24 जनवरी 2020

उस कील का धन्यवाद :(

( चित्र गूगल से साभार  )

उस कील का धन्यवाद
जिसने संभाले रखा
पुरे वर्ष उस कैलेंडर को
जिसमे हंसी ख़ुशी की
तारीखे दर्ज थी
साल बदलते रहे
हर नए साल पर  ,
नये कैलेंडर चढ़ते रहे
दीवार पर टंगा हर वर्ष का
पुराना कैलेंडर ,
फड़फड़ाता रहता है
अपने आखरी दिनों में
क्योंकि उसको पता होता है 
जल्दी ही उसको ये जगह
खाली करनी है
और नए,कलेवर में आ जायेगा
नया कैलेंडर
पर कील हमेशा अपनी जगह
जमी रही पूरी मजबूती से
हमारी हंसी ख़ुशी की
की तारीखों को थामे
इसलिए कील के हौसले
पर उस कील का धन्यवाद

- संजय भास्कर 

24 टिप्‍पणियां:

  1. जमी रही पूरी मजबूती से
    हमारी हंसी ख़ुशी की
    की तारीखों को थामे बहुत सुंदर अभिव्यक्ति संजय जी

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-01-2020) को "बेटियों एक प्रति संवेदनशील बने समाज" (चर्चा अंक - 3591) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  3. उस कील की तरह हमारा मन भी हर साल नए-नए अनुभव करता है, अनुभव बदलते रहते हैं पर मन सदा साथ देता है, हर घड़ी आखिरी दम तक.. अपनी निजता बनाये हुए

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  4. वाह बहुत गहरी बात कह दी संजय जी , तारीखें बदलती है,कैलेंडर बदलते हैं,कील वहीं जमी रहती है। सामान्य बात है लेकिन जीवन का पूरा दर्शन समाया हुआ है इसमें। बहुत बढ़िया 👌👌 गागर में सागर।

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  5. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    26/01/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  6. बहुत सुंदर सृजन संजय जी कील की उपयोगिता का बहुत सुंदर धन्यवाद ।
    सुंदर रचना।

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  7. संजय भाई, कील के माध्यम से पूरा जीवन दर्शन ही बता दिया आपने।

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  8. बहुत गहरे भावों से सजी अनुपम अभिव्यक्ति ...बहुत सुन्दर रचना संजय जी ।

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  9. बहुत सुंदर रचना...

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  10. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  11. बहुत सुंदर ! ये कील ही तो है जो पुरानी यादों को, कहीं दूर चले गए अपनों को, मधुर स्मृतियों को सदा ताजा बनाए रखती है

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  12. बेहतरीन प्रस्तुति

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  13. बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत की भाई साहब

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  14. बेहद गहरे भाव समटे सुंदर सृजन संजय जी

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  15. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सार्थक गहन चिन्तनपरक रचना
    बहुत लाजवाब।

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  16. बहुत ही सुंदर सार्थक गहन रचना प्रस्तुत की

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!

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  17. बहुत सुन्दर. गहरे भाव की रचना 👏 👏

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  18. केंद्रीय शक्ति या धुरी जिसके आस पास हम घूमते है वो सम्मान के लायक तो होते ही हैं।
    जोरदार।
    नई रचना- सर्वोपरि?

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  19. वाह बहुत गज़ब , बहुत कमाल , हमेशा की तरह

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- संजय भास्कर