25 मई 2011

..........बदलते हालात........संजय भास्कर


कपडे हो गए छोटे 
     शर्म कहाँ रह गई आज !
गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या 
     ममता कहाँ रह गई आज  !
अनाज हो गया मिलावटी 
     तो स्वाद कहा रह गया आज !
फूल हो गए प्लास्टिक के 
      खुशबू कहाँ रह गई आज !
छात्रों के हाथ में हो गए मोबाइल 
      शिक्षा कहाँ रह गई आज !
इंसान हो गया लालची धन का 
      दया भावना कहाँ रह गई आज !
युवा वर्ग हो रहा है अशलीलता का शिकार 
     देश भक्ति भक्ति कहाँ गई आज  !

-- संजय भास्कर 

 

131 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य को कहती बेहतरीन रचना..आज यही तो हो रहा है...लाजवाब।

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  2. कपडे हो गए छोटे
    शर्म कहाँ रह गई आज !
    गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
    ममता कहाँ रह गई आज !

    इंसान हो गया लालची धन का
    दया भावना कहाँ रह गई आज !
    Saarthak rachna..sach ko byaan karti hue. behadd achhi rachna hai. badhai..God bless u.

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  3. सही कहा बिलकुल आपने एक एक शब्द सही

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  4. हम आज में जो ढूँढते हैं कई बार वह वास्तव में पुराना हो चुका होता है. लेकिन आपने कुछ शाश्वत मानव-मूल्यों की बात की है. बहुत सुंदर लगा.

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  5. वर्तमान हालातों को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने ..!

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  6. वर्तमान हालातों पर आप का चिंतन जायज़ है

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  7. आज के हालात का सटीक चित्रण किया है।

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  8. bahut sahi kaha sanjay ji aaj ke to yahi halat hain.

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  9. यथार्थ का जीवंत चित्रण !
    सुन्दर प्रस्तुति !

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  10. सत्य को कहती बेहतरीन रचना

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  11. चीजें तो सब हैं पर उनके मायने बदल गए हैं.

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  12. सच को समझने और कहने का आपका अंदाज निराला है.बेहतरीन रचना.

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  13. बिलकुल सही लिखा है आपने सब कुछ जैसे ख़त्म सा हो रहा है...
    ना जाने ये सब कहाँ जाकर थमेगा या थमेगा ही नहीं.........

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  14. आज के हालात की बहुत सार्थक प्रस्तुति..

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  15. aaj ke halat...aur unke dushparinam..sunder rachna..

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  16. कपडे हो गए छोटे
    शर्म कहाँ रह गई आज !
    गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
    ममता कहाँ रह गई आज !
    सत्य को कहती बेहतरीन रचना....

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  17. पता मेरा बता देना, जो आज भी यह सब पूछे तो, शानदार

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  18. सुन्दर सार्थक प्रस्तुति.
    सोचने का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है.
    आप तो 'भास्कर' है, आपसे ही रोशनी की आशा है.

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  19. बिल्‍कुल सच कहा है आपने इस अभिव्‍यक्ति में ...
    सार्थक प्रस्‍तुति ।

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  20. सटीक चित्रण किया है

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  21. BILKUL SAHI KAHA HAI SIS AAPNE. SAB CHIJEN LUPT HOTI JA RAHI HAIN.
    JAI HIND JAI BHARAT

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  22. सही कहा है आज सब कुछ बदल रहा है, लेकिन हर रात के बाद दिन आता है, भूल का अहसास होते ही सुधार की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है आपकी कविता भी उसी का पहला कदम है!

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  23. सच कहा है संजय जी ... सब कुछ बनावटी हो गया है आज ... आज की दर्शाती लाजवाब रचना ...

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  24. हालात का सटीक चित्रण ....

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  25. यही चित्र है,
    हाल विचित्र है।

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  26. आज के हालात का सही चित्रण.

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  27. छात्रों के हाथ में हो गए मोबाइल
    शिक्षा कहाँ रह गई आज !

    iss baat se sahmat nahi hoon..mobile sikshha ko apnane se rokti hai...main nahi manta...!

