देश के 21 प्रतिशत बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ देने की मुख्य वजह अब भी उनकी गरीबी है।
तमाम दावों और वादों के प्रचार-प्रसार से देश में पढ़ाई-लिखाई की तस्वीर भले ही गुलाबी लगने लगी हो, लेकिन जमीनी हकीकत अब भी ज्यादा नहीं बदली है। आलम यह है कि सरकार चाहकर भी सभी बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा करने में नाकाम रही है। तमाम तरक्की के दावों के बीच देश के 21 प्रतिशत बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ देने की मुख्य वजह अब भी उनकी गरीबी है।
देश में पढ़ाई की इस बदरंग तस्वीर का खुलासा राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन की ओर से कराए गए सर्वे की बुधवार को यहां जारी रिपोर्ट से हुआ है। भारत में शिक्षा, भागीदारी एवं खर्च पर केंद्रित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय [एनएसएसओ] की रिपोर्ट बताती है कि 20 प्रतिशत बच्चों में पढ़ाई को लेकर कोई रुचि ही नहीं है। नौ प्रतिशत बच्चों के खुद माता-पिता को ही नहीं लगता कि पढ़ाई में कुछ रखा है। इसी क्रम में दस प्रतिशत महज इसलिए छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें उनके मन मुताबिक पढ़ने का मौका नहीं मिलता। जबकि दस प्रतिशत ऐसे भी हैं जो पढ़ाई के बोझ या फेल होने के डर के कारण बीच में स्कूल जाना छोड़ देते हैं।
इससे एक सच्चाई यह भी उभरी कि जिसमें 22 प्रतिशत अभिभावकों ने शिक्षा को जरूरी न मानते हुए अपने बच्चों को स्कूलों में दाखिला ही नहीं दिलाया। बच्चों को दाखिले से ही दूर रखने वाले 21 प्रतिशत अभिभावकों ने तो आर्थिक तंगी को मजबूरी बताई, जबकि 33 प्रतिशत मां-बाप की बच्चों को पढ़ाने में खुद की ही रुचि नहीं थी।
मसलन तकनीकी शिक्षा में ग्रामीण क्षेत्र के एक छात्र का सालाना औसत निजी खर्च जहां 27,177 रुपये है, वहीं नगरीय क्षेत्र के एक छात्र का सालाना औसत निजी खर्च 34822 रुपये है। इसी तरह व्यावसायिक शिक्षा में यह निजी खर्च ग्रामीण छात्र पर जहां 13699 रुपये तक सीमित है, वहीं नगरीय क्षेत्र का छात्र अपने ऊपर सालाना औसतन 17016 रुपए खर्च करता है।
सर्वे बताता है कि कक्षा एक से आठ तक की कक्षाओं में राष्ट्रीय स्तर पर सकल उपस्थिति 80 प्रतिशत है।
Achee Jaankaari aankdon ke saath .. Sanjay ji .... abhi bahut door jana hai apne desh ko is disha mein ..
जवाब देंहटाएंसंजय,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और सामयिक मुद्दा उठाया है...
यह भी सच है की बहुत से गरीब तबके के माता -पिता ही पढाई के पक्ष में नहीं होते...उसके लिए अर्थार्जन ज्यादा मायने रखता है...जब तक सरकार गरीबी रेखा के नीचे वाले परिवारों की आर्थिक सहायता का प्रबंधन नहीं करेगी इस समस्या से निदान नहीं हो सकता है...
बहुत अच्छा मुद्दा..इसपर अच्छी चर्चा हो सकती है..
लिखते रहो...
ना जानें कैसी कैसी सरकारी योजनाएं, फ़ाईलों की शक्लों में सालों से धूल फ़ांक रहीं है।
जवाब देंहटाएंज़मीनी हकीकत को जाननें की ज़रुरत है, वैसे सरकारी योजनाओं के लागू होनें और फ़िर उससे किसी बदलाव की चिन्ता करना एक प्रकार की नासमझी होगी।
आम आदमी को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी और जागरुकता फ़ैलानी होगी.... शिक्षा और रोजगार परक शिक्षा ही आज कल की ज़रुरत है।
चिंताज़नक बात है ।
जवाब देंहटाएंशिक्षा के आभाव में देश विकासशील ही बना रहेगा , अनंत तक ।
तमाम दावों और वादों के प्रचार-प्रसार से देश में पढ़ाई-लिखाई की तस्वीर भले ही गुलाबी लगने लगी हो, लेकिन जमीनी हकीकत अब भी ज्यादा नहीं बदली है।
जवाब देंहटाएंवाकई शिक्षा के मामले में आँकड़ो के जादुई आकर्षण को ही परोसा जा रहा है.
