बेटे और बेटियो में फर्क क्या यही सभ्य समाज की पहचान है ।
आज हमारे देश के पुरुष प्रधान समाज में जिस तरह से लड़कियों और महिलाओं के साथ भेद भाव किया जाता है उससे पीछा छुड़ाना कोई आसान काम नहीं है पर सामाजिक स्तर पर इस कमी को दूर करने के लिए कड़े उपाय होने चाहिए !
आज के समय में अभीवावक ही बच्चों के शत्रु बनते जा रहे है। सबसे ज्यादा भ्रूण हत्याओं में शिक्षित और शहरी वर्ग के लोग शामिल हैं। एक पुरूष से स्त्री की शक्ति तीन गुना अधिक है, इसलिए कन्या को देवी का दर्जा दिया गया है।
परंपरा में ऎसी कई चीजें आई जिसे हम अंधविश्वास कहने लगे। मां का यह कर्तव्य है कि वह बेटी को अच्छी स्त्री बनना सिखाए। बच्ची के पास ज्ञान नहीं पहुंचता कि किन गुणों के कारण स्त्री है। नतीजा यह है कि दिनों-दिन तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। वह शरीर से तो स्त्री है पर उसके गुण स्त्रिओ जैसे नहीं है। वह पुरूष बन रही है और पुरूष तो पुरूष है ही।
आज लड़कियां कॅरियर की लड़ाई में प्रतियोगी हो गई हैं। वे लड़कों की तरह सोचने लगी हैं। पुरूष सूरज है तो महिला चंद्रमा। महिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए। चंद्रमा के यही गुण हैं लेकिन समस्या यह है कि लड़कियों का इमोशनल लेवल कम हो रहा है। स्थिति यह है कि आज लड़कियां, स्त्री होने के गुण को नहीं समझ रही हैं क्योंकि उनकी माताएं उन्हें इसकी शिक्षा ही नहीं दे रही हैं।
क्या यही सभ्य और मॉडर्न समाज की पहचान है ? बेटी की सबसे बड़ी दुश्मन है हमारी सामाजिक रूढियां। बेटा न हो तो समाज में लोग ताना मारते हैं। जरूरत बेटे और बेटी में अंतर बताने वालों को ताना मारने की है। जिस देश में " इंदिरा गांधी " और " मदर टेरेसा " जैसी हस्तियां हुई, वहां ये दुर्दशा सोच का विषय है। आज भी देखें तो राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष की नेता जैसे बड़े पदों पर महिलाओं का परचम लहरा रहा है। फिर भी लोग यह कुरीति छोड़ने को तैयार नहीं। जरूरत है नई चेतना की,जो सिर्फ शिक्षा के माध्यम से ही आएगी । उदाहरण के तौर पर केरल सामने है। केरल देश का सबसे शिक्षित प्रदेश है और वहाँ पर लिंगानुपात में महिलाओं की संख्या पुरूषों से ज्यादा है.....!!
-- संजय भास्कर
निस्संदेह........ तथाकथित प्रगतिशील वर्ग की मानसिकता आज भी कहीं न कहीं संकीर्णताओं से बंधी हुई है ....... विचारणीय पोस्ट !
जवाब देंहटाएंजरूरत है नई चेतना की,जो सिर्फ शिक्षा के माध्यम से ही आएगी... प्रेरक आलेख ... आभार
जवाब देंहटाएं@सामाजिक स्तर पर इस कमी को दूर करने के लिए कड़े उपाय होने चाहिए !
जवाब देंहटाएंKuchh upay bhi sujhaiye.... kyonki sadiyon se prayas ho raha hai lekin Nari ko uska sthan prapt nahi huaa hai.
@एक पुरूष से स्त्री की शक्ति तीन गुना अधिक है
Apane kaise jana is shakti ko ?
@स्त्री और पुरूष को अलग-अलग रास्तों से गुजरना है।
ye alag karane vale kaun se raste hain janna chahugi.
@महिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए।
kya isaka theka sirf mahilyon ka hi hai?