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  28. वर्तमान हालात और आम इंसान की सोच को इस रचना में आपने बखूबी पिरोया है और बहुत ही उम्दा प्रस्तुती आपकी

    संजय भास्करजी आभार

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  29. सचमुच हालात बहुत बदल गए हैं ।
    बढ़िया रचना ।
    अनाज हो गया मिलावटी
    तो सेहत कहाँ रह गई आज ।
    शायद यह ज्यादा फिट बैठे ।

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  30. Haqiqat ki Tasweer hai yh rachna

    कपडे हो गए छोटे
    शर्म कहाँ रह गई आज !
    गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
    ममता कहाँ रह गई आज !

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  31. आज को आईना दिखाती रचना.

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  32. मोबाइल और शिक्षा पर असहमत. इसी तरह इंसान लालची कब न था और दया भावना आज भी है.

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  33. these lines are exact mirror image of today's world, but i guess still there are some good people(less in no)out in world, and its their impact that we are still called Homo Sapiens i.e wise man !!

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  34. सत्य रचना ..सुन्दर सार्थक ...

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  35. कपडे हो गए छोटे
    शर्म कहाँ रह गई आज !
    गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
    ममता कहाँ रह गई आज !
    अनाज हो गया मिलावटी
    तो स्वाद कहा रह गया आज !
    Bilkul sahee kahte ho!

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  36. कविता छोटी जरुर है, पर सब कुछ समेट बैठी है,

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  37. सही सही सही कहा आपने.

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  38. यथार्थ को कहती अच्छी रचना

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  39. sab gum ho chale ....her taraf prashn hai , jane kab sabkuch lautker aaye

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  40. आज के हालात का सटीक चित्रण किया है।

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  41. बहुत ही सटीक बात कही है .
    इंसान हो गया लालची धन का
    दया भावना कहाँ रह गई आज !
    .
    बहुत खूब

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  42. wakayee, bahut kam cheezen hi rah gayee aaz.

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  43. भास्कर जी ,आपकी भावाभिव्यक्ति इतनी सहज और प्राकृतिक है कि लगता है-पर्वत श्रृंखला से अनायास कोई निर्झर फूट गया हो.इस अनायास को अनायास ही रहने दीजिएगा,सायास कभी मत बनाइएगा. किसी शायर ने कहा है-सादगी भी तो क़यामत की अदा होती है.

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  44. जीवंत व ज्वलंत चित्रण... आभार सहित.

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  45. बहुत ही बढ़िया एवं सार्थक रचना
    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  46. baut gehen sawaal uthaae hain aaj aapne... har sawaal par socha jaae to ek kitaab likhi jaa sakti hai aur aapne ek kavita mein keh diya...

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  47. छात्रों के हाथ में हो गए मोबाइल
    शिक्षा कहाँ रह गई आज !
    इंसान हो गया लालची धन का
    दया भावना कहाँ रह गई आज !
    बिल्कुल सही कहा है आपने ! सच्चाई को आपने बड़े सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! अद्भुत रचना! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती! बहुत बहुत बधाई!

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  48. Sach kah rahe hai aap... badalta samay sab badal deta hai

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  49. बदलते युग का नकारात्मक दृश्य तो देख लिया..... आपकी कविता में उस सकारात्म्कता की प्रतीक्षा है जो आज भी कई जगह दिखाई देती है...

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  50. संजय जी बहुत ही सार्थक रचना सुन्दर सन्देश निम्न बहुत अच्छा लगा

    कपडे हो गए छोटे
    शर्म कहाँ रह गई आज !
    गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
    ममता कहाँ रह गई आज !
    शुक्ल भ्रमर ५

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  51. सौ फीसदी सही बात......बिन लाग लपेट के

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  52. बहुत सही लिखा है आज कल हालात होते जा रहे
    बद से बदतर |
    अच्छी रचना
    बधाई
    आशा

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  53. संजय जी ! बिलकुल सही कहा आपने ! कुछ भी शेष नहीं बचा है .सब कुछ आधुनिकता की भेंट चड़ चुका है ,
    आभार...........................