चिंताजनक स्थिति
इसे कहते हैं आदत मुस्कराने की।
जवाब देंहटाएंक्या मुद्दा उठाया है!!!
ये भूखे और भिखमंगे भ्रष्ट मंत्री जबतक आम लोगों के रोटी,शिक्षा,व्यवसाय और कल्याण का पैसा खाते रहेंगे इस देश में विकाश तो दूर लेकिन पतन नजदीक आता जा रहा है ,इस देश में इतना पैसा है की ये मंत्री उसे लूटना बंद कर दे तो हर स्नातक को पांच वर्षों तक ३००० से ५००० रुपया प्रतिमाह शोध चाहे वह कृषि,व्यवसाय या रोजगार किसी भी क्षेत्र का क्यों न हो उसके लिए अनुदान दिया जा सकता है और स्नातक तक की शिक्षा हर छात्र और छात्रा का बिना किसी शुल्क के पूरा किया जा सकता है |
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और सामयिक मुद्दा उठाया है.
जवाब देंहटाएंm verma ji se sehmat hoon.......
जवाब देंहटाएंसरकार की विफलता की कहानी।
जवाब देंहटाएंसच में दयनीय स्थिति है ।
जवाब देंहटाएं......................................................................................................................................................................................SOCHNE PAR MAJBOOR HOON ,WAQT LAGEGA KUCH KEHNE K LIYE ISPAR....
जवाब देंहटाएंगरीबी के कारण पढाई छोडना कई कारणों में से एक है | पर यह भी एक सच्चाई है कि पढ़ने के बाद
जवाब देंहटाएंएक बेरोजगार की संख्या और बढ़ जाती है |आपने एक सही मुद्दा उठाया है |बधाई
आशा
ek bahut saarthak vishay ko uthaya hai aapne... lekin jo humare neeti niyanta hain untak ye baat nahi pahunchti... sabke peeche eak hi kaaran hai.... CORRUPTION
जवाब देंहटाएंसार्थक मुद्दा उठाया है ..स्थिति वाकई चिंताजनक है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और सामयिक मुद्दा ..साधुवाद
जवाब देंहटाएंHaan ! sach hai..aur gar paathshala se hata bhi dete hain,to pahle ladiyan...ladkon ko pradhany milta hai!
जवाब देंहटाएंLoksankhya zindaabaad! Yahi to garebi aur ashiksha ka karan hai..
जानकर बहुत दुख होता है .. पर ऐसी लापरवाह सरकार और सरकारी कर्मचारी हों .. तो क्या किया जा सकता है ??
जवाब देंहटाएंकाश इस समस्या को हरकोई गंभीरता से सोचता और समझता.
जवाब देंहटाएंआपने सही मुद्दे को लेकर बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! हमारे देश में अधिकतर बच्चे पढ़ नहीं सकते गरीबी के कारण जिसे देखकर बहुत दुःख होता है! आपने बिल्कुल सही लिखा है!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ,
जवाब देंहटाएंदिगम्बर नासवा ji @ 'अदा'ji poor people need to govt help @ देव कुमार झा ji ना जानें कैसी कैसी सरकारी योजनाएं, फ़ाईलों की शक्लों में सालों से धूल फ़ांक रहीं है @ डॉ टी एस दराल ji bahut hi chinjanak hai ye baat @ M Verma ji चिंताजनक स्थिति है । @ Neeraj ji @ Honesty ji sahi kaha aapne स्नातक तक की शिक्षा हर छात्र और छात्रा का बिना किसी शुल्क के पूरा किया जा सकता है |@ Tilak ji @ दिनेशराय द्विवेदी ji @ प्रवीण पाण्डेय ji @ Amit bhai @ Asha ji Garibi ke karan hai ye sab @ Arun ji
मैं आप सभी का का दिल से आभारी हूँ और आशा करता हूँ आप अपना आशीर्वाद बनाये रखेंगे.
इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें !
धन्यवाद
संजय भास्कर
धन्यवाद ,
जवाब देंहटाएंshikha varshney ji स्थिति वाकई चिंताजनक है.@ Pawan ji @ Kshama ji वाकई चिंताजनक है. @ संगीता पुरी ji sab sarkar ki laparwahi hai @ Ravindra ravi ji @ Babli ji
मैं आप सभी का का दिल से आभारी हूँ और आशा करता हूँ आप अपना आशीर्वाद बनाये रखेंगे.
इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें !
धन्यवाद
संजय भास्कर
स्थिति वाकई चिंताजनक है....
जवाब देंहटाएंस्नातक तक की शिक्षा हर छात्र और छात्रा का बिना किसी शुल्क के पूरा किया जा सकता है |
जवाब देंहटाएं...प्रसंशनीय पोस्ट!!!!
जवाब देंहटाएंड्रॉप आउट के ग़रीबी के अलावा भी कुछ कारण होते हैं जैसे शिक्षा का महत्व न जान पाना , तात्कालिक आवश्यकतायें । अंतत: ज़िम्मेदारी उन्ही की होती है जिन्होने मनुष्य को मनुष्य बनाने का ज़िम्मा लिया है
जवाब देंहटाएंsarkaar ki safalta sirf paper par hi hai, baaki sab kuchh jhoonth,
जवाब देंहटाएंbahut achchhhi jaankari
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
सही बात,
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी.
इस ओर भी ध्यान देने की अति आवश्यकता है.
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने, बहुत ही दुखद है कि हमारे देश में आज भी ये हाल है, सरकार को और हमें इस विषय में सोचने और कुछ करने कि जरुरत है!
जवाब देंहटाएंएक सार्थक पोस्ट के लिए बधाई और आभार संजय.. :)
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन ...शिक्षा सभी के लिए मुफ्त होने के सरकारी प्रयास तो होने ही चाहिए मगर सामाजिक संस्थानों को भी पहल करनी चाहिए ...
जवाब देंहटाएंसार्थक मगर चिन्ता जनक पोस्ट है। इसमे भी शायद कहीं न कहीं सरकार की इच्छा शक्ति मे कमी और गरीबी ही कारण है। दूसरा रिमोट एरिया मे सहायत उपल्ब्ध न करवाने के पीछे वहाँ की अनपढता और भ्र्ष्टाचार ही है जहाँ ग्राँटें तो जाती हैं मगर अधिकारियों और नेताओं की जेब मे ही समाप्त हो जाती हैं। पता नही कब होगा देश का सुधार। अच्छी पोस्ट के लिये बधाई आशीर्वाद्
जवाब देंहटाएंits very imp issue tothink abt..situation in rural areas is comparatively more complicated.n the statisticks u provided r very tru.govt should do something in reality not on paper..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख है |हम लोग भी इसके अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेवार है याद कीजिये वो जमाना जब ये सरकारी स्कूल ही आदर्श स्कूल माने जाते थे शिक्षक .विद्यार्थी पालक सभी प्रतिबद्ध थे शिक्षा देने और शिक्षा लेने के लिए धीरे धीरे निजी अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के आने से समाज में विद्या का वर्गीकरण हो गया और सरकारी स्कूल सिर्फ एक वर्ग के लिए रह गया जहाँ पर कोई प्रतियोगिता और शिक्षा के लिए प्रतिबद्धता नहीं है और राही सही कसर मध्यान्ह भोजन की शिक्षको की जिम्मेवारी ने विद्यार्थियों को पढ़ी से और दूर कर दिया |
जवाब देंहटाएंकुछ दिन पहले एक ऐसे स्कूल में गयी थी जहाँ बच्चे पढना चाहते थे पर किसी न किसी वजह से उन्हें छोड़ना पड़ जाता था थोड़े ही दिन बाद ...आज वही याद आ गया .. अब इसे गरीबी कहें या मजबूरी ..
