सभी ब्लॉगर साथियों को मेरा सादर नमस्कार काफी दिनों से व्यस्त होने के कारण ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ पर अब आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ !
.........मेरी कविता .....कुछ खो जाना के लिए प्रतुल वशिष्ठ ने कुछ लाइन लिखी है उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी...........!!
@ रोज़ सुबह उठते हुए
अकसर कुछ खो जाता है ...
कभी अधूरे सपने तो कभी उनका मज़मून.
'क्या देखा था.. कौन-कौन मिले थे' ....प्रश्न थोड़ी-थोड़ी देर में कौंधते हैं.
वैसे ही बचपन में साथ पढ़े
जब चेहरा बदलकर बीस-तीस वर्ष बाद मिलते हैं.
तो कुछ खो सा जाता हूँ...
'कहीं तुम वो तो नहीं', 'तुम्हें कहाँ देखा है' जैसे प्रश्न मन में अनायास घुस आते हैं.
संजय भास्कर ,
आपके मनोभावों की यही खासियत है कि वह सहज गति से प्रवाहित हैं.
मुझे बहुत आनंद आया इस मंथर गति (अंदाज़) में अपनी कुछ बातें कहने में.
इसलिये कह सकता हूँ - ये उम्दा रचना है........ !
@ संजय भास्कर
.........मेरी कविता .....कुछ खो जाना के लिए प्रतुल वशिष्ठ ने कुछ लाइन लिखी है उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी...........!!
@ रोज़ सुबह उठते हुए
अकसर कुछ खो जाता है ...
कभी अधूरे सपने तो कभी उनका मज़मून.
'क्या देखा था.. कौन-कौन मिले थे' ....प्रश्न थोड़ी-थोड़ी देर में कौंधते हैं.
वैसे ही बचपन में साथ पढ़े
जब चेहरा बदलकर बीस-तीस वर्ष बाद मिलते हैं.
तो कुछ खो सा जाता हूँ...
'कहीं तुम वो तो नहीं', 'तुम्हें कहाँ देखा है' जैसे प्रश्न मन में अनायास घुस आते हैं.
संजय भास्कर ,
आपके मनोभावों की यही खासियत है कि वह सहज गति से प्रवाहित हैं.
मुझे बहुत आनंद आया इस मंथर गति (अंदाज़) में अपनी कुछ बातें कहने में.
इसलिये कह सकता हूँ - ये उम्दा रचना है........ !
.......................बहुत - बहुत शुक्रिया प्रतुल वशिष्ठ ज़ी
@ संजय भास्कर
प्रतुल जी ने बहुत सही लिखा है बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sundar sajaya hai smrition ka jharokha, bachpan ki smritiyo ko tarotaja karte rahne se jivn me bachpne ka punrsanchar jivnt ho uthta hai,
जवाब देंहटाएंरोज़ सुबह उठते हुए
जवाब देंहटाएंअकसर कुछ खो जाता है ...
कभी अधूरे सपने तो कभी उनका मज़मून.
'क्या देखा था.. कौन-कौन मिले थे' ....प्रश्न थोड़ी-थोड़ी देर में कौंधते हैं.
gajab ke bhaw ...
प्रतुल वशिष्ठ ज़ी के लिए thumbs up !! :)
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी को इस सुन्दर रचना हेतु बहुत-2 बधाई, संजय भाई रचना को हम सबके साथ साझा करने के लिए आपको अनेक-2 धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंइसी पाने-खोने में उलझना ही बन गयी है जिंदगी की व्यस्तता. आपकी रचना ने यह सोच जगाई, धन्यवाद
जवाब देंहटाएं.सराहनीय प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही ... इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंहोता है....अक्सर ऐसा ही होता है...!
जवाब देंहटाएंसुंदर ..
जवाब देंहटाएंवैसे ही बचपन में साथ पढ़े
जवाब देंहटाएंजब चेहरा बदलकर बीस-तीस वर्ष बाद मिलते हैं.
तो कुछ खो सा जाता हूँ...
'कहीं तुम वो तो नहीं', 'तुम्हें कहाँ देखा है' जैसे प्रश्न मन में अनायास घुस आते हैं...
