23 मई 2012

खुद को बांधा है शब्‍दों के दायरे में - - संजय भास्कर



अक्सर हम सभी दूसरो पर
कविता लिखते है
पर क्या कभी किसी ने
अपने आप पर लिखी है कविता
खुद को बांधा है शब्‍दों के दायरे में
किया है खुद का अवलोकन
सूक्ष्‍मता से
शायद नहीं पर 
मैं " भास्कर "
अपने आप पर कविता लिखना चाहता हूँ !
कौन हूँ मैं
और क्या हूँ !
साधारण से परिवार में जन्मा
माता-पिता के अच्छे संस्कार
पा कर बड़ा हुआ
अपनी पढाई पूरी कर
नौकरी करने लगा
जिससे इच्छाओ को पूरा कर सकूं
अपने माता-पिता की
और जीने के लिए
अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने लगा
दुनिया से,
इस छोटी सी जिन्दगी में
मेरा कोई वजूद नहीं 
पर फिर भी 
एक नई शुरुआत कर
...................अपने आप पर कविता लिखना चाहता हूँ !
परखना चाहता हूँ मैं भी
स्‍वयं को शब्‍दों के इस महाज़ाल में... !!!!


@ संजय भास्कर 

105 टिप्‍पणियां:

  1. संजय जी बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने ... बधाई

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  2. kya bat hai ekdam naya vichar khud par kavita.khud ko shabdon me bandhna ..sundar prastuti.

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  3. वाह संजय जी ... शब्दों के माध्यम से खुद की तलाश बहुत अच्छी लगी ... मज़ा आया पढ़ के ..

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  4. ये तलाश निरंतर जारी रहे ... और आप सफल हों अपनी तलाश जारी रहे ...

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  5. साधारण से परिवार में जन्मा
    माता-पिता के अच्छे संस्कार
    पा कर बड़ा हुआ
    अपनी पढाई पूरी कर
    नौकरी करने लगा
    जिससे इच्छाओ को पूरा कर सकूं
    अपने माता-पिता की
    और जीने के लिए
    अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने लगा
    दुनिया से,

    इन पंक्तियों में बहुत सुंदर कविता लिखी है...भाई

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूब ! खुद की तलाश सदैव श्रेयस्कर है...शुभकामनायें !

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  7. वाह ... बहुत खूब, खुद को शब्‍दों के दायरे में रखा है आपने ... बेहतरीन

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  8. खुद को तलाशना बढिया है।

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  9. खुद पर खुले दिल से सत्य स्वीकार करते हुए लिखना सरल नहीं होता |अपने अंदर छिपे
    विचारों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करना सब के बस की बात नहीं |
    आपका यह प्रयास
    सराहनीय हैं |अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई
    आशा

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  10. शब्दों का महाजाल स्वयं को समझने में कम ही मदद करता है लेकिन शुरुआत तो इसी से करनी पड़ती है.

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  11. स्वयं को शब्दों में बाँधना बहुत कठिन कार्य है. सुंदर कविता और सुंदर प्यास.

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  12. सार्थक मनोरथ!!
    शुभकामनाएं वह कविता अलंकारों से सही श्रंगाररस से ओतप्रोत शान्तरस धारा के समान प्रवाहित रहे!!

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  13. खुद को जानना और कहना ही कठिन कार्य है और आपने यह किया है,सो बधाई !
    ...और हाँ,कविता-कर्म सीधे दिल और दर्द से जुड़ा है तो इसलिए सहज भी है जब ऐसा कर सको !

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  15. wah sanjay jee....aadmi apne aap do samajh le bahut badi baat hai..bahut hee acchi rachna..sadar badhayee ke sath

    जवाब देंहटाएं
  16. अच्छी प्रस्तुति संजय भाई, आपने अपने सोच कर कुछ लिखा बहुत बड़ी बात है क्योंकि इंसान को अपने खुद के बारे में किसी के सामने बयाँ करना जरा मुश्किल होता है पर इसके बावजूद आपने ऐसा किया बहुत ही सुन्दर रचना...

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  17. आसान नहीं है खुद को परखना और सच कह पाना....

