आज कई दिनों बाद ब्लॉग पढने के लिए ओपन किया तो सबसे पहले समीर लाल जी की रचना ....बुरा हाल है ये मेरी जिन्दगी का...... उसे पढने के बाद अचनाक गुरदेव समीर जी की करीब दो साल पुरानी रचना |
की कुछ लाइन याद आ गई जो आपको भी याद होगी शायद....... !!!!
अर्थी उठी तो काँधे कम थे,
मिले न साथ निभाने लोग
बनी मज़ार, भीड़ को देखा,
आ गये फूल चढ़ाने लोग... !
समीर लाल जी ब्लॉगजगत की ऐसी शख्सियत हैं जिनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है इनका लेखन जिस विषय पर भी हो प्रत्येक शब्द दिल को छूकर गुज़र जाता है चाहे किसी भी विषय पर लिखे शब्द अपने आप बनते चले जाते है जो उनकी ऊर्जावान जीवन शैली का प्रतीक है.........!
.......... मुझे बहुत ही पसंद आई आई समीर लाल जी के बारे में लिखना तो बहुत समय से चाहता था पर समय के आभाव के कारण नहीं लिख पाया पर आज इन पंक्तियो के याद आते ही समीर जी के लिए लिखने का समय निकल ही लिया और सोचा आप सभी को इस रचना से दोबारा रूबरू करवा दूं समीर जी की रचनाओ का कायल हूँ मैं और ब्लॉग जगत में शामिल होने के बाद करीब दो सालो से समीर जो पढ़ रहा हूँ उनके लिखने का अंदाज ही अलग है जो हमे बहुत ही भाता है .......समीर जी का ब्लॉग जब भी पढता हूँ तो बस एक ही शब्द ज़बान पर आता है जय हो गुरदेव समीर जी ! मुझे उनकी हर पोस्ट से कुछ न कुछ सिखने को मिलता है मैं हमेशा यही चाहता हूँ की समीर जी हमेशा मेरा मार्गदर्शन करते रहें ...........!!!
दुनिया दिखावे की :--
अर्थी उठी तो काँधे कम थे,
मिले न साथ निभाने लोग
बनी मज़ार, भीड़ को देखा,
आ गये फूल चढ़ाने लोग...
दुनिया दिखावे की हो चली है. कोई भी कार्य जिसमें नाम न मिले, लोग न जाने- कोई करना ही नहीं चाहता. दिखावा न हो तो बस फिर मैं!!
जिस भी कार्य में मेरा फायदा हो, वो ही मैं करुँगा. संवेदनशीलता मरी. साथ मरी सहनशीलता. अहम उठ खड़ा हुआ दस शीश लेकर. एक कटे और दस और खड़े हो जायें. कोई झुकना ही नहीं चाहता. कोई सहना ही नहीं चाहता.
छोटी छोटी बातें, जो मात्र चुप रह कर टाली जा सकती हैं, वो इसी अहम के चलते इतनी बड़ी हो जाती हैं कि फिर टाले नहीं टलती.
कब और कैसे सब बदला, नहीं जानता मगर बदला तो है.
कुछ दिन पहले किसी बहाव में एक रचना उगी थी:
दो समांतर रेखायें
साथ चल तो सकती हैं..
अनन्त तक..
लेकिन
मिल नहीं सकती...
मिलने के लिए उन्हें
झुकना ही होगा..
आओ!!
थोड़ा मैं झुकूँ
थोड़ा तुम झुको!!
यूँ तो
तुमसे मिलने की चाह में
मैं पूरा झुक जाऊँ
लेकिन
डर है कि
अधिक झुकने की
इस कोशिश में
टूट न जाऊँ मैं कहीं...
और
तुम्हें तो पता होगा!!
टूटे हुए वृक्ष सूख जाया करते हैं!!
- समीर लाल ’समीर’
इसी के साथ समीर जी की एक पुरानी आपको पढवाते है !