बिल्कुल सही कहा है आपने ... विचारणीय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं@सामाजिक स्तर पर इस कमी को दूर करने के लिए कड़े उपाय होने चाहिए !
जवाब देंहटाएंKuchh upay bhi sujhaiye.... kyonki sadiyon se prayas ho raha hai lekin Nari ko uska sthan prapt nahi huaa hai.
@एक पुरूष से स्त्री की शक्ति तीन गुना अधिक है
Apane kaise jana is shakti ko ?
@स्त्री और पुरूष को अलग-अलग रास्तों से गुजरना है।
ye alag karane vale kaun se raste hain janna chahugi.
@महिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए।
kya isaka theka sirf mahilyon ka hi hai?
सही कह रहे हो संजय भाई
जवाब देंहटाएंBahut sahi kaha sarthak post.....
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक लेखन संजय जी....
जवाब देंहटाएंवाकई स्त्रियाँ आज बराबरी के फेर में खुद पुरुष बनना चाहती हैं....अपने गुणों का आदर स्त्रियों को स्वयं करना चाहिए..........
और समाज में शिक्षा का अभाव तो है ही....
पूरी सोच में ही जड़ से परवर्तन लाना होगा...
सादर.
अनु
बहुत सार्थक लेखन संजय जी....
जवाब देंहटाएंवाकई स्त्रियाँ आज बराबरी के फेर में खुद पुरुष बनना चाहती हैं....अपने गुणों का आदर स्त्रियों को स्वयं करना चाहिए..........
और समाज में शिक्षा का अभाव तो है ही....
पूरी सोच में ही जड़ से परवर्तन लाना होगा...
सादर.
अनु
संजय भाई
जवाब देंहटाएंसही कहा,सार्थक और विचारणीय पोस्ट
अच्छी और विचारणीय पोस्ट के लिए आपको बधाई
जवाब देंहटाएंhttp://suganafoundation.blogspot.in
behtarin aaur sarthak post
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
समसामायिक लेख...
जवाब देंहटाएंमहिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए। bilkul sahi bat hai sanjay jee par purushon se brabari ke chakkar me mahilayen in gunon se dur hoti ja rahi hain......mera to manna hai ki brabadi mat kro aage niklo par apni aachchaiyon ke sath...acchi abhiwyakti....
जवाब देंहटाएंअरे सर हमारी टिप्पणी कहीं स्पाम से खोजिये....
जवाब देंहटाएं२-३ बार की है....
:-(
बहुत ही संतुलित, विचारोत्तेजक और सामयिक पोस्ट!!!
जवाब देंहटाएंbahut sahi sanjay ji...bahut hi vicharidiy vishay hai... sarthak post
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने
जवाब देंहटाएंविचारणीय पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंall kind of discrimination between two genders must be ended .very relevant post over our social issue .thanks .
जवाब देंहटाएंlike this page and wish indian hockey team for london olympic
सार्थक पोस्ट..
जवाब देंहटाएंआपने मेरा कमेंट डिलिट कर दिया, क्या मैने उसमें कोई आपत्तिजनक लिखा था? अब पुन: कमेंट कर रही हूं। अगर आपने हटाया तो फ़िर उसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट करुंगी।
जवाब देंहटाएं@सामाजिक स्तर पर इस कमी को दूर करने के लिए कड़े उपाय होने चाहिए !
Kuchh upay bhi sujhaiye.... kyonki sadiyon se prayas ho raha hai lekin Nari ko uska sthan prapt nahi huaa hai.
@एक पुरूष से स्त्री की शक्ति तीन गुना अधिक है
Apane kaise jana is shakti ko ?
@स्त्री और पुरूष को अलग-अलग रास्तों से गुजरना है।
ye alag karane vale kaun se raste hain janna chahugi.
@महिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए।
kya isaka theka sirf mahilyon ka hi hai?
@सामाजिक स्तर पर इस कमी को दूर करने के लिए कड़े उपाय होने चाहिए !