    बहुत सुंदर भाव संजय जी.....

    सादर.

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  18. बहुत सुन्दर...... एक वक़्त होता है जब इंसान खुद को तलाशता है
    एक शेर याद आया ,,,,,,,,तेरी तस्वीर के चरचे हैं जहान में काश मेरी तस्वीर पर भी नजरें इनायत हों किसी की

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  19. बड़ा कठिन यह काम है , फिर भी साधूवाद |
    करे जो अपना आकलन , वही बड़ा उस्ताद |

    वही बड़ा उस्ताद, दाद देता है रविकर |
    रच ले तू विंदास, कुशल से चले सफ़र पर |

    मात-पिता आशीष, आपकी सुधी कामना |
    हो जावे परिपूर्ण, सत्य का करो सामना ||

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  20. http://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/05/blog-post_23.html

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  21. खुद की तलाश ही सब से ज्यादा ज़रूरी है ...!!सुंदर प्रयोग ....!!शुभकामनायें....

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  22. अपने पर लिखना है
    लिखते चले जाओ
    रुकना मत कभी
    चाहे चांद तक हो आओ।
    अच्छा जा रहे हो ।

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  23. Wah! Kitni sadagee bharee rachana hai!

    जवाब देंहटाएं
  24. दिखाओ खुलके खुद को आइना ,डटके करो सच का सामना ,बड़े भाई दिल संभालना ,दिमाग को खंगालना और ...पूरी करो संजय भाई ... कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    मंगलवार, 22 मई 2012
    :रेड मीट और मख्खन डट के खाओ अल्जाइ -मर्स का जोखिम बढ़ाओ
    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    और यहाँ भी -
    स्वागत बिधान बरुआ :आमंत्रित करता है लोकमान्य तिलक महापालिका सर्व -साधारण रुग्णालय शीयन ,मुंबई ,बिधान बरुआ साहब को जो अपनी सेक्स चेंज सर्जरी के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहें हैं .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

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  25. खुद को समझना
    खुद तो तलाशना बहुत जरुरी है
    तभी तो इन्सान को खुद के पूर्ण या अपूर्ण
    होने का ज्ञान होगा..
    बहुत ही बेहतरीन और सादगीभरी रचना है:-)

    जवाब देंहटाएं
  26. अपनी कमियों को पहचाने बिना कविता अधूरी रहेगी ।
    बढ़िया प्रयास है ।

    जवाब देंहटाएं
  27. अपने आप पर कविता लिखना अच्छा लगा ,
    आपका अपने आप को परखना अच्छा लगा .
    बढ़िया भाव... सुन्दर कविता... शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  28. यही आध्यात्म है, स्वयं को पहचानना। आगे यहीं से रास्ता वीतरागता की ओर जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  29. यही आध्यात्म है, स्वयं को पहचानना। आगे यहीं से रास्ता वीतरागता की ओर जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  30. Kavitayen to bahut padi pr khud pr likhi hui kavita pahli baar padi. Bahut hi saadgi se or sachai se aapne apne man ke bhavo ko ukera hai . Dhanyawad Sanjay bhai.....

    जवाब देंहटाएं
  31. स्वयं को पहचानना, समझना और अभिव्यक्ति देना बहुत मुश्किल होता है और आपने इस कठिन कार्य को बखूबी अंजाम दिया है ! सुन्दर रचना के लिए बधाई संजय जी !

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  32. सही लिखा है संजय जी, खुद को समझ पाना तो मुश्किल है ही परन्तु उससे भी मुश्किल है खुद को शब्दों के दायरे में कैद कर पाना ....... बहुत अच्छा प्रयास है !

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  33. Loved the concept n theme of this poem..
    Awesome writing as ever !!!