...............................समीर की लेखनी से बहुत प्रभावित हूँ समीर जी की लेखनी में बहुत दम है, समीर लाल जी बहुत ही लोकप्रिय लेखक व हर ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले चर्चित टिप्पणीकार है। उनका स्वंय का जीवन भी किसी उपन्यास से कम नहीं है। उनके बारे में लिखना ही किसी बड़ी उपलब्धि है !
और एक बात हमे अबी तक समीर जी मिलने का सोभाग्य ही प्राप्त नहीं हुआ.....पर यह इच्छा कभी तो पूरी होगी !
-- संजय भास्कर
की कुछ लाइन याद आ गई जो आपको भी याद होगी शायद....... !!!!
अर्थी उठी तो काँधे कम थे,
मिले न साथ निभाने लोग
बनी मज़ार, भीड़ को देखा,
आ गये फूल चढ़ाने लोग... !
समीर लाल जी ब्लॉगजगत की ऐसी शख्सियत हैं जिनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है इनका लेखन जिस विषय पर भी हो प्रत्येक शब्द दिल को छूकर गुज़र जाता है चाहे किसी भी विषय पर लिखे शब्द अपने आप बनते चले जाते है जो उनकी ऊर्जावान जीवन शैली का प्रतीक है.........!
.......... मुझे बहुत ही पसंद आई आई समीर लाल जी के बारे में लिखना तो बहुत समय से चाहता था पर समय के आभाव के कारण नहीं लिख पाया पर आज इन पंक्तियो के याद आते ही समीर जी के लिए लिखने का समय निकल ही लिया और सोचा आप सभी को इस रचना से दोबारा रूबरू करवा दूं समीर जी की रचनाओ का कायल हूँ मैं और ब्लॉग जगत में शामिल होने के बाद करीब दो सालो से समीर जो पढ़ रहा हूँ उनके लिखने का अंदाज ही अलग है जो हमे बहुत ही भाता है .......समीर जी का ब्लॉग जब भी पढता हूँ तो बस एक ही शब्द ज़बान पर आता है जय हो गुरदेव समीर जी ! मुझे उनकी हर पोस्ट से कुछ न कुछ सिखने को मिलता है मैं हमेशा यही चाहता हूँ की समीर जी हमेशा मेरा मार्गदर्शन करते रहें ...........!!!
अर्थी उठी तो काँधे कम थे,
मिले न साथ निभाने लोग
बनी मज़ार, भीड़ को देखा,
आ गये फूल चढ़ाने लोग...
दुनिया दिखावे की हो चली है. कोई भी कार्य जिसमें नाम न मिले, लोग न जाने- कोई करना ही नहीं चाहता. दिखावा न हो तो बस फिर मैं!!
जिस भी कार्य में मेरा फायदा हो, वो ही मैं करुँगा. संवेदनशीलता मरी. साथ मरी सहनशीलता. अहम उठ खड़ा हुआ दस शीश लेकर. एक कटे और दस और खड़े हो जायें. कोई झुकना ही नहीं चाहता. कोई सहना ही नहीं चाहता.
छोटी छोटी बातें, जो मात्र चुप रह कर टाली जा सकती हैं, वो इसी अहम के चलते इतनी बड़ी हो जाती हैं कि फिर टाले नहीं टलती.
कब और कैसे सब बदला, नहीं जानता मगर बदला तो है.
कुछ दिन पहले किसी बहाव में एक रचना उगी थी:
दो समांतर रेखायें
साथ चल तो सकती हैं..
अनन्त तक..
लेकिन
मिल नहीं सकती...
मिलने के लिए उन्हें
झुकना ही होगा..
आओ!!
थोड़ा मैं झुकूँ
थोड़ा तुम झुको!!
यूँ तो
तुमसे मिलने की चाह में
मैं पूरा झुक जाऊँ
लेकिन
डर है कि
अधिक झुकने की
इस कोशिश में
टूट न जाऊँ मैं कहीं...
और
तुम्हें तो पता होगा!!
टूटे हुए वृक्ष सूख जाया करते हैं!!