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  54. दया भावना कहाँ रह गई आज !
    युवा वर्ग हो रहा है अशलीलता का शिकार ....

    बहुत ही बढ़िया........

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  55. अभी भी बहुत कुछ शेष है...

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  56. छात्रों के हाथ में हो गए मोबाइल
    शिक्षा कहाँ रह गई आज !

    sanjay ji ho sake to thoda bacho pe raham karo
    aur sabse pahle apna mobile surrender karo...!!!

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  57. कविता आज के समाज की सच्चाई को बयाँ करती है |

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  58. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  59. @ सत्यम जी..
    ....आज यही तो हो रहा है.
    @ नीलम जी..
    .....बहुत बहुत आभार
    @ कुंदन जी..
    ...आज का सत्य है ये
    @ भूषण जी
    .....बहुत बहुत आभार
    @ केवल राम जी..
    .....वर्तमान हालात है जी
    @ नविन चतुर्वेदी जी..
    .....बहुत बहुत आभार
    @ वंदना जी
    .....बहुत बहुत आभार
    आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

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  60. @ शालिनी कौशिक जी..
    @ ज्ञान चन्द जी..
    @ संजय चौरसिया जी..
    @ ऍम सिंह जी..
    @ राजीव जी..
    @ संध्या शर्मा जी..
    @ कैलाश शर्मा जी..
    .....आप सभी का बहुत बहुत आभार
    आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

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  61. संजय जी नमस्ते !
    हाँ आपकी बातें बिलकुल ठीक हैं !
    आज जैसे जैसे आधुनिकता आ रही है वैसे वैसे लोगों का ईमान गिरता जा रहा है !
    हे राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा

    जवाब देंहटाएं
  62. संजय जी नमस्ते !
    हाँ आपकी बातें बिलकुल ठीक हैं !
    आज जैसे जैसे आधुनिकता आ रही है वैसे वैसे लोगों का ईमान गिरता जा रहा है !
    हे राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा

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  63. संजय जी नमस्ते !
    हाँ आपकी बातें बिलकुल ठीक हैं !
    आज जैसे जैसे आधुनिकता आ रही है वैसे वैसे लोगों का ईमान गिरता जा रहा है !
    हे राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा

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  64. कडवे यथार्थ को बयान करती एक वास्तविक रचना ! बहुत बहुत बधाई !

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  65. sach aur keval sach ko ujagar karti behtarin rachna..........

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  66. sach me jivan bahut badal gaya hai aaj .........

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  67. आज का सत्य हे आप की इस सुंदर रचना मे, धन्यवाद

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  68. सच ही लिख रहे हैं आप। आधुनिकता के नाम पर यह सब क्या हो रहा है। साधारण आदमी की समझ से तो परे ही है। इसे समझ पाना बहुत गूढ़ है विद्वानों की बात वैसे अलग है। शानदार रहा

    मैं इस ब्लॉग को फालो कर रहा हूं। अगर आप चाहें तो मेरा ब्लॉग फालो कर सकते हैं।

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  69. कडवे यथार्थ को बयान करती मर्मस्पर्शी रचना|

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  70. सब कुछ आधुनिकता के नाम पर....
    बहुत सुन्दर रचना

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  71. दुनिया को एक दिन खत्म होना है न, बस उसी तरफ बढ़ रहे हैं हम...

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  72. यथार्थपरक कविता।
    सच्चाई इस रचना में मुखर हो गई है।

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  73. आज के हालात का सटीक चित्रण किया है।.....संजय जी

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  74. गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
    ममता कहाँ रह गई आज !
    ..........बहुत सही लिखा है आज कल हालात होते जा रहे

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  75. aaj ke saty ko ujagar kartee sateek rachana.

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  76. हकीकत बयां करती रचना..... बहुत बढ़िया

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  77. बिलकुल सही लिखा है

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  78. वैसे हाथ में मोबाइल होना ये गलत बात नहीं है लेकिन उसका दुरूपयोग होना ये गलत बात है
    सच्चाई को अवगत करती हुई बहुत ही खूबसूरत रचना

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  79. आज के हालात पर बहुत सुन्दर चित्रण किया है।….. धन्यवाद

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  80. बेहतरीन संजय जी ,
    संजय भास्कर ,बन तू दैनिक भास्कर .