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  34. बहुत कठिन है खुद पर कविता लिखना

    सुन्दर कविता

    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  35. bahut hi sunder rachna
    :)
    kabhi mere blog par bhi aaiye
    www.deepti09sharma.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  36. मैं " भास्कर "
    अपने आप पर कविता लिखना चाहता हूँ !
    कौन हूँ मैं
    और क्या हूँ !
    साधारण से परिवार में जन्मा
    माता-पिता के अच्छे संस्कार
    हाँ संजय भाई आत्मावलोकन बहुत जरुरी होता है ...ये भी सुन्दर कविता बनी ..आप का वजूद ही वजूद हो जिन्दगी रंगीन हो लिख डालिए -शुभ कामनाएं -जय श्री राधे -भ्रमर ५

    जवाब देंहटाएं
  37. सच को स्वीकार करना , बहुत हिम्मत का काम होता है ..... सच्चाई को करीब रखना ..... !!
    जब भी अपने पर कविता लिखना .... !!

    जवाब देंहटाएं
  38. मैं " भास्कर "
    अपने आप पर कविता लिखना चाहता हूँ !
    कौन हूँ मैं
    और क्या हूँ !
    साधारण से परिवार में जन्मा
    माता-पिता के अच्छे संस्कार,,,,,,

    अपने शब्दों के माध्यम से खुद की तलाश,रचना बहुत अच्छी लगी,,,,,,बधाई

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

    जवाब देंहटाएं
  39. आपकी पोस्ट 24/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा - 889:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

    जवाब देंहटाएं
  40. abhi bahut kuchh baki hai likhana, apane ko antar se talasho aur phir usako shabdon men dhalo. apani talash kuchh panktiyon men khatm mat karo. abhi saphar bahut aage jana hai aur apani pahachan isase bhi adhik badi banana hai.

    जवाब देंहटाएं
  41. जब हम अपने जीवन के सफ़र में किसी मंजिल पर पहुच जाते है , तो एक पड़ाव पर पहुचकर पीछे मुड़कर देखते है . और अपना मूल्याङ्कन करते है . कि हमने क्या पाया ? क्या खोया ?
    शायद आप भी इस स्थिति पर पहुच गये है , संजय जी !
    अगर हम अपने जीवन में अपना मूल्याङ्कन करते हुए चलते है , तो जीवन सुन्दर बनने लगता है.
    आप भी सुन्दर जीवन की और अग्रसर हो ! इसी शुभकामनायो के साथ आत्म्मुल्याकनात्मक कविता पर बधाई स्वीकार करें !

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  42. ब्लाग पर आना सार्थक हुआ । काबिलेतारीफ़ है प्रस्तुति । बहुत सुन्दर बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्‍तुति
    हम आपका स्वागत करते है..vpsrajput.in..
    क्रांतिवीर क्यों पथ में सोया?

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  43. Really nice attempt.Sanjay Bhaiya.
    title touched my heart...
    keep writing and god bless u.. :)

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  44. बहुत ही विचारणीय प्रश्न। स्वयं को शब्द में बाँधने के लिये आवश्यक है कि स्वयं के अर्थों को समझ सकें।

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  45. अपने आप को परखना सबसे अच्छा काम .....
    शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  46. सुन्दर लेखन "शब्दों के उधेड़ बिन के बिच बहुत ही रोचक कविता" का जन्म | आभार |

    जवाब देंहटाएं
  47. बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने ... बधाई

    जवाब देंहटाएं
  48. अच्छा लिखा है संजय ...
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  49. बहुत सुन्दर कविता संजय भाई.. काफी दिनों बाद कविता आई है आपकी.. निरंतरता बनाये रखें.. शुभकामनाएं...

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  50. मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |

    आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||

    --

    शुक्रवारीय चर्चा मंच

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  51. अपने आप को परखना भी कविता लिखने जैसा ही है।
    सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  52. खुद को शब्दों में बांधना दुरूह कार्य है
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  53. अपने आप पर कविता लिखना चाहता हूँ !
    परखना चाहता हूँ मैं भी
    स्‍वयं को शब्‍दों के इस महाज़ाल में... !!!!
    bahot achcha soche hain.....aur likhe hain.....

    जवाब देंहटाएं
  54. परखना चाहता हूँ अपने आप को
    शब्दों के इस महा जाल में ।

    वाह, सब की इचछा को शब्द दे दिये ।

    जवाब देंहटाएं
  55. खुद से मिलना ,खुद से संवाद करना ,मिलना दृष्टा भाव से खुद से एक बड़ा काम है भविष्य का नीति निर्धारक जैसा .शुक्रिया संजय भाई आपकी ब्लोगिया दस्तक का . कृपया यहाँ भी पधारें -
    बेवफाई भी बनती है दिल के दौरों की वजह . http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  56. स्वंत सुखाया ...जो दिल को अच्छा लगे ...अपने में खुद को खोजना एक अविस्वर्नीय कल्पना हैं ..

