आकाशवाणी पर कुछ साल पहले कवितायेँ सुनने का बहुत शौक हुआ करता था उन्ही दिनों मृदुला जी की रचनाओ का प्रसारण सुना फिर कुछ समय बाद मृदुला जी के ब्लॉग से परिचय और रोज़ मर्रा की छोटी-२ सरल कविताये पढ़ने को मिली और समय के साथ उनकी कविताओं को पढ़ने की भूख बढ़ती गई और उनके संग्रह मंगवा कर पढ़ा और उनका प्रशंसक बन गया .....और मन में सोचने लगा जिंदगी में कभी तो मृदुला जी से मिलना होगा ही पर अंतरजाल पर चार साल तक जुड़े रहने के बाद आखिर उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो गया.....मृदुला जी से मिलना एक प्रसन्नता का क्षन बन गया जैसा की अक्सर होता है जब किसी बड़े रचनाकार से मिलने पर होता है उनसे मिलकर उनके बारे में ज्यादा जानने को मिला ......!!
मृदुला जी से मिलने पर कुछ पंक्तियों ने मन में ऐसे जन्म लिया :-
उनकी ममता बहुत प्यारी थी
उनका आँचल बहुत सुंदर था
मैं एक छोटे शहर से आया था
उनकी ऊँगली थामे मैं पहुच गया
उनके घर तक था !!
मृदुला प्रधान जी का कविता संग्रह " चलो कुछ बात करें " एक प्रकृति प्रेमी का संग्रह है जिसमे कवयित्री अपनी हर बात को प्रकृति को माध्यम बनाकर कहने की कोशिश की है .....बसंत मालती " हो या..... बरसात की रात .... या फिर.... पेड़ों के पीछे अलसाया.... होली का त्यौहार... ओस ..... गुलमोहर की... या...महानगर की धुप " जाने कितनी ही कवितायेँ और हैं जहाँ प्रकृति के रंगों की छटा के साथ दिल के रंग भी उकेरे हैं कवयित्री ने अपने आप में कुछ अलग सा प्रकृति को देखने और समझने के नज़रिये को भी प्रस्तुत करता है कि कितना कवयित्री का जुड़ाव प्रकृति के हर अंग से है फिर मौसम हो या ज़िन्दगी सबका अपना एक परिवेश है , संरचना है जिनका सीधा सा सम्बन्ध मानव जीवन से है !
कुछ प्रकृति से परिचित करती रचनाओं की एक झलक देखिये :
....सूरज की पहली किरण में -- चलो स्वागत करें ऋतु बसंत का.......बादलों के साथ भी उड्ने लगा हूँ.......... मजूरों की रोटी .... मानवीय संवेदनाओं की जीती जागती मिसाल है जहाँ मेहनत की रोटी के स्वाद की बात ही कुछ और होती है को इस तरह दर्शाया है कि आज की हाइटैक होती ज़िन्दगी की सुविधायें भी बेमानी सी लगती हैं एक सजीव चित्रण
.........थाक रोटी की बडी सोंधी नरम लिपटे मसालों में बना आलू गरम ..... गर्म रोटी... फ़ाँक वाले आलू
" विदेशी भारतियों के नाम " एक ऐसी कविता है जिसका चित्रण बेहद खूबसूरती से किया गया है :
" सर्द सन्नाटा" समय के बोये अकेलेपन के बीजों को बिखेरने की व्यथा है ताकि खुद से मुखातिब हुआ जा सके और रूह की गहराई तक उतरा सर्द सन्नाटा कुछ कम हो सके फिर चाहे उसके लिए कुछ लिखना ही क्यों न पड़े!
मृदुला जी का लेखन का का कमाल है मेरी और से श्रीमति मृदुला जी तीनो काव्य संकलनो के लिए हार्दिक बधाई व ढेरो शुभकामनाएं देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ !!
देवलोक प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह को प्राप्त कर सकते हैं :
पुस्तक का नाम – चलो कुछ बात करें
रचनाकार -- मृदुला प्रधान
पुस्तक का मूल्य – 299/
आई एस बी एन – 81-89373-11-0
प्रकाशक - देवलोक प्रकाशन 1362 कश्मीरी गेट दिल्ली -110006
रचनाकार का पता :-
मृदुला प्रधान
डी ---191, ग्राउंड फ्लोर
साकेत , नयी दिल्ली --११००१७
-- संजय भास्कर
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