( चित्र गूगल से साभार )
रोजगार की तलाश में
घर से बहुत दूर
बसे लोग
ऊब जाते है जब
खाकर होटलो का बना खाना
तब अक्सर ढूंढते है
माँ के हाथों की बनी रोटियाँ
पर नहीं मिलती
लाख चाहने पर भी वो रोटियाँ
क्योंकि कुछ समय बाद
याद आता है घर तो छोड़ आये
इन्ही रोटियों के लिए..... !!
- संजय भास्कर
सच! रोज़गार की तलाश में बहुतों को मां के हाथ की रोटी नसीब नही होती.. पर नेह बना रहना चाहिए.. मर्म को छूती कृति।
जवाब देंहटाएंलाख चाहने पर भी नहीं मिलती वो रोटियाँ क्योंकि रोज़गार की तलाश में वो कहीं पीछे छूट जाती है ।मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 मार्च 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आज की पीढ़ी नहीं तलाशती माँ के हाथों की बनी रोटियाँ•••
जवाब देंहटाएंवाह!संजय जी ,रोटी के लिए रोटी छोड आए.....सच है माँ के हाथ की रोटी में प्यार जो गुँथा रहता है व
जवाब देंहटाएंइसी विडम्बना का नाम ही तो जीवन है
जवाब देंहटाएंI read this post your post so nice and very informative post thanks for sharing this post keep it up! thank you
जवाब देंहटाएंI read this post your post so nice and very informative post thanks for sharing this post keep it up! thank you
जवाब देंहटाएंHappy Mother's Day
जवाब देंहटाएंthanks for sharing this Post