जवाब देंहटाएंKuchh upay bhi sujhaiye.... kyonki sadiyon se prayas ho raha hai lekin Nari ko uska sthan prapt nahi huaa hai.
@एक पुरूष से स्त्री की शक्ति तीन गुना अधिक है
Apane kaise jana is shakti ko ?
@स्त्री और पुरूष को अलग-अलग रास्तों से गुजरना है।
ye alag karane vale kaun se raste hain janna chahugi.
@महिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए।
सहमत हूँ आपके विचारों से और शिक्षा के महत्व को समझाना भी बेहद जरूरी है. सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसोच बदलेगी मगर धीरे धीरे ।
जवाब देंहटाएंचिंतनीय विषय ।
prerak prastuti.....
जवाब देंहटाएंसार्थक और विचारणीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंनर और नारी सथूल रूप से दो सत्ताएं हो सकती है ...लेकिन आत्मिक रूप से देखें तो दोनो की सत्ता एक ही है ......बस यही भेद समझ नहीं आया हमें और हम दिन प्रतिदिन अनर्थ किय जा रह है .....!
जवाब देंहटाएं...ज़्यादा तकलीफदेह बात यह है कि इस गैर-बराबरी को बढ़ाने में स्त्रियों की भूमिका ज़्यादा है !
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हो संजय ...इस बदलते समाज में कब बदलाव होगा ....देखते हैं...
जवाब देंहटाएंप्रकृति के दोनों स्तम्भ बराबरी से बढ़ेंगे तभी संतुलन बना रहेगा, बड़ी सार्थक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार ||
शुभकामनाये ||
जो बेटियों को नकार रहे हैं...नहीं समझते कि कल उनके बेटों के लिए बहुएं कहाँ से आयेंगे...?
जवाब देंहटाएंविषय काफी गम्भीर है, मगर समस्या का निधान हमारे घरों से होकर निकलता है।
जवाब देंहटाएंतुम्हारे पास नही है
जवाब देंहटाएंकोई हमसे बड़ा सबूत
हम बेटियाँ न होती-?
न होता तुम्हारा "वजूद"
सार्थक और विचारणीय पोस्ट के लिए बधाई,...
संजय जी.....
सार्थक लेख भास्कर भाई..
जवाब देंहटाएंमॉडर्न समाज में विचारधारा भी मॉडर्न हो तो ये फर्क देखने को नहीं मिलता..समाज में ये नासूर अभी उन्हीं कोनो में है जो सामाजिक विकास की सीडियों की तरफ मुंह फेर के खड़े हैं.. और विडम्बना ये है की जिनका उत्तरदायित्व ऐसे कोनो की सफाई का है उनमे से कई लोग खुद इन्ही कोनो के निवासी हैं..
बहुत बेहतरीन..
जवाब देंहटाएं"शरीर से तो स्त्री है पर उसके गुण स्त्रिओ जैसे नहीं है। वह पुरूष बन रही है और पुरूष तो पुरूष है ही।
जवाब देंहटाएंआज लड़कियां कॅरियर की लड़ाई में प्रतियोगी हो गई हैं। वे लड़कों की तरह सोचने लगी हैं। पुरूष सूरज है तो महिला चंद्रमा। महिलाओं में धैर्य, प्रेम, निष्ठा, दया जैसे गुण होने चाहिए। चंद्रमा के यही गुण हैं लेकिन समस्या यह है कि लड़कियों का इमोशनल लेवल कम हो रहा है। स्थिति यह है कि आज लड़कियां, स्त्री होने के गुण को नहीं समझ रही हैं क्योंकि उनकी माताएं उन्हें इसकी शिक्षा ही नहीं दे रही हैं।"
कुछ स्त्रियाँ, प्रकृति के प्रतिकूल हर हाल में 'मर्द' की बराबरी करने की निरर्थक कोशिस करती हैं उन्हें सार्थकता समझनी ही चाहिए, जो लिंग अनुपात बनाए रखने हेतु भी आवश्यक है.