..samay-samay ki baat hai ..kitna kuch badal jaata hai ..
bahut badiya rachna lekar aaye hain aap... ghar-pariwar ke saath vyastta badhna swabhawik hai ...
प्रतुल जी को इस सुन्दर रचना हेतु बहुत-बहुत बधाई, इस रचना को हम सबके साथ साझा करने के लिए आपका शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकिसी चीज का खोना फिर उसका न मिल पाना मन को हरदम कचोटता रहता है,,,,
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी को इस सुन्दर रचना हेतु बहुत-2 बधाई,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
प्रतुल जी ने बहुत सुन्दर लिखा है..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ...
:-)
संजय jee बहुत सही लिखा .गया आप पर .
जवाब देंहटाएंसंजय जी, इंटरनेट कल ही घरेलू हुआ है और मुझे कुछ अधिक समय ब्लॉगजगत में विचरने का मिला तो यहाँ देखा आपने जिन पंक्तियों को मेरे नाम से सजाया है। बहुत देर तक पाठक की दृष्टि से उसका आनंद लेता रहा। ये मेरी ही पंक्तियाँ हैं इसके प्रमाण के लिए मुझे एक बार फिर से आपकी रचना 'कुछ खो जाना' को पढ़ना पड़ा। वास्तव में आपकी रचना बहुत श्रेष्ठ है तो उसकी नक़ल (प्रतिक्रिया) भी वैसी ही होगी ना!
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए सभी काव्य रसिक बंधुओं का धन्यवाद।
बहुत सुन्दर..संजय
जवाब देंहटाएंसपनों के किरदारों की तरह बचपन के दोस्त भी धुंधले से हो जाते हैं .
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना .
प्रतुल जी को बधाई...
जवाब देंहटाएंरोज उठकर स्वयं को पहचानता हूँ।
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी ने बहुत सही कहा है.
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी की टिप्पणी भावों में डूबी हुई होती है ...
जवाब देंहटाएंwah, ye hui na baat... behtareen:)
जवाब देंहटाएंbahut sundar..
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAE PARSTUTEE !
जवाब देंहटाएंरोज़ सुबह उठते हुए
जवाब देंहटाएंअकसर कुछ खो जाता है ...
कभी अधूरे सपने तो कभी उनका मज़मून.
'क्या देखा था.. कौन-कौन मिले थे' ....प्रश्न थोड़ी-थोड़ी देर में कौंधते हैं.
...लाज़वाब अहसास....बहुत सुन्दर
Bahut Umda......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर... !!
जवाब देंहटाएं@ संजय जी, इस दृष्टि से ये तो कतई नहीं लिखी थीं ये पंक्तियाँ कि
जवाब देंहटाएं— राजेश कुमारी की बधाई मिले।
— मधु सिंह जी की सारगर्भित टिप्पणी मिले।
— रश्मि प्रभा जी उपस्थिति दिखे।
— रोहिताश जी की थम्सअप किये झलक मिले।
— कुँवर कुसुमेश जी भी पीठ ठोंकने आयें।
..... अरे मित्र, मैं तो आपके भाव-प्रवाह में बह गया था। इस बहने में मुझे इतने तीर्थ करने को मिल जायेंगे - सोचा न था।
@ अनंत जी,
जवाब देंहटाएंकुछ समय से ब्लॉग जगत में जो सौहार्द दिखायी देने लगा है उसका पूरा श्रेय हमारे वरिष्ठ साथियों को जाता है उनमें मनोज कुमार, संजय भास्कर, नवीन चन्द्र चतुर्वेदी, पंकज सिंह राजपूत, दिव्या जी, रचना जी, सुज्ञ जी जैसे कई सहृदय हैं जो अपनी रचनाओं के अलावा अन्यों के लेखन को भी उकेरते हैं, महत्व देते हैं। टिप्पणियों को पूरे मनोयोग से पढ़ना और उसपर न्यायपूर्ण प्रतिक्रिया देना बहुत जरूरी होता है।
@ शालिनी जी, सदा जी, पूनम जी, संगीता पुरी जी, संध्या जी, रीना जी, बदन पाण्डेय जी, महेश्वरी जी, समीर जी आप सभी की सराहना पाकर कुछ समय तो 'आभार' शब्द का पर्यायवाची खोजता रहा। लेकिन इस शब्द की महिमा के सम्मुख कोई और शब्द कद बढ़ाये नहीं मिला। सो इस 'शब्द' की गंध मिलाकर सभी को धन्यवाद देता हूँ। संजय जी, अब जल्दी से यहाँ अपनी कोई रचना लाइए, मैं बहुत देर तक सराहना पाने से असामान्य होने लगता हूँ।
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जवाब देंहटाएंकविता रावत जी, आपने भी वही कुछ अपने शब्दों में कहा, अच्छा लगा।
धीरेन्द्र जी, खोने और पाने के जिस पहलु को आपने सूत्र रूप में रखा वह हम सबके अनुभव का होने से पूरी तरह सच लगता है।
डॉ. दराल जी ने दोनों भाव-चित्रों को बिना भेद के समझा ... यह भी सच है। ऐसा भी होता है।
प्रवीण पाण्डेय जी ने कुछ शब्दों में ही उपस्थित भाव चित्र का सार लिख दिया। वाह!!
