विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च पर कुछ ........कभी खुले आंगन में फुदकने वाली गौरैया, छप्परों में घोसले बनाने वाली, फुदक-फुदक कर चहचहाने वाली गौरैया अब बन्द जाली, बंद दरवाजे, घरों से मुंडेर खत्म कर दिये गए के कारण हमसे दूर चली गई है। बड़े बड़े जंगल में तब्दील होता शहर और असंवेदनशील होता यहां का निवासी गौरैया को अपने से दूर कर दिया है बड़े शहरों का विकास भले ही हो रहा हो लेकिन पशु पक्षियों के पर्यावास के लिए स्थान सिमटते जा रहे हैं। यही कारण है की गौरैया हर शहर में अपना अस्तित्व तलाश रही है। अब तो बड़े विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े शहरों के घर और जंगल दोनों गोरैया के रहने के लिए अब अनुकूल नहीं हैं। हम यह नहीं कह सकते कि गौरैया खत्म हो गई है। लेकिन शहरी क्षेत्रों में उनके रहने की जगह कम हो गई है।
एक वक्त था जब सुबह की पहली किरण के साथ ही हमारे कानों में बहुत मीठी आवाजें पड़ती थीं। ये चिड़ियों की आवाज थी जिसे गौरैया के नाम से जाना जाता है। वक्त बदला और तेज रफ्तार देश-दुनिया में गौरैया की आबादी कम होती चली गई। एक अनुमान के मुताबिक, शहरों में तो इनकी तादाद महज 20 फीसदी रह गई है। गांवों में हालात बहुत ज्यादा जुदा नहीं हैं। यहां जानते हैं कि आखिर किन वजहों से ये हमसे दूर हुईं....लेकिन अगर हम सब मिलकर प्रयास करे तो शायद कुछ हद तक हम गौरैयों की चहचहाट फिर पा सकते हैं। और हमारी सुबह फिर खूबसूरत हो सकती है
खिड़कियों या घरों के कोनों मे दाना और पानी से भरी कटोरियाों लटकाएं। छत पर कुछ बोंसाई गमले लगा सकते हैं। इनको दाना और पानी मिलेगा तो ये जरूर आएंगी चाहें तो कुछ घोंसले भी बना सकते हैं !!
विश्व गौरैया दिवस
- संजय भास्कर
एक वक्त था जब सुबह की पहली किरण के साथ ही हमारे कानों में बहुत मीठी आवाजें पड़ती थीं। ये चिड़ियों की आवाज थी जिसे गौरैया के नाम से जाना जाता है। वक्त बदला और तेज रफ्तार देश-दुनिया में गौरैया की आबादी कम होती चली गई। एक अनुमान के मुताबिक, शहरों में तो इनकी तादाद महज 20 फीसदी रह गई है। गांवों में हालात बहुत ज्यादा जुदा नहीं हैं। यहां जानते हैं कि आखिर किन वजहों से ये हमसे दूर हुईं....लेकिन अगर हम सब मिलकर प्रयास करे तो शायद कुछ हद तक हम गौरैयों की चहचहाट फिर पा सकते हैं। और हमारी सुबह फिर खूबसूरत हो सकती है
खिड़कियों या घरों के कोनों मे दाना और पानी से भरी कटोरियाों लटकाएं। छत पर कुछ बोंसाई गमले लगा सकते हैं। इनको दाना और पानी मिलेगा तो ये जरूर आएंगी चाहें तो कुछ घोंसले भी बना सकते हैं !!
विश्व गौरैया दिवस
- संजय भास्कर