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  81. वर्तमान हालातों को बखूबी अभिव्यक्त किया है,बधाई ...

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  82. छोटी छोटी पंक्तियों में सत्य बात...

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  83. आज ये तो हो रहा है पर कुछ अच्चा भी हो रहा है तभी समाज़ की गाडी चल रही है । समाज की कुप्रवृत्तियों को उठाती हुई सार्थक रचना ।

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  84. बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने !
    मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion

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  85. सत्य वचन संजय जी ....हम अपनी सभ्यता और संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं

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  86. Aapki to baat hi nirali hai Sanjay ji
    jab kehte hain, sochne pe majboor kar dete hain

    A very thoughtful presentation

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  87. लगातार 19 वीं बार टिप्पणियों का शतक बनाकर आपने इतिहास कायम किया है.आपको तो पुरस्कार मिलना चाहिए,संजय जी.कमाल है कमाल.वाह .

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  88. वाह वाह कमाल की कविता है।
    वर्तमान की झांकी ही प्रस्तूत कर दी।

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  89. हालात का सही चित्रण.

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  90. सटीक बेहतरीन भाव लिए रचना... संजय जी ...बधाई

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  91. आपकी टिप्पणी मिलने पर बेहद ख़ुशी हुई! धन्यवाद!

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  92. सुन्दर और बेहतरीन कविता.

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  93. आप भी सादर आमंत्रित हैं
    एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का परिचय
    ये मेरी पहली पोस्ट है
    उम्मीद है पसंद आयेंगी

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  94. टिप्पणियों के शतक के लिये शुभ कामनायें.
    कविता बहुत खूबसूरत है.

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  95. बेहतरीन कविता के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।

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  96. बेनामी6/04/2011

    Sanjay ji......Vaah....kya baat hai.

    Bahut achha likha hai. Apko Bdhaai.

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  97. सब कुछ उल्टा हो गया है संजय भाई ..//

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  98. hum bhi apna lakhshaya pura karna chahte hain kya aap sabhi humare blog par comment nhi karenge :)

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  99. sanjay ji
    aaj to aapki rachna padh kar dil se ek hi bat nikli--WAH
    kin panktiyon ki tarrif karun ,har pankti hi sachchaai ka aaina dikh rahi hain .
    bhaut hi shandar v aaj ki samyikta par karari chot ,
    bahut hi chitran
    hardik dhanyvaad v
    badhai
    poonam

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  100. सुन्दर सार्थक प्रस्तुति.

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  101. आपने तो सच्चाई ही कह दी...बधाई.
    ___________________

    'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!

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  102. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया संजय जी!

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  103. सामयिक और सत्य

    जवाब देंहटाएं
  104. आज की विषम परिस्तिथि और संकीर्ण मानसिकता पर सशक्त प्रहार..!!!


    बहुत सुंदर..!!

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  105. शर्म कहाँ रह गई आज !.....बदलते परिवेश पर करारी चोट की है आप ने ....बहुत खूब

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  106. बिल्‍कुल सच कहा है आपने इस अभिव्‍यक्ति में ...

    जवाब देंहटाएं
  107. सच्चाई को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने...

    जवाब देंहटाएं
  108. कपडे हो गए छोटे
    शर्म कहाँ रह गई आज !
    गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
    ममता कहाँ रह गई आज !

    Saarthak rachna..sach ko byaan karti hue. behadd achhi rachna hai. badhai..

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  109. आज स्थिति बहुत बिगड गई है,जो की चिंता का विषय है.आपकी रचना कड़वे यथार्थ का वास्तविक चित्र प्रस्तुत कर रही है.

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  110. जमाने की सच्चाई को अल्फ़ाज़ों में बहुत खूब पिरोया है |
    सुंदर अभिव्यक्ति ||

    जवाब देंहटाएं

एक निवेदन !
आपके द्वारा दी गई प्रतिक्रिया मेरे लिए मूल्यवान है
- संजय भास्कर