    जवाब देंहटाएं
  57. सादगी भरे शब्दों में खुद को खूबसूरती से बाँध लिया...

    जवाब देंहटाएं
  58. aapnebilkul sach likh hai khud par kavita likhna bahut aasaan nahi par aapne badi hi khoobsurti ke apne aapko ya ya apne vyaktitv ko bahut hi sindar shabdo ke saath bayaan kiya hai-----
    bahut bahut hi achhi prastuti
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  59. जिसने खुद को जाना खुद को पहचाना समझो उसने संसार को समझ लिया..लेकिन आज तो लोग दूसरों को जानने की होड़ में लगे रहते हैं ..बहुत सुन्दर भाव संजय

    जवाब देंहटाएं
  60. अच्छी रचना... सुन्दर भाव... वाह!
    हार्दिक बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  61. खुद को जानना और कहना ही कठिन कार्य है.

    जवाब देंहटाएं
  62. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  63. वाह संजय जी ..बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  64. जीवन एक कविता ही तो है, जो लिख सको तो लिख लो, क्योंकि दूसरों का सारा सच हम जानते नहीं और अपना सारा सच नहीं सकते नहीं. खुद पर लिखी तो जायेगी पर शायद अधूरी ही लिखी जायेगी कविता. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  65. लेकिन आसाँ नहीं होता कई बार ख़ुद पर कविता लिखना..क्योंकि हम अक्सर जब कुछ लिखते हैं तो उसके किसी एक हिस्से, कोण पर लिखते हैं पर जब बात ख़ुद की आती है तो ख़ुद का सिर्फ कोई एक हिस्सा परखना ज़रा मुश्किल हो जाता है....

    जवाब देंहटाएं
  66. खुद पर लिखना ...आसन नहीं हैं
    बहुत कम शब्दों में ,खुद को लिख दिया ..जब कि हमने तो सुना हैं ''खुद को लिखना यानी की ..खुद को छिलेने के बराबर हैं ...''

    जवाब देंहटाएं
  67. Bahut Khoob Bhaskar bhai..khud ko shabdon mai talashne ka yeh andaaz nirala hai.. :))

    जवाब देंहटाएं
  68. बेनामी6/01/2012

    आपकी कविता आपका और आपके विचारों का ही तो प्रतिबिम्ब है ,,,,
    फिर भी खुद पर कविता लिखकर खुद को परखना चाहते हैं तो यह और भी अच्छी बात है ... :)
    काफी सुंदर रचना, बधाई !!

    जवाब देंहटाएं
  69. एक सुन्दर प्रयास .....स्वयं से स्वयं का परिचय कराना
    बहुत शुभकामनायें आपको

    जवाब देंहटाएं
  70. यहाँ अदने से अदने का भी महत्व है . एक नई शुरुआत कर
    ...................अपने आप पर कविता लिखना चाहता हूँ !
    परखना चाहता हूँ मैं भी
    स्‍वयं को शब्‍दों के इस महाज़ाल में... !!!!

    फिर मैं तो इंसान हूँ ,देखूं कितना हूँ ,बस इतना ही तो चाहता हूँ ,अपने पे कविता लिखना चाहता हूँ ,अच्छी प्रस्तुति . .कृपया यहाँ भी -

    .


    बृहस्पतिवार, 31 मई 2012
    शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
    शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?

    माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
    साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  71. apne aap ki talash.. bahut hi sundar sanjay bhai..

    जवाब देंहटाएं
  72. bahut baareeki aur sookshmata ke saath likhi gayi kavita hai. sach hai, dusro ko jaanne se pahle zaruri hai khud ko jaannaa

    जवाब देंहटाएं
  73. सच अपने आप को शब्दों में बयां करना बहुत कठिन है ..
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  74. मुश्किल सा होता है खुद को रचना |

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  75. फिर तो ये प्रक्रिया तो जीवन पर्यंत चलने वाली है .........

