कपडे हो गए छोटे
शर्म कहाँ रह गई आज !
गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
ममता कहाँ रह गई आज !
अनाज हो गया मिलावटी
तो स्वाद कहा रह गया आज !
फूल हो गए प्लास्टिक के
खुशबू कहाँ रह गई आज !
छात्रों के हाथ में हो गए मोबाइल
शिक्षा कहाँ रह गई आज !
इंसान हो गया लालची धन का
दया भावना कहाँ रह गई आज !
युवा वर्ग हो रहा है अशलीलता का शिकार
देश भक्ति भक्ति कहाँ गई आज !
-- संजय भास्कर
सत्य को कहती बेहतरीन रचना..आज यही तो हो रहा है...लाजवाब।
जवाब देंहटाएंकपडे हो गए छोटे
जवाब देंहटाएंशर्म कहाँ रह गई आज !
गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
ममता कहाँ रह गई आज !
इंसान हो गया लालची धन का
दया भावना कहाँ रह गई आज !
Saarthak rachna..sach ko byaan karti hue. behadd achhi rachna hai. badhai..God bless u.
सही कहा बिलकुल आपने एक एक शब्द सही
जवाब देंहटाएंहम आज में जो ढूँढते हैं कई बार वह वास्तव में पुराना हो चुका होता है. लेकिन आपने कुछ शाश्वत मानव-मूल्यों की बात की है. बहुत सुंदर लगा.
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालातों को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने ..!
जवाब देंहटाएंवर्तमान हालातों पर आप का चिंतन जायज़ है
जवाब देंहटाएंआज के हालात का सटीक चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha sanjay ji aaj ke to yahi halat hain.
जवाब देंहटाएंयथार्थ का जीवंत चित्रण !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
सत्य को कहती बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंचीजें तो सब हैं पर उनके मायने बदल गए हैं.
जवाब देंहटाएंसच को समझने और कहने का आपका अंदाज निराला है.बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा है आपने सब कुछ जैसे ख़त्म सा हो रहा है...
जवाब देंहटाएंना जाने ये सब कहाँ जाकर थमेगा या थमेगा ही नहीं.........
आज के हालात की बहुत सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंaaj ke halat...aur unke dushparinam..sunder rachna..
जवाब देंहटाएंकपडे हो गए छोटे
जवाब देंहटाएंशर्म कहाँ रह गई आज !
गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
ममता कहाँ रह गई आज !
सत्य को कहती बेहतरीन रचना....
पता मेरा बता देना, जो आज भी यह सब पूछे तो, शानदार
जवाब देंहटाएंyatharth ki bhavmayi prastuti .badhai
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसोचने का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है.
आप तो 'भास्कर' है, आपसे ही रोशनी की आशा है.
बिल्कुल सच कहा है आपने इस अभिव्यक्ति में ...
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति ।
सटीक चित्रण किया है
जवाब देंहटाएंBILKUL SAHI KAHA HAI SIS AAPNE. SAB CHIJEN LUPT HOTI JA RAHI HAIN.
जवाब देंहटाएंJAI HIND JAI BHARAT
बहुत सटीक !!
जवाब देंहटाएंसही कहा है आज सब कुछ बदल रहा है, लेकिन हर रात के बाद दिन आता है, भूल का अहसास होते ही सुधार की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है आपकी कविता भी उसी का पहला कदम है!
जवाब देंहटाएंसच कहा है संजय जी ... सब कुछ बनावटी हो गया है आज ... आज की दर्शाती लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंहालात का सटीक चित्रण ....
जवाब देंहटाएंekdum true
जवाब देंहटाएंयही चित्र है,
जवाब देंहटाएंहाल विचित्र है।
आज के हालात का सही चित्रण.
जवाब देंहटाएंछात्रों के हाथ में हो गए मोबाइल
जवाब देंहटाएंशिक्षा कहाँ रह गई आज !
iss baat se sahmat nahi hoon..mobile sikshha ko apnane se rokti hai...main nahi manta...!
वर्तमान हालात और आम इंसान की सोच को इस रचना में आपने बखूबी पिरोया है और बहुत ही उम्दा प्रस्तुती आपकी
जवाब देंहटाएंसंजय भास्करजी आभार
सच कहती रचना...
