( चित्र गूगल से साभार )
ज़िन्दगी से लम्हे चुरा बटुए मे रखता रहा !
फुरसत से खरचूंगा बस यही सोचता रहा !!
उधड़ती रही जेब करता रहा तुरपाई !
फिसलती रही खुशियाँ करता रहा भरपाई !!
इक दिन फुरसत पायी सोचा खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े वो लम्हे खर्च आऊं !!
खोला बटुआ...लम्हे न थे जाने कहाँ रीत गए !
मैंने तो खर्चे नही जाने कैसे बीत गए !!
फुरसत मिली थी सोचा खुद से ही मिल आऊं !
आईने में देखा जो पहचान ही न पाऊँ !!
ध्यान से देखा बालों पे चांदी सा चढ़ा था,
था तो मुझ जैसा पर जाने कौन खड़ा था ..!!
ये पंक्तियाँ मझे SMS में मिली, अच्छी लगी तो ब्लॉग पर आप सब से साँझा कर लीं !!
-- संजय भास्कर
17 टिप्पणियां:
सच में बेहद उम्दा... सुंदर भावपूर्ण सृजन है संजय जी...साझा करने के लिए अति आभार आपका।
उधड़ती रही जेब करता रहा तुरपाई !
फिसलती रही खुशियाँ करता रहा भरपाई !!
बहुत खूब.....,जिन्दगी का फलसफा बड़ी खूबसूरती से बयान हुआ है इस रचना में ....,बहुत खूबसूरत सृजन ।
एक एक शब्द जीवन दर्शन करता हुआ...... मैंने भी ये रचना पढ़ी थी ,सादर नमन
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3198 में दिया जाएगा
धन्यवाद
बेहद भावपूर्ण रचना
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 29 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहद हृदयस्पर्शी
अच्छा किया जो साझा किया.
याद दिला दिया
वक़्त रहते
तो मैंने
झटपट बटुआ खोला
और बीन-बीन कर
जो भी शाश्वत था
वो सब
स्मृति और अनुभूति के
बटुए में रख लिया.
Very Nice.....
बहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं संजय जी ।
बहुत ही भावपूर्ण सृजन....
खोला बटुआ...लम्हे न थे जाने कहाँ रीत गए !
मैंने तो खर्चे नही जाने कैसे बीत गए !!
वाह!!!
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं सर..!!!
जिन्दगी का फलसफा बड़ी खूबसूरती से बयान हुआ है
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 02 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
फुरसत मिली थी सोचा खुद से ही मिल आऊं !
आईने में देखा जो पहचान ही न पाऊँ !!......बिलकुल सही.
बेहद सुंदर कविता
jeevan ka sach.sundar rachna..
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