- समीर लाल ’समीर’
इसी के साथ समीर जी की एक पुरानी आपको पढवाते है !
...............................समीर की लेखनी से बहुत प्रभावित हूँ समीर जी की लेखनी में बहुत दम है, समीर लाल जी बहुत ही लोकप्रिय लेखक व हर ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले चर्चित टिप्पणीकार है। उनका स्वंय का जीवन भी किसी उपन्यास से कम नहीं है। उनके बारे में लिखना ही किसी बड़ी उपलब्धि है !
और एक बात हमे अबी तक समीर जी मिलने का सोभाग्य ही प्राप्त नहीं हुआ.....पर यह इच्छा कभी तो पूरी होगी !
-- संजय भास्कर
हम सब समीर जी की लेखनी से प्रेरणा ग्रहण करते रहें हैं। ब्लॉग जगत को एक उचाई तक पहुंचाने में उनके योगदान को कौन भुला सकता है। सबसे ज़्यादा अहम बात यह रही कि वे नए-से-नए ब्लॉगर्स को सदैव प्रोत्साहित करते रहे हैं।
जवाब देंहटाएंउनका लिखा बहुत ही गाम्भिर्य लिए हुए रहता है और उसमें कई महत्वपूर्ण तत्व समाहित होते हैं।
शुभकामनाएं व बधाई।
बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंआज
एक बढ़िया विधिवत
परिचय प्राप्त हुआ ||
समीर जी का स्नेह बड़ों और छोटों के लिए बराबर है !
जवाब देंहटाएं..और हाँ,उनका नेटवर्क गज़ब का है !
वनस्पति की हरियाली के लिए जिस तरह से क्लोरोफिल जरूरी है, वह स्थिति ब्लॉग लेखकों केलिए समीरजी की है।
जवाब देंहटाएंparichay ka ek aur andaz... blogging me sameerji aadharstambh hain... sabke inspiration ...
जवाब देंहटाएंsabse pahle to gurudev ke charno me pradam....!!
जवाब देंहटाएंaur bhaiya me khud gurudev ka fan hu ...maje ki bat to ye hai ki wo bhi CA hai..!!
apka abhar fir se purani rachnawo ko padhane ke liye.
संजय भाई
जवाब देंहटाएंये जो समीर दादा हैं न
न्यू-मीडिया के सरताज़ों में से एक हैं..
शुभकामनाएं व बधाई।
जवाब देंहटाएंसमीर जी के लिए बहुत अच्छा लिखा है संजय आपने |क्यूँ न हो कोई प्रभावित जब उसकी लेखनी सीधे दिल में उतरती है |
जवाब देंहटाएंसमीर तो बस 'समीर' हैं ...
जवाब देंहटाएंसलाम समीर लाल जी को
हम भी समीरजी की रचना की बेसब्री से इन्तजार करते हैं। "थोड़ा तुम झुको और थोड़ा मैं झुकूं" इन पंक्तियों से एक बात निकलकर आयी कि यदि दोनों ही झुक जाएंगे तो दूरी बराबर बनी रहेगी। एक झुके और दूसरा ऊपर उठे तभी तो नजदीकियां बनेगी भाई। इसलिए पति को झुकने दो और पत्नी को उठने दो। तभी मिलन होगा।
जवाब देंहटाएंनिसंदेह ! गुरुदेव समीर लाल जी जैसी सख्शियत के इर्द-गिर्द ( ब्लागस्पाट में ) स्वयं को पाकर मुझे भी अपार हर्ष होता है....किसी शायर ने क्या खूब कहा है की - लिखा था नशीब में होना पडोसी किसी शहंशाह का..........
जवाब देंहटाएंउपरोक्त बेहतरीन प्रस्तुति हेतु आपका आभार...............
sameer bhaiya ka jabab nahi:)
जवाब देंहटाएंयूँ तो
जवाब देंहटाएंतुमसे मिलने की चाह में
मैं पूरा झुक जाऊँ
लेकिन
डर है कि
अधिक झुकने की
इस कोशिश में
टूट न जाऊँ मैं कहीं...