जवाब देंहटाएंसचमुच हालात बहुत बदल गए हैं ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ।
अनाज हो गया मिलावटी
तो सेहत कहाँ रह गई आज ।
शायद यह ज्यादा फिट बैठे ।
Haqiqat ki Tasweer hai yh rachna
जवाब देंहटाएंकपडे हो गए छोटे
शर्म कहाँ रह गई आज !
गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
ममता कहाँ रह गई आज !
आज को आईना दिखाती रचना.
जवाब देंहटाएंमोबाइल और शिक्षा पर असहमत. इसी तरह इंसान लालची कब न था और दया भावना आज भी है.
जवाब देंहटाएंthese lines are exact mirror image of today's world, but i guess still there are some good people(less in no)out in world, and its their impact that we are still called Homo Sapiens i.e wise man !!
जवाब देंहटाएंसत्य रचना ..सुन्दर सार्थक ...
जवाब देंहटाएंकपडे हो गए छोटे
जवाब देंहटाएंशर्म कहाँ रह गई आज !
गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
ममता कहाँ रह गई आज !
अनाज हो गया मिलावटी
तो स्वाद कहा रह गया आज !
Bilkul sahee kahte ho!
कविता छोटी जरुर है, पर सब कुछ समेट बैठी है,
जवाब देंहटाएंसही सही सही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंयथार्थ को कहती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंsab gum ho chale ....her taraf prashn hai , jane kab sabkuch lautker aaye
जवाब देंहटाएंआज के हालात का सटीक चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक बात कही है .
जवाब देंहटाएंइंसान हो गया लालची धन का
दया भावना कहाँ रह गई आज !
.
बहुत खूब
wakayee, bahut kam cheezen hi rah gayee aaz.
जवाब देंहटाएंभास्कर जी ,आपकी भावाभिव्यक्ति इतनी सहज और प्राकृतिक है कि लगता है-पर्वत श्रृंखला से अनायास कोई निर्झर फूट गया हो.इस अनायास को अनायास ही रहने दीजिएगा,सायास कभी मत बनाइएगा. किसी शायर ने कहा है-सादगी भी तो क़यामत की अदा होती है.
जवाब देंहटाएंजीवंत व ज्वलंत चित्रण... आभार सहित.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया एवं सार्थक रचना
जवाब देंहटाएं- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
baut gehen sawaal uthaae hain aaj aapne... har sawaal par socha jaae to ek kitaab likhi jaa sakti hai aur aapne ek kavita mein keh diya...
जवाब देंहटाएंwaah sanjay
जवाब देंहटाएंछात्रों के हाथ में हो गए मोबाइल
जवाब देंहटाएंशिक्षा कहाँ रह गई आज !
इंसान हो गया लालची धन का
दया भावना कहाँ रह गई आज !
बिल्कुल सही कहा है आपने ! सच्चाई को आपने बड़े सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! अद्भुत रचना! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती! बहुत बहुत बधाई!
Sach kah rahe hai aap... badalta samay sab badal deta hai
जवाब देंहटाएंबदलते युग का नकारात्मक दृश्य तो देख लिया..... आपकी कविता में उस सकारात्म्कता की प्रतीक्षा है जो आज भी कई जगह दिखाई देती है...
जवाब देंहटाएंसंजय जी बहुत ही सार्थक रचना सुन्दर सन्देश निम्न बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंकपडे हो गए छोटे
शर्म कहाँ रह गई आज !
गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
ममता कहाँ रह गई आज !
शुक्ल भ्रमर ५
सौ फीसदी सही बात......बिन लाग लपेट के
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है आज कल हालात होते जा रहे
जवाब देंहटाएंबद से बदतर |
अच्छी रचना
बधाई
आशा
steek varnn
जवाब देंहटाएंसंजय जी ! बिलकुल सही कहा आपने ! कुछ भी शेष नहीं बचा है .सब कुछ आधुनिकता की भेंट चड़ चुका है ,
जवाब देंहटाएंआभार...........................
दया भावना कहाँ रह गई आज !
जवाब देंहटाएंयुवा वर्ग हो रहा है अशलीलता का शिकार ....
