( चित्र गूगल से साभार )
जिसने संभाले रखा
पुरे वर्ष उस कैलेंडर को
जिसमे हंसी ख़ुशी की
तारीखे दर्ज थी
साल बदलते रहे
हर नए साल पर ,
नये कैलेंडर चढ़ते रहे
दीवार पर टंगा हर वर्ष का
पुराना कैलेंडर ,
फड़फड़ाता रहता है
अपने आखरी दिनों में
क्योंकि उसको पता होता है
जल्दी ही उसको ये जगह
खाली करनी है
और नए,कलेवर में आ जायेगा
नया कैलेंडर
पर कील हमेशा अपनी जगह
जमी रही पूरी मजबूती से
हमारी हंसी ख़ुशी की
की तारीखों को थामे
इसलिए कील के हौसले
पर उस कील का धन्यवाद
- संजय भास्कर
जमी रही पूरी मजबूती से
जवाब देंहटाएंहमारी हंसी ख़ुशी की
की तारीखों को थामे बहुत सुंदर अभिव्यक्ति संजय जी
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-01-2020) को "बेटियों एक प्रति संवेदनशील बने समाज" (चर्चा अंक - 3591) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
उस कील की तरह हमारा मन भी हर साल नए-नए अनुभव करता है, अनुभव बदलते रहते हैं पर मन सदा साथ देता है, हर घड़ी आखिरी दम तक.. अपनी निजता बनाये हुए
जवाब देंहटाएंवाह बहुत गहरी बात कह दी संजय जी , तारीखें बदलती है,कैलेंडर बदलते हैं,कील वहीं जमी रहती है। सामान्य बात है लेकिन जीवन का पूरा दर्शन समाया हुआ है इसमें। बहुत बढ़िया 👌👌 गागर में सागर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
26/01/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत सुंदर सृजन संजय जी कील की उपयोगिता का बहुत सुंदर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
संजय भाई, कील के माध्यम से पूरा जीवन दर्शन ही बता दिया आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भावों से सजी अनुपम अभिव्यक्ति ...बहुत सुन्दर रचना संजय जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ! ये कील ही तो है जो पुरानी यादों को, कहीं दूर चले गए अपनों को, मधुर स्मृतियों को सदा ताजा बनाए रखती है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत की भाई साहब
जवाब देंहटाएंबेहद गहरे भाव समटे सुंदर सृजन संजय जी
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक गहन चिन्तनपरक रचना
बहुत लाजवाब।
बहुत ही सुंदर सार्थक गहन रचना प्रस्तुत की
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
बहुत सुन्दर. गहरे भाव की रचना 👏 👏
जवाब देंहटाएंकेंद्रीय शक्ति या धुरी जिसके आस पास हम घूमते है वो सम्मान के लायक तो होते ही हैं।
जवाब देंहटाएंजोरदार।
नई रचना- सर्वोपरि?
वाह बहुत गज़ब , बहुत कमाल , हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
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