और
तुम्हें तो पता होगा!!
टूटे हुए वृक्ष सूख जाया करते हैं!!
बहुत सही...
कुछ छू गया कहीं चुपके से...!!
तारीफ किसकी करूँ....?
समझ नहीं पा रही हूँ....!!
आपकी लम्बी अनुपस्थिति बड़ी नुकसानदायक रही.....!
sameer ji ka parichay karvane ke liye shukria :)
जवाब देंहटाएंwelcome to माँ मुझे मत मार
समीर जी तो समीर जी ही हैं ………तुमने बहुत अच्छा परिचय दिया संजय
जवाब देंहटाएंलेकिन
जवाब देंहटाएंडर है कि
अधिक झुकने की
इस कोशिश में
टूट न जाऊँ मैं कहीं...
और
तुम्हें तो पता होगा!!
टूटे हुए वृक्ष सूख जाया करते हैं!!wakayee sameer jee bahut sunder likhte hain.....aur ye kavita to bemisaal hai.
सादगी और विनम्रता का साक्षात रूप और बेहतरीन शख्शियत हैं समीर भाई !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
समीर जी की रचनाएं दिल को छू जाती है। आभार।
जवाब देंहटाएंदो समांतर रेखायें
जवाब देंहटाएंसाथ चल तो सकती हैं..
अनन्त तक..
लेकिन
मिल नहीं सकती...
bilkul sahi n satik panti.....
bahut acchi lgi prastuti padhwane ke liye dhanyavad sanjay jee....
Sameerji ki sakhsiyat se roobaroo karane ke liye Dhnyvaad Bhaskar Bhai.. :)
जवाब देंहटाएंसमीरलाल जी को यूं तो जानते हैं पढते हैं । आपके द्वारा उनका यह परिचय बहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंaccha parichaya.wese samay samy par unko padhti rahti hu
जवाब देंहटाएंसमीर जी को तो अकसर पढ़ती रह्ती हूँ ,लेकिन तुम्हारी लेखनी दवारा पढ़ने पर और भी अच्छा ौर रोचक लगा...धन्यावाद संजय...
जवाब देंहटाएंआपने समीर जी की बहुत सुन्दर रचनाओं से रूबरू कराया है!...समीर जी का और आपका...बहुत बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंbahut sudnar sanjay bhayi
जवाब देंहटाएंbadhayi ho . sameer ji se ham sabhi prabhvit hote rahte hai .aapne bahut accha likha hai .
vijay
बेहतरीन शख्शियत का परिचय देने के लिए आपका आभार... अनमोल रचनाओं के मालिक हैं समीर जी ...
जवाब देंहटाएंsanjay jee main bhee aapki baat se purntay sahmat hoon...sameer jee ka andaj wakai me nirala hai.wakai unke lekh ko bina poora padhe hata hee nahi jaata..aapki tarah main bhee unki rachnaaon ka bahut bada prashanshak hoon..maine blog jagat se judne ke baad unki lagbhag har kriti padhi ..par yah behtarin kriti nahi padhi the..aapko is hetu dhnywad ..sadar badhayee aaur amantran ke sath
जवाब देंहटाएंवाह ! बढ़िया परिचय...
जवाब देंहटाएंसमीर ठंडी हवा के झोंके जैसे हैं...उन्हें पढना ताजगी के एहसास से रूबरू होना है...ऐसे जिंदा दिल लोग बहुत कम होते हैं जो अपनी ज़िन्दगी के साथ साथ दूसरों की ज़िन्दगी में भी फूल खिलाते चलते हैं...समीर भाई को मिलने का मौका मिल चुका है...लेकिन उस मिलन को मिलन कहना मिलन शब्द का अपमान होगा...इसलिए उनसे फिर मिलने की मुझे भी उतनी ही तमन्ना है जितनी आपको...
जवाब देंहटाएंनीरज
निसन्देह!