@ संगीता जी, भावों में डूबे हुओं को उबारना आप जानते हैं। और वह भी बिना शोर किये सादगी से। जिस ब्लॉगजगत में 'अविनाश चन्द्र' जैसे सारस्वत कवि विचरते हों वहाँ स्वाभाविक रूप से टिप्पणियाँ भी सतर्कता के कारण सुधर जाती हैं।
जवाब देंहटाएं@रचना दीक्षित जी, आपके 'सही' में आपकी अनुभवगम्य स्वीकृति है। :)
जवाब देंहटाएं@ मुकेश जी, बेहतरीन रचना को अपनी सच्ची प्रतिक्रिया देने के कारण ही आपका बेहतरीन मैं भी पा सका।
जवाब देंहटाएं@ कविता जी, कही-अनकही कहते हुए ही कविता हो गयी।
जवाब देंहटाएंइस उम्दा रचना हेतू बधाई सहित शुभकामनायें....
जवाब देंहटाएं@ कैलाश जी का आशीर्वाद उनकी शुभकामनाओं में रहता है। डॉ. मोनिका जी और वसुंधरा जी की सराहना भी एक अच्छा पाठक बने रहने के लिए मुझे प्रेरित करती रहेगी।
जवाब देंहटाएंपल्लवी जी, आपकी उपस्थिति से भी गदगद हूँ।
यहाँ आकर मुझे असीम सुख मिला।
बहुत समय बाद ऐसा लगा जैसे 'लेखन' परमात्मा से मिला वरदान है। ये अनुभूति तभी होती है जब कोई निस्पृह भाव से सराहे।
सभी साहित्य रसिकों का पुनः अभिवादन।
आप का ह्र्दय से बहुत बहुत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...प्रतुल वशिष्ठ ज़ी
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया....!!
बहुत बहुत सुन्दर .......भाव बहुत बढ़िया है
जवाब देंहटाएंसच में लाजबाब :)))
जवाब देंहटाएंमन की सहज अनुभूति का सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंbahut hi umda rachana hai. Pad kar acha laga. Is rachana ke liye dhanyawad
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी ने बहुत सुन्दर लिखा है.. साझा करने के लिए आपका शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंभाई संजय जी उम्दा पोस्ट |दीपावली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंरोज़ सुबह उठते हुए
जवाब देंहटाएंअकसर कुछ खो जाता है ...
कभी अधूरे सपने तो कभी उनका मज़मून.
'क्या देखा था.. कौन-कौन मिले थे' ....प्रश्न थोड़ी-थोड़ी देर में कौंधते हैं.
प्रतुल जी को इस सुन्दर रचना हेतु बहुत-2 बधाई..... संजय भाई रचना को हम सबके साथ साझा करने के लिए आपको धन्यवाद. ....
बेहतरीन रचना!!
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
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जवाब देंहटाएंधन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
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दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
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जवाब देंहटाएंधन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
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दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
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अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
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सटीक पंक्तियां....
जवाब देंहटाएंसहज अभिव्यक्ति!
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