विचारणीय आलेख.....आभार.
vichaaraniiy va saarthk lekh,
जवाब देंहटाएंआपकी ये पोस्ट यक़ीनन हमारी शिक्षा पद्धति पर वार करती हुई प्रतीत होती है।'
जवाब देंहटाएंआधुनिकता की दौड़ में हम अंधे होते जा रहे है,
आज लड़कियों का पहनावा,रहन-सहन का ढंग सब बदलता जा रहा है और यही करण है की छेड़ छाड़ के मामले बढ़ते ही जा रहे है...
विचारणीय पोस्ट
sahi disha me uttam lekkh ...abhar bhaskar ji .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा आपने संजय भाई..
जवाब देंहटाएंजरूरत है अपनी समझ के बंद दरवाजे को खोलने की...
Sach hai ki shiksha se hi soch badlegi ...
जवाब देंहटाएंSamaj ko Abhi Bahut door jaana hai ...
विचारणीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंmahilao ki situation
जवाब देंहटाएंab bharat mein sudharne lagi hain
fir bhi kuch hisse mein kaafi kharab hain
ek vicharniya post
Aapka kathan satya to hai par ladkiyaan swayam ladkiyon jaisi nahin reh gayi hain. Aadhunikta ki daud mein khud ka astitva kho chuki hain. Yahi haal ladkon ka hai par prakriti ne ladkiyon ko jyada sehensheel aur behtar isiliye hi banaya hai ki wo sudhaar laayein na ki barbaadi. Doosri baat, Mother Teresa was not born in India. She was an Albanian. :)
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar sanjay ji ... is baar mastisk ne modernization ko bade khubsurat dhang se define kiya hai stritva ke bare me !!
जवाब देंहटाएंbut sir ji agar aazadi de hi di hai to fir bandise kyu ?
हिंदुस्तानी महिलाओं का विदेशी सरजमीं पर काबिलियत सिद्ध करना कोई बड़ी बात नहीं है। लगभग हर देश में भारतीय नारी सफलता का परचम लहरा रही हैं....
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख.....आभार....
बहुत सही विचार है संजय |
जवाब देंहटाएंआशा
विषय वाकई अत्यंत विचारणीय है!...हमारा समाज ऐसे ही गलत काम कर रहा है!...सुन्दर प्रस्तुती!....आभार!
जवाब देंहटाएंविचारणीय मुद्दे हैं इस आलेख में
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
बहुत सही..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
bahut achchi baat uthayi aapne mai bhi esi muhim me hun, aapka swagat hai mere blog unnati ki or hamari betiyan par
जवाब देंहटाएंसार्थक व विचरणीय आलेख.
जवाब देंहटाएं"" बेटी की सबसे बड़ी दुश्मन है हमारी सामाजिक रूढि ...""
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्वित विचारणीय अभिव्यक्ति ...
आप ने बिलकुल सही लिखा है आज जरूरत है नई चेतना की,जो सिर्फ शिक्षा के माध्यम से ही आएगी... प्रेरक आलेख ... आभार
जवाब देंहटाएंprerak prastuti...
जवाब देंहटाएंजैसे जैसे लड़की घर से बहार निकल कर काम करने lagegi, तु fasle कम होते jaayenge
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट है संजय जी.हम एक संक्रमण काल से गुजर रहे हैं जहाँ महिलाओं और पुरुषों की भूमिकाओं में परिवर्तन के अनुरूप मनोवृत्तियों में परिवर्तन नहीं आया है.इसलिए विचारों का गड्ड मड्ड होना स्वाभाविक है.स्त्री और पुरुष दोनों को अपनी अपनी मनोवृत्तियों में परिवर्तन लाना होगा जिसके केंद्र में भावनाओं की अहमियत हो.मंजुश्री
जवाब देंहटाएंबस हम भूलवश भी कभी अन्तर ना करे, तो बात बन जाएगी।
जवाब देंहटाएंbahut hi vicharniy avam behtarin post hai...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति, उपरोक्त विचारणीय पोस्ट हेतु आपका आभार.