जवाब देंहटाएंwah..sarahniye....welcome back
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसमीर जी की लेखनी के हम भी कायल हैं ।
जवाब देंहटाएंparichay karvaane ke liye shukriya,....
जवाब देंहटाएंसमीर जी के व्यक्तित्व से विस्तृत परिचय कराने के लिए आपका आभार संजय जी.
जवाब देंहटाएंसमीर जी के बारे में आपने बहुत अच्छा लिखा है संजय जी ! वे एक उत्कृष्ट श्रेणी के लेखक तो हैं ही , नये ब्लॉगर्स के लिये प्रेरणा का स्त्रोत भी हैं और हर तरह से उनके सहायक भी हैं ! उनके बारे में आपके इतने अच्छे विचार जान कर बहुत प्रसन्नता हुई ! आप दोनों को बहुत सारी शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमैं भी कायल हूँ समीर जी के लेखन की..........कौन नहीं है?????
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी से उनको जान अच्छा लगा.....
ढेरों मंगलकामनाएं आपको.......समीर जी को और आप दोनों की लेखनी को.....
सादर
अनु
Bahut achha laga padhke....bede achhe se parichay karvaya hai aapne!
जवाब देंहटाएंसमीर जी से मुलाक़ात कभी होगी या नहीं मालुम नहीं पर इंसान वो बहुत ही अच्छे हैं..नए लोगो को सम्मान देना कोई इनसे सीखें ...बहुत अच्छा परिचय दिया संजय,,,, बधाई !
जवाब देंहटाएंमेरा समीर जी से परिचय मात्र इतना है कि वो कभी-कभार मेरे ब्लॉग पे आते हैं और पोस्ट्स पे टिप्पणी करते हैं...पर,संजय जी इससे आगे का..इससे अधिक परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंshanndar parichay karane ke liye shukriya...........Jai Sameer baba..............aur Sanjay ji aapki bhi jai.......jo aapne hume itne visatar se parichay karaya ....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbht badhiya sanjay bhaiya.........
जवाब देंहटाएंbade dino baad apne kuch likha aur bht hi badhiya likha....:-)
mujhe yaad hai jab apne meri ek kavita apne blog par post ki thi aur jab shri Sameer laal ji k comnts aaye the tab apne hi bataya tha ye "No.1 Blogger" hai......
समीर लाल जी की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति........
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
आपकी कलम से आदरणीय समीर जी के बारे में पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंसमीर भाई जी को ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ!
समीरलालजी की उपस्थिति पूरे ब्लॉगजगत के लिये प्रेरक है...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसमीर- जीवन के लिये अनिवार्य तत्व. और समीर लाल जी- ब्लाग जगत का अनिवार्य अंग..
जवाब देंहटाएंआप बिल्कुल अपने नाम को सार्थक करते हैं, भेद भाव से परे सदैव नयी ऊर्जा के साथ , नये विचारोम के साथ , नयी रचना के साथ आते हैं
संजय अच्छे लेख के लिये बधाई......
समीर जी उन विरले व्यक्तित्व में से एक हैं जिनके विचार आम वो ख़ास दोनों के लिए एक सामान होते हैं , समीर जी केवल हिंदी ब्लॉगिंग को ही नया आयाम नहीं दिया है , अपितु हिंदी ब्लॉगर को भी एक उंचा उठाया है ...उन्हें उनके होने का एहसास कराया है , सचमुच प्रेरक है हिंदी ब्लॉग जगत में समीर जी की उपस्थिति !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया .....ईश्वर करे आपकी इच्छा जल्दी ही पूरी हो ..समीर लाल जी से मिलने की .....आभार
जवाब देंहटाएंआपकी कलम से समीर जी के बारे में पढना बहुत अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद!
Bahut sarthk or sadhi huyi post.badi khubsurati se parichya diya h aapne sarvsammati se no. 1 blogger ka...