बहुत ही बढ़िया........
अभी भी बहुत कुछ शेष है...
जवाब देंहटाएंछात्रों के हाथ में हो गए मोबाइल
जवाब देंहटाएंशिक्षा कहाँ रह गई आज !
sanjay ji ho sake to thoda bacho pe raham karo
aur sabse pahle apna mobile surrender karo...!!!
कविता आज के समाज की सच्चाई को बयाँ करती है |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ सत्यम जी..
जवाब देंहटाएं....आज यही तो हो रहा है.
@ नीलम जी..
.....बहुत बहुत आभार
@ कुंदन जी..
...आज का सत्य है ये
@ भूषण जी
.....बहुत बहुत आभार
@ केवल राम जी..
.....वर्तमान हालात है जी
@ नविन चतुर्वेदी जी..
.....बहुत बहुत आभार
@ वंदना जी
.....बहुत बहुत आभार
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ शालिनी कौशिक जी..
जवाब देंहटाएं@ ज्ञान चन्द जी..
@ संजय चौरसिया जी..
@ ऍम सिंह जी..
@ राजीव जी..
@ संध्या शर्मा जी..
@ कैलाश शर्मा जी..
.....आप सभी का बहुत बहुत आभार
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
संजय जी नमस्ते !
जवाब देंहटाएंहाँ आपकी बातें बिलकुल ठीक हैं !
आज जैसे जैसे आधुनिकता आ रही है वैसे वैसे लोगों का ईमान गिरता जा रहा है !
हे राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा
संजय जी नमस्ते !
जवाब देंहटाएंहाँ आपकी बातें बिलकुल ठीक हैं !
आज जैसे जैसे आधुनिकता आ रही है वैसे वैसे लोगों का ईमान गिरता जा रहा है !
हे राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा
संजय जी नमस्ते !
जवाब देंहटाएंहाँ आपकी बातें बिलकुल ठीक हैं !
आज जैसे जैसे आधुनिकता आ रही है वैसे वैसे लोगों का ईमान गिरता जा रहा है !
हे राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा
बहुत उत्तम रचना
जवाब देंहटाएंकडवे यथार्थ को बयान करती एक वास्तविक रचना ! बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंsach aur keval sach ko ujagar karti behtarin rachna..........
जवाब देंहटाएंsach me jivan bahut badal gaya hai aaj .........
जवाब देंहटाएंआज का सत्य हे आप की इस सुंदर रचना मे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसच ही लिख रहे हैं आप। आधुनिकता के नाम पर यह सब क्या हो रहा है। साधारण आदमी की समझ से तो परे ही है। इसे समझ पाना बहुत गूढ़ है विद्वानों की बात वैसे अलग है। शानदार रहा
जवाब देंहटाएंमैं इस ब्लॉग को फालो कर रहा हूं। अगर आप चाहें तो मेरा ब्लॉग फालो कर सकते हैं।
कडवे यथार्थ को बयान करती मर्मस्पर्शी रचना|
जवाब देंहटाएंसब कुछ आधुनिकता के नाम पर....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
very true !
जवाब देंहटाएंsundar
दुनिया को एक दिन खत्म होना है न, बस उसी तरफ बढ़ रहे हैं हम...
जवाब देंहटाएंयथार्थपरक कविता।
जवाब देंहटाएंसच्चाई इस रचना में मुखर हो गई है।
समय अनवरत घूमने वाला पहिया है...
जवाब देंहटाएंSach hi to likha
जवाब देंहटाएंआज के हालात का सटीक चित्रण किया है।.....संजय जी
जवाब देंहटाएंगर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
जवाब देंहटाएंममता कहाँ रह गई आज !
..........बहुत सही लिखा है आज कल हालात होते जा रहे
aajke halat ko darshati sundar rachna
जवाब देंहटाएंaaj ke saty ko ujagar kartee sateek rachana.
जवाब देंहटाएंहकीकत बयां करती रचना..... बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंits true....
