29 अक्तूबर 2015

एक पिता का वात्सल्य गुलाबी चूड़ियाँ - संजय भास्कर :)

जब भी कभी नागार्जुन जी का नाम दिमाग में आया सबसे पहले गुलाबी चूड़ियाँ ही याद आई ......कभी कभी पुरानी यादें लौट आती है आज भी याद है स्कूल में हिंदी की क्लास में एक ट्रक ड्राईवर के बारें में ऐसे पिता का वात्सल्य जो परदेस में रह रहा है  घर से दूर सड़कों पर महीनों चलते हुए भी उसके दिल से ममत्व खत्म नहीं हुआ जो अपनी बच्ची से बहुत प्यार करता है !............. यह कविता है नागार्जुन की “गुलाबी चूड़ियाँ”  जिसे उसने अपने ट्रक में टांग रखा है ! ये चूडियाँ उसे अपनी गुड़िया की याद दिलाती और वो खो जाता है हिलते डुलते गुलाबी चूड़ियाँ की खनक में .........!!

कविता की पंक्तियाँ ..........

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !

-- नागार्जुन

32 टिप्‍पणियां:

  1. I Love this poem. I remember reading this in school THANKS SANJAY BHAI

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  2. बहुत सुंदर और सार्थक पोस्ट, आभार

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  3. वात्सल्य की ये गुलाबी चूड़ियाँ किसे नहीं अच्छी लगेंगी !!
    महाकवि नागार्जुन को नमन !! साभार !!

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  4. छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
    तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
    ....
    हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
    वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
    वरना किसे नहीं भाँएगी?
    नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !
    ...सीधे सच्चे शब्दों में वात्सल्य की अनूठी कृति सीधे दिल तक पहुँचती है ....
    ..नागार्जुन जी की इस सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राजनैतिक प्रवक्ता बनते जा रहे हैं हम - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  6. बेनामी10/30/2015

    धन्यवाद

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  7. मानवीय संवेदना की अच्छी कविता ही यह। आज भी प्रासंगिक

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  8. नागार्जुन जी से परिचय कराने के लिए , आपका बहुत आभार |

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  9. कमाल की रचना । पढ़वाने का आभार

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  10. हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
    वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
    वरना किसे नहीं भाँएगी?
    नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !

    हृदयस्पर्शी रचना नागार्जुन जी की. धन्यवाद साझा करने हेतु.

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  11. किसे नहीं भाँएगी?
    नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !

    aankhe nam karati rachana ... mere sabase pasandida kavi hai Nagarjun ji !

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  12. bahut hi khubsurat rachna......dil ko chu gyi

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  13. नागार्जुन जी की बहुत कविताएं पढ़ी हैं लेकिन यह कविता पहली बार पढी बहुत अच्छी कविता हैं
    सजय जी आपका बहुत बहुत आभार
    http://savanxxx.blogspot.in

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  14. क्या बात है !.....बेहद खूबसूरत....
    आप को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@आओ देखें मुहब्बत का सपना(एक प्यार भरा नगमा)

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  15. कमाल की रचना । पढ़वाने का आभार

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  16. nice way to show love towards daughter.awesome

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  17. पिता के वात्सल्य को बहुत ही सजीवता से प्रस्तुत किया है

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  18. पिता के वात्सल्य को बहुत ही सजीवता से प्रस्तुत किया है

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  19. बहुत सुरीली है यह कविता,
    क्योंकि इसमें
    महकती हुई सरगम है
    एक पिता के प्यार की
    अपनी बेटी के लिए!

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  20. :)...pita aur beti ke pyaar ki kashish hi alag he...hmm.....

    share krne ke liye dhanywaad

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  21. छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
    तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
    ....
    हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
    वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
    वरना किसे नहीं भाँएगी?
    नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !
    ...
    ..नागार्जुन जी की इस सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

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  22. कमाल की रचना । पढ़वाने का आभार

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  23. kya lines hai kya kahu...awesome...padhane kay liye shukriya

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- संजय भास्कर