जवाब देंहटाएंKunwar ji
समीर जी पर लिखने के लिए आपका आभार संजय जी //
जवाब देंहटाएंसम्मर जी मेरे भी ब्लॉग पर आ जाते है और टिप्पणी दे डालते है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति संजय जी और जानदार लाइन
जवाब देंहटाएंअर्थी उठी तो काँधे कम थे,
मिले न साथ निभाने लोग
बनी मज़ार, भीड़ को देखा,
आ गये फूल चढ़ाने लोग... !
ब्लॉग जगत के गुरुदेव से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार..मेरी यही कमाना है की आपकी समीर जी से जल्दी मुलाकात हो जाये......शुभकामनाए......
जवाब देंहटाएंसंजय और आप सभी के स्नेह का अत्याधिक आभार....अभिभूत हूँ.
जवाब देंहटाएंआप का ह्र्दय से बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.....!
बढि़या आलेख।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आप दोनों को।
संजय जी ... इसी लिए तो कहते हैं समीर भाई दा जवाब नहीं ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया श्रीसंजय भाई ...
जवाब देंहटाएंश्री समीर जी से परिचय करवाने के लिए आपका आभार..
बहुत अच्छा लगा उनकी रचनाएँ पढ़ कर.
शुभकामनाएँ.
आपने एक बेहतरीन शख्शियत के बेहद खूबसूरत पक्ष को उजागर किया है!
जवाब देंहटाएंश्रीसंजय भाई आभार इस प्रस्तुति के लिए!
श्रीसंजय भाई
जवाब देंहटाएंश्री समीर जी से मुलाक़ात एक न एक दिन जरुर होगी ....आपका छोटा भाई सवाई
श्रीसंजय भाई
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणी कहाँ गई ? स्पैम में देखिएगा ...
समीर जी का लेखन सदैव उत्कृष्ट रहा है और उनकी टिप्पणियां नए ब्लॉगर्स को सदैव उत्साहित करती रही हैं....
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंसमीर जी को पढ़ने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ. उड़न तश्तरी के अलावा उनकी एक पुस्तक भी पढ़ी हूँ. उनकी लेखनी शैली बहुत रोचक और अनूठी है. समीर जी की ख्याति और बढे, शुभकामना है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएंबहती हवा का झोंका और उसे एक पोस्ट में समेटना लाजवाब !!!
जवाब देंहटाएंसंजय जी ,आपकी पोस्ट पढ़ कर टिप्पणी के लिए कई बार सोचा ,१०० से अधिक महानुभाओं की कातर लगी है सोचा बधाई ही लिख दूँ .. हार्दिक बधाई .........
जवाब देंहटाएंसमीर जी तो बस समीर जी हैं, आज उनके गृह नगर में हूँ, सौभाग्य की बात है कि जबलपुर में उनसे मुलाकात हुई, सीधासादा सरल व्यक्तित्व, सदा मुख पर मुस्कान, मिलनसार....बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंMujhe to sabse achhi baat to ye lagi ki hamaari pehli hi baatcheet mein Sameer Uncle ne itne sneh se kaha ki kabhi aao.. ki main to mugdh ho gaya... bilkul bahut kuchh seekhne ko hai inse...aur achhi baat hai ki hum sabhi ko ye sneh prapt ho raha hai... :)
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं व बधाई....
जवाब देंहटाएंकल 10/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
परिचय करवाने का खूबसूरत अंदाज बहुत २ बधाई और शुभकामनायें :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर तरीके से समीर लाल जी का परिचय करवाया है |कविता बहुत शानदार है |
जवाब देंहटाएंआशा
अधिक झुकने की
जवाब देंहटाएंइस कोशिश में
टूट न जाऊँ मैं कहीं...
और
तुम्हें तो पता होगा!!
टूटे हुए वृक्ष सूख जाया करते हैं!!
बिलकुल सही कहा आपने ..समीर लालजी की बात ही कुछ और है आपकूर समीर लाल जी को ढेरों शुभकामनायें और बंधाई
सुन्दर अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंसमीर जी के बारे में बिलकुल सही लिखा आपनें, बधाई
जवाब देंहटाएंयह तो समीरजी का ही प्रोतसाहन है जिस कारण मै
जवाब देंहटाएंसतत लिख रहा हूँ.