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  76. परखना चाहता हूँ मैं भी
    स्‍वयं को शब्‍दों के इस महाज़ाल में... !!!!

    ...बहुत खूब! बहुत सुन्दर रचना.....

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  77. बढ़िया है....संजय भाई! लगे रहो।

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  78. किसी मुगालते में न रहें। यह कविता नहीं है। बकवास है इसलिए नहीं कह सकता कि इसके भाव निर्मल हैं, दिल से लिखा है आपने।

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  79. बहुत अच्छा ब्लॉग और पोस्ट है....
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  80. bhasker!!!
    its a lovely starting
    instead of poem it looks like prose n i will call it lyrical prose. keep it up.

    जवाब देंहटाएं
  81. पूरी जिंदगी ही ek कविता hai ... और अपने आप कविता लिखने का मतलब .... apni कमजोरियों को परखना है ...

    जवाब देंहटाएं
  82. आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
    आपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
    आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
    मेरा एक ब्लॉग है

    http://dineshpareek19.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  83. आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
    आपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
    आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
    मेरा एक ब्लॉग है

    http://dineshpareek19.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  84. apne ko sadharan kahna asadharan logon ki nishani hoti hai sanjay jee aapki kavita aur sada jee ke kavita sangrah ka vishleshan bhi accha laga...

    जवाब देंहटाएं
  85. Khud ko khud ki nazar se dekh paana ..aur woh bhi itna nishpaksh aur saaadgi se ...itnaa aasaan nahi'n.....khoobsurat hai aapka lekhan ..aur aapka blog.

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  86. आत्मावलोकन करती रचना के माध्यम से स्वयं को जांचने परखने का बेहतरीन प्रयास, खुद को परखने का साहस हर कोई नहीं कर सकता...
    100वी टिप्पणी स्वीकार करे भाई...
    कुँवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  87. बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति...........

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  88. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  89. waah, sach kaha apne par likhna aasan nhi hai, par likha ja sakta hai.
    yatharth ko bade achhe se prastut karte hain aap.
    shubhkamnayen

    जवाब देंहटाएं
  90. बेनामी7/13/2012

    बहुत खूब ... संजय जी .इसी बात पर मेरी एक छोटी सी कविता देखें ----

    नहीं झांकते अपने गिरहबान में

    छिद्रान्वेषी हैं हम
    आपादमस्तक |

    बीतता है -
    सारा समय हमारा
    बुराई करने में दूसरों की |

    ढूंढते रहते हैं हम
    कमियां , कभी इनकी -कभी उनकी |

    करते रहते हैं दिन -रात
    इधर की बातें
    उधर की बातें ,
    लेकिन कभी भी नहीं करते
    स्वयं की बातें,
    स्वयं से बातें |

    उठाते हैं हम उँगलियाँ दूसरों पर
    किन्तु ,
    कभी भी
    नहीं झांकते
    अपने गिरहबान में |

    जवाब देंहटाएं
  91. बेनामी7/13/2012

    नहीं झांकते अपने गिरहबान में

    छिद्रान्वेषी हैं हम
    आपादमस्तक |

    बीतता है -
    सारा समय हमारा
    बुराई करने में दूसरों की |

    ढूंढते रहते हैं हम
    कमियां , कभी इनकी -कभी उनकी |

    करते रहते हैं दिन -रात
    इधर की बातें
    उधर की बातें ,
    लेकिन कभी भी नहीं करते
    स्वयं की बातें,
    स्वयं से बातें |

    उठाते हैं हम उँगलियाँ दूसरों पर
    किन्तु ,
    कभी भी
    नहीं झांकते
    अपने गिरहबान में |

    जवाब देंहटाएं
  92. अपने शब्दों के माध्यम से खुद की तलाश,रचना बहुत अच्छी लगी,,,,,,बधाई

    जवाब देंहटाएं
  93. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

    जवाब देंहटाएं

एक निवेदन !
आपके द्वारा दी गई प्रतिक्रिया मेरे लिए मूल्यवान है
- संजय भास्कर