जवाब देंहटाएंपर यह भी एक सच्चाई है कि पढ़ने के बाद
जवाब देंहटाएंएक बेरोजगार की संख्या और बढ़ जाती है |आपने एक सही मुद्दा उठाया है |
स्थिति वाकई चिंताजनक है..........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ,
जवाब देंहटाएंAmit ji @ Uday ji @ Shard ji @ Sanjay ji @ Rajeev ji @ Nilesh mathur ji @ Deepak Mashaal @ Vani geet Didi @Nirmla Kapila ji
मैं आप सभी का का दिल से आभारी हूँ और आशा करता हूँ आप अपना आशीर्वाद बनाये रखेंगे.
इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें !
धन्यवाद
संजय भास्कर
aur sarkaar kahte3e hai Shikshaa kaa maulik adhikaar hai.
जवाब देंहटाएंbahut hi prabhit karne vala aalekh hai bahut sahi kaha hai aapne aaj bhi hamare desh ke logo ki choti soch aur garibi hamare desh main asiksha ka karna bani hui aur jab tak thos kadam nahi uthaye jayenge ye asikhsha hamesha bani rahegi
जवाब देंहटाएंSachmuch ye bahut chinta ki baat hai.
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर मुद्दा उठाया हैं आपने.
जवाब देंहटाएंदेश की सबसे गंभीर समस्या मैं इसे ही मानता हूँ.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बहुत ही सार्थक और सामयिक मुद्दा
जवाब देंहटाएंचिंताजनक स्थिति!
जवाब देंहटाएंअच्छा चिंतन......
जवाब देंहटाएंकृपया एक ही ब्लॉग रखें ....कठिनाई होती है ढूँढने में कौन सा ब्लॉग सक्रीय है ......!!
आंखे खोल देने वाली सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंada ji ki baaton se main bhi sahmat hoon .aham vishya hai .
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक मुद्दे को बाहर निकाला है, फंड की कमी नहीं बल्कि इसको implement करने वालों की कमी है ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ,
जवाब देंहटाएंEkta ji @ Shobhna chore ji सरकारी स्कूल सिर्फ एक वर्ग के लिए रह गया जहाँ पर कोई प्रतियोगिता और शिक्षा के लिए प्रतिबद्धता नहीं है और राही सही कसर मध्यान्ह भोजन की शिक्षको की जिम्मेवारी ने विद्यार्थियों को पढ़ी से और दूर कर दिया | bikul sstay kaha aapne @ Pkhraj ji @ Karan ji @ Godiyaji @ Monika varshney ji @ Jakir ali ji @ Chander s0ni ji @ Arvind ji @ Manoj ji
मैं आप सभी का का दिल से आभारी हूँ और आशा करता हूँ आप अपना आशीर्वाद बनाये रखेंगे.
इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें !
धन्यवाद
संजय भास्कर
Thanks to all of u.......
जवाब देंहटाएंआपने एक सही मुद्दा उठाया है |बधाई
जवाब देंहटाएंभारत की मौजूदा स्थिति पर प्रकाश डाला है आपने .......बहुत बढ़िया पोस्ट .
जवाब देंहटाएंsach kaha aapne , bahut sundar
जवाब देंहटाएंWell..Sanjay ji ..It's very disappointing. There are more harsh facts related to children problems in India. One third of total poorest children in all over the world live in India. Most of them die before their 5th birthday.
जवाब देंहटाएंsnjay bhaai aasaab aapkaa lekhn desh ke bhvishy yaani aane vaalaa kl bchchon ke liyen srkaar ko sochne pr mjbur krne vaalaa he bdhaai ho . mera hindi blog akhtarkhanakela.blogspot.com he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंसुन्दर जानकारी . हम अब तक सिर्फ कपडे , पानी, फिल्म , मोबाईल पर ही खर्च करने को तैयार है. ब च्चे हमारा भविष्य है. देश का भ वि ष्य है. पर हमने बच्चो का भविष्य या तो सरकार के हाथ दे दिया है या बाजार के. दोनो जगह पैसे हमारे ही है. तब समाज क्यो नहि सब बच्चो के लिये समान शिक्चा अपने हाथो ले लेता
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंआपने एक सही मुद्दा उठाया है |बधाई
जवाब देंहटाएंThanks to all of u......
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