जवाब देंहटाएंwah wah
जवाब देंहटाएंbadiya.
sochnewali baat hai.....
जवाब देंहटाएंगहन चिन्तनयुक्त प्रासंगिक लेख....इस पर विचार किया जाना चाहिए...
जवाब देंहटाएंसही सोच ..सार्थक प्रस्तुति.....!लगे रहो संजय भाई..!
जवाब देंहटाएंआप का ह्र्दय से बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.....!
अब समय काफ़ी करवट ले चुका है, परन्तु लक्ष़ृय अभी बाकी है
जवाब देंहटाएंशक्ती के सम्मान का लक्षृय अभी बाकी है।।।।
bahut sahi kaha sanjay ji ! logo ki soch dheere dheere badal rhi hai . mera mobile no. 09039438781 hai .
जवाब देंहटाएंHey sanjay ji...hpe u r fine
जवाब देंहटाएंi have started giving voice to my poems...plz visit one of them at
http://www.youtube.com/watch?v=z4wd0WzzC_k
bhaut hi mahatvpoorn lekh badhai sanjay ji
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित बात लिखी है संजय जी ...बहुत सही लिखा है ....हर एक की अपनी बड़ी महत्त्वपूर्ण जगह है उसे समझ के चलने में ही सबकी भलाई है ...!!आज माताओं कि गलती ज्यादा लगती है जो स्त्री सुलभ गुण अपनी बेटियों को नहीं दे पा रहीं हैं ...!!
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट ...!!
बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ....!!
गहन चिन्तनयुक्त प्रासंगिक लेख.
जवाब देंहटाएंसंजय जी,.....आजकल आप नजर नही आ रहे,..क्या बात है .....
MY RECENT POST.....काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
sanjar bhai bahut hi achha aalekh diya aapne ,par is badlav ke liye striyon me jyada sahas lani hogi jo sirf ek stri ke hi koshish se ho sakta hai, kyonki kisi bhi purane panthi ko todne ke liye bahut se agni path se gujrna padta hai aur isme stri hi sahi gujar sakti hai.......
जवाब देंहटाएंआज के समय में अभीवावक ही बच्चों के शत्रु बनते जा रहे है। सबसे ज्यादा भ्रूण हत्याओं में शिक्षित और शहरी वर्ग के लोग शामिल हैं।
जवाब देंहटाएंसंजय भाई अच्छे मुद्दे उठाए हैं औरत बेशक गरमी , सर्दी , पीड़ा मर्द से ज्यादा सहने की ताकत लिए है तभी तो सृष्टि चक्र को चलाये है संतान पैदा करके प्रसवित करके .कृपया अभिभावक करलें शुद्ध रूप .शुक्रिया .
कृपया यहाँ भी पधारें -
सावधान :पूर्व -किशोरावस्था में ही पड़ जाता है पोर्न का चस्का
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
यहाँ भी -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आज के समय में अभीवावक ही बच्चों के शत्रु बनते जा रहे है। सबसे ज्यादा भ्रूण हत्याओं में शिक्षित और शहरी वर्ग के लोग शामिल हैं।
जवाब देंहटाएंसंजय भाई अच्छे मुद्दे उठाए हैं औरत बेशक गरमी , सर्दी , पीड़ा मर्द से ज्यादा सहने की ताकत लिए है तभी तो सृष्टि चक्र को चलाये है संतान पैदा करके प्रसवित करके .कृपया अभिभावक करलें शुद्ध रूप .शुक्रिया .
कृपया यहाँ भी पधारें -
सावधान :पूर्व -किशोरावस्था में ही पड़ जाता है पोर्न का चस्का
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
यहाँ भी -
बुधवार, 9 मई 2012
शरीर की कैद में छटपटाता मनो -भौतिक शरीर
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आपके विचारों से सहमत । मेरी कविता बेटियाँ बहुत कुछ यही कहती है ।
जवाब देंहटाएंsaargarbhit.
जवाब देंहटाएंAabhaar.
विचारणीय आलेख.....आभार...
जवाब देंहटाएं