम होती जा रही है. सब ठीक है...
जवाब देंहटाएंachha viviran diya, dekhne ka kotuhul jaag gaya. aise hi likhte rahiye
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
ाच्छी समीक्षा । देखें कहाँ हमारे शहर मे सिनेमाघर ही नही है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने। लाजवाब मूवी है।
जवाब देंहटाएं............
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पान सिंह आज भी जिंदा है हमारे अन्दर, जब भी किसी के धैर्य का बाँध टूटता है वो खुल कर सामने आता है...
जवाब देंहटाएंसंजय भाई अच्छी समीक्षा ..अभी हमने भी देखा मन में आक्रोश भर जाता है जोर जबरदस्ती कब्ज़ा , पुलिसिया कमीनापन , दगाबाजी ..चम्बल की दुनिया ऐसे ही नहीं बनी न !
भ्रमर ५
''बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में '' .... सुन्दर समीक्षा.
जवाब देंहटाएंकहानी फिल्म देखते हुए किसी के मुँह से सुन लिया कि अच्छा हुआ यार ये पान सिंह जैसी ट्रैजडी नहीं है तो सोचा कि अच्छा हुआ पान सिंह नहीं देखी लेकिन आपकी टिप्पणी पढ़कर लगा कि अपने आप के साथ ही ट्रैजेडी कर ली इतनी भावपूर्ण फिल्म न देखकर
जवाब देंहटाएंAtyant hi prabhawshaali film hai. paatron ka abhinay utna hi jaandaar!
जवाब देंहटाएंbahut hi badhia samiksha ki aapane sanjay ji
जवाब देंहटाएंye film maine kaafi pahale dekh li thi aur bahut hi shandar film hain
irfan khan ka kaam to jabardast hain aur vo dialogue
" chamabal mein to baagi rahte hain, daaku to parliament mein rahte hain"
पिक्चर तो नहीं देखी पर जानकारी बहुत सटीक |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
जन-सरोकारों से जुड़ी फिल्में प्रभावित करती ही हैं।
जवाब देंहटाएंपान सिंह तोमर ऐसी ही फिल्म है।
अच्छी समीक्षा के लिए आभार।
nice review
जवाब देंहटाएंhavent seen the movie
acchi film hai 2 baar dekh chuki hu.movie haal me bhi tv par bhi
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत हूँ ,वाकई मे फिल्म के अंत मे मन भारी हो गया था !
जवाब देंहटाएं...वाकई ये फिल्म देखने लायक
जवाब देंहटाएंलाजबाब समीक्षा
फिल्म की सुंदर समीक्षा,,,बधाई,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
इरफान का अभिनय बेमिसाल था.... और आपने उतने ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है
जवाब देंहटाएंमैने देखी है और दुबारा फिर देखी । ऐसी फिल्में कम ही आती हैं जो हकीकत बयाँ करती हैं । आपकी समीक्षा भी अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग
जवाब देंहटाएंहै, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर
शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर
हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
Here is my web site ... फिल्म
आपने समीक्षा बहुत अच्छी लिखी है , बस पान सिंह तोमर के जो संवाद लिखे हैं उनको अगर ठीक उसी भाषा(बुन्देलखंडी) में लिखा गया होता जैसे फिल्म में बोले गए हैं तो बात और अच्छी बनती(क्षमा) |
जवाब देंहटाएं"रेस को एक असूल होत है कि एक बार जो आपने रेस सुरु कर दयी तो बाये पूरो करनए परत है , फिर चाहे आप हारौ या जीतौ , आप सरेंडर नईं कर सकते |"
बहुत ही अच्छी फिल्म , बहुत ही अच्छा निर्देशक और बहुत उम्दा कलाकार |
सादर