हाँ परन्तु उनकी एक अच्छी सलाह का पालन नही कर रहा क्योंकि यह मेरी मूलभूत कमी है.
केवल लिखता ही रहता हूँ, दूसरों के विचारों को पढने के प्रति उदासीन हूँ. साथ ही मुझे भी कोई पढता है या नही, इसका भी ख्याल नही रखता.
समीरजी अभिव्यक्ति के धनी हैं, साहित्यजगत के सच्चे सेवक हैं - उन्हें प्रणाम
समीर जी का ब्लॉग जब भी पढता हूँ तो बस एक ही शब्द ज़बान पर आता है जय हो गुरदेव समीर जी ! ..
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई संजय जी सुन्दर विवेचना और समीक्षा आप की तभी तो हम उड़न तस्तरी कहते हैं न ..कुछ अद्भुत कुछ अजीब ..गहन मन को छू जाने वाला ..समीर जी को ढेर सारी शुभ कामनाये दीजियेगा साथ ही आप भी स्वीकारियेगा
भ्रमर ५
sameer ji ka lekhan ke kshetr men virat vyaktitv hai ....achhi post ke liye badhai
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट...समीरजी अभिव्यक्ति के धनी हैं....
जवाब देंहटाएंसमीर जी हमारे सीनियर है उनके बारे में बिलकुल सही लिखा आपनें, बधाई...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट .
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
अर्थी उठी तो काँधे कम थे,
जवाब देंहटाएंमिले न साथ निभाने लोग
बनी मज़ार, भीड़ को देखा,
आ गये फूल चढ़ाने लोग...
वाह , क्या खूब लिखा , समीर जी.
समीर जी का ब्लॉग जगत में योगदान अविस्मर्णीय है.
एक अच्छे लेखक से परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंसमीर जी की लेखनी से मै भी प्रभावित हूँ !
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख आभार !
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर तरीके से समीर लाल जी का परिचय करवाया है संजय ......
जवाब देंहटाएंsameer ji ke baare me jaan ke achcha laga...
जवाब देंहटाएंaaj bahut dino baad main bhi aaya hun kuch naye najranon ke sath...
gar mile waqkt to aap bhi padhaaren mere blog pe... jhute mute bahanon ke sath...
कभी कभी लगता है,
तुमको,
बस तुमको सुनता रहूँ...
कभी कभी लगता है,
तुमसे दिल की सारी बात कह दूँ...
http://mymaahi.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
एक उत्कृष्ट रचनाकार से परिचय कवने के लिए धन्यवाद.... निस्संदेह दोनों ही रचनाएँ बेहद खूबसूरत है!
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा दिया गया विस्तृत विवरण बहुत ही अच्छा लगा आदरणीय संजय जी आपका आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया परिचय...समीर जी की रचनाएँ पढ़ती हूँ,अनूठी सोच और शैली में लिखी होती हैं|
जवाब देंहटाएंआप दोनों को शुभकामनाएँ!
bahut bahut dhanyawad sir ji .... faldar vriksho ke gungaan sunkar ... lataye harshit ho hi jati hai .... samir lal sir ji ki rachna ka swad chakhne ke baad bahut harsh mahsus kar raha hu !!! bahut hi sundar dhang se prastut kiya hai !!!
जवाब देंहटाएंसमीर जी पर आपकी जानकारी प्रेरणास्पद रही...
जवाब देंहटाएंबांटने के लिए शुक्रिया !!
समीर जी की बेहतरीन कविता पढ़वाई आपने। मुझे यह कविता बहुत पसंद है। आपकी पसंद की प्रशंसा करनी पड़ेगी।
जवाब देंहटाएंशादी के बाद गुरू गोविंद दोनो याद आते हैं:)
आप का ह्र्दय से बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.....!
बहुत सुन्दर । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआज फिर से पढ़कर अभिभूत हुआ.... :)
जवाब देंहटाएं