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा है
जवाब देंहटाएंवैसे हाथ में मोबाइल होना ये गलत बात नहीं है लेकिन उसका दुरूपयोग होना ये गलत बात है
जवाब देंहटाएंसच्चाई को अवगत करती हुई बहुत ही खूबसूरत रचना
आज के हालात पर बहुत सुन्दर चित्रण किया है।….. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संजय जी ,
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर ,बन तू दैनिक भास्कर .
वर्तमान हालातों को बखूबी अभिव्यक्त किया है,बधाई ...
जवाब देंहटाएंछोटी छोटी पंक्तियों में सत्य बात...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
जवाब देंहटाएंआज ये तो हो रहा है पर कुछ अच्चा भी हो रहा है तभी समाज़ की गाडी चल रही है । समाज की कुप्रवृत्तियों को उठाती हुई सार्थक रचना ।
जवाब देंहटाएंसत्य वचन संजय जी ....हम अपनी सभ्यता और संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं
जवाब देंहटाएंAapki to baat hi nirali hai Sanjay ji
जवाब देंहटाएंjab kehte hain, sochne pe majboor kar dete hain
A very thoughtful presentation
लगातार 19 वीं बार टिप्पणियों का शतक बनाकर आपने इतिहास कायम किया है.आपको तो पुरस्कार मिलना चाहिए,संजय जी.कमाल है कमाल.वाह .
जवाब देंहटाएंवाह वाह कमाल की कविता है।
जवाब देंहटाएंवर्तमान की झांकी ही प्रस्तूत कर दी।
हालात का सही चित्रण.
जवाब देंहटाएंसटीक बेहतरीन भाव लिए रचना... संजय जी ...बधाई
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक कहा आपने।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी मिलने पर बेहद ख़ुशी हुई! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और बेहतरीन कविता.
जवाब देंहटाएंआप भी सादर आमंत्रित हैं
जवाब देंहटाएंएक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का परिचय
ये मेरी पहली पोस्ट है
उम्मीद है पसंद आयेंगी
टिप्पणियों के शतक के लिये शुभ कामनायें.
जवाब देंहटाएंकविता बहुत खूबसूरत है.
बेहतरीन कविता के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंbahut sahi likha hai ,rachna sundar hai .
जवाब देंहटाएंsach ko darshati rachna....
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंSanjay ji......Vaah....kya baat hai.
जवाब देंहटाएंBahut achha likha hai. Apko Bdhaai.
सब कुछ उल्टा हो गया है संजय भाई ..//
जवाब देंहटाएंhum bhi apna lakhshaya pura karna chahte hain kya aap sabhi humare blog par comment nhi karenge :)
जवाब देंहटाएंsanjay ji
जवाब देंहटाएंaaj to aapki rachna padh kar dil se ek hi bat nikli--WAH
kin panktiyon ki tarrif karun ,har pankti hi sachchaai ka aaina dikh rahi hain .
bhaut hi shandar v aaj ki samyikta par karari chot ,
bahut hi chitran
hardik dhanyvaad v
badhai
poonam
सुन्दर सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआपने तो सच्चाई ही कह दी...बधाई.
जवाब देंहटाएं___________________
'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया संजय जी!
जवाब देंहटाएंसत्य वचन ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसामयिक और सत्य
जवाब देंहटाएंयही सत्य है..
जवाब देंहटाएंआज की विषम परिस्तिथि और संकीर्ण मानसिकता पर सशक्त प्रहार..!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..!!
शर्म कहाँ रह गई आज !.....बदलते परिवेश पर करारी चोट की है आप ने ....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा है आपने इस अभिव्यक्ति में ...
जवाब देंहटाएंसच्चाई को बखूबी अभिव्यक्त किया है आपने...
जवाब देंहटाएंकपडे हो गए छोटे
जवाब देंहटाएंशर्म कहाँ रह गई आज !
गर्भ में कर देते है भ्रूण हत्या
ममता कहाँ रह गई आज !
Saarthak rachna..sach ko byaan karti hue. behadd achhi rachna hai. badhai..
आज स्थिति बहुत बिगड गई है,जो की चिंता का विषय है.आपकी रचना कड़वे यथार्थ का वास्तविक चित्र प्रस्तुत कर रही है.
जवाब देंहटाएंजमाने की सच्चाई को अल्फ़ाज़ों में बहुत खूब पिरोया है |
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ||