मुझे याद है करीब तीन वर्ष पहले मैंने ब्लॉग नई सोच पर एक रचना पढ़ी थी.....बेटी.. माटी सी ..जिस पढ़कर एक गहरी टीस सी उठी जिसमे एक माँ ने मर्म को छूती एक हकीकत बयां की तब से लेखिका के ब्लॉग पर आना जाना लगा रहा और बहुत सी सुंदर रचनाएँ पढ़ने को मिली जी मैं बात का रहा हूँ
एक कुशल कवियत्री,ब्लॉगर आदरणीय सुधा देवरानी जी की ब्लॉग ( नई सोच ) उनका दृष्टिकोण हम उनकी कुछ कविताओं मे देख सकते है करीब पांच वर्षों से सुधा जी का लेखन पढ़ रहा हूँ सुधा जी बेहद संवेदनशील रचनाकार के रूप में अपने आप को स्थापित किया है उनकी रचनायें जीवन के प्रति उनके विशिष्ट दृष्टिकोण को भी दर्शाती हैं और नियमित रूप से काफी ब्लॉग पर अपनी निरंतरता बनाये रखती है मुझे सुधा जी कलम से निकली रचनाएँ बहुत प्रभावित करती है बेटी माटी सी रचना ने बहुत प्रभावित किया जिसमे बेटियां जो समाज की संजोयी निधि की तरह है उनके विकास हेतु एक अलग नजरिया होना अति आवश्यक है कविता मे नारी मन की वेदना को लिखा है सुधा जी कुछ रचनाएँ जैसे
....विचार मंथन, ....लघु कथा सिर्फ गृहिनी, ....अपने हिस्से का दर्द, .....चल ज़िंदगी तुझको चलना ही होगा आदि सुधा जी के बारे मे कुछ लिखना चाहता था पर समय नही मिला पर जा आज समय मिलते ही उनके बारे मे लिखा रहा हूँ पोस्ट के अंत मे सुधा जी की एक रचना साँझा का रहा हूँ उमीद है सबको पसंद आये......!!
शीर्षक है.....बेटी माटी सी
कभी उसका भी वक्त आयेगा ?
कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते
मन हल्का वह कर पायेगी ?
हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ....?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ....?
गर कुछ अच्छा हो जाता है
तो श्रेय तुम्ही को जाता है
इज्ज़त है तुम्हारी परमत भी
उससे कैसा ये नाता है......?
दिन रात की ड्यूटी करके भी
करती क्या हो सब कहते हैं
वह लाख जतन कर ले कोशिश
पग पग पर निंदक रहते हैं
खुद को साबित करते करते
उसकी तो उमर गुजरती है
जब तक विश्वास तुम्हें होता
तब तक हर ख्वाहिश मरती है
सूनी पथराई आँखें तब
भावशून्य हो जाती हैं
फिर वह अपनी ही दुश्मन बन
इतिहास वही दुहराती है
बेटी को वर देती जल्दी
दुख सहना ही तो सिखाती है
बेटी माटी सी बनकर रहना
यही सीख उसे भी देती है !!
- संजय भास्कर
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०६-०८ -२०२२ ) को 'उफन रहीं सागर की लहरें, उमड़ रहीं सरितायें'(चर्चा अंक -४५१३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुधा देवरानी जी को उनके ब्लॉग में पढ़ते रहते हैं लेकिन आपकी कलम से उन्हें जांनना और उनकी रचना पढ़ना अच्छा लगा।
तहेदिल से धन्यवाद आ.कविता जी !
हटाएंआपका स्नेह एवं मार्गदर्शन की आकांक्षी हूँ हमेशा...
सस्नेह आभार ।
सुधा देवरानी जी की लेखनी से निःसृत कविताएँ ,नवगीत,
जवाब देंहटाएंगीतिका,हाइकु ,लघुकथा,समीक्षा और गीत आदि की बानगी उनके ब्लॉग “नई सोच”पर देखते ही बनती है । आपकी कलम से उनकी साहित्यिक विशेषताओं को जानना और उनकी कविता को पढ़ना सुखद अनुभव है ।सुधा जी की सृजन शैली को उद्घाटित करता बहुत सुन्दर लेख अनुज संजय !
सहृदय धन्यवाद मीना जी ! आपकी उत्साहवर्धन करती समीक्षा मुझे हमेशा ऊर्जान्वित कर प्रोत्साहित करती है ।
हटाएंसस्नेह आभार आपका ।
आभारी हूँ संजय जी , और आश्चर्यचकित भी...सोचा ही नहीं कभी कि मेरे बारे में भी कुछ लिखा जा सकता है । फिर भी आपकी कलम से अपने आप के बारे में जानकर कुछ अलग सा महसूस हो रहा है..सोच रही हूँ कि भावोद्रेक में निसृत चन्द विचार विद्वजनों से साझा कर क्या मैं सचमुच लेखिका कहलाने योग्य हो गयी...
जवाब देंहटाएंपता नहीं...परन्तु सुखद बहुत है ये एहसास। और इसके लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं साधुवाद आपकी लेखनी को जो मुझ में भी कुछ लिखने योग्य ढूँढ पायी।
🙏🙏🙏🙏
सुधा जी की काव्यमय भावाभिव्यक्ति हृदयस्पर्शी है तथा इसके प्रस्तुतीकरण हेतु आप साधुवाद के पात्र हैं। वैसे अब समय मंद-मंद ही सही, परिवर्तित हो रहा है। अब अधिकांश (भुक्तभोगी) माताएं अपनी बच्चियों को उस मार्ग पर चलने की सीख नहीं देती हैं जिस पर उन्हें अपनी नियति मानकर चलना पड़ा था। पीढ़ीगत परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा है।
जवाब देंहटाएंबढियां समिक्षा अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख। सुधा देवरानी की रचनाओं k बारे में अच्छी जानकारी मिली। हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय संजय,प्रिय सुधा जी देवरानी पर ये सुन्दर लेख कई दिन पहले भी पढ़ा था पर तब लिख ना सकी।रचना तो आपने भावपूर्ण चुनी ही है पर जो उनका परिचय दिया है वो बहुत ही सटीक विश्लेषण है उनके गरिमामय व्यक्तित्व का।सुधा जी एक सुदक्ष रचनाकार होने के साथ ब्लॉग जगत की उत्तम समीक्षक और स्नेही पाठिका हैं।वे सबकी रचनाएँ अत्यंत स्नेहपूर्वक पढ़कर उस पर अपनी उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया जरुर देती हैं।निसन्देह अपने ब्लॉग की रचनाओं से कहीं अधिक, ब्लॉग जगत में यत्र-तत्र-सर्वत्र उनकी टिप्पणियाँ मिलतीं हैं जिनमें रचनाकारों की रचनाओं का गहरा मर्म और सार मिलता है।बेटी माटी-सी उनकी बहुत ही मार्मिक रचना है जिसमें यही सन्देश निहित हैं कि अपने जीवन में सब कुछ करके भी बदले में कुछ ना पाने वाली माँ भी अपनी बेटी को माटी सी ही बनने की शिक्षा देती है।शायद इसीलिए संसार में नारी तुल्य कोई और शक्ति नहीं। धरती-सा उसका धैर्य उसे विशेष बनाता है।ये रचना नारी जीवन की विडम्बना को दर्शाती है ।इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए तुम्हें आभार और सुधा जी को ढेरों शुभकामनाएं और प्यार 🌺🌺🌹🌹
जवाब देंहटाएंसुधा जी के ब्लॉग के संबंध में अत्यंत सुंदर और महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने । मैं भी सुधाजी को निरंतर पढ़ती हूं, हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं पर उनका सतत लेखन हर पाठक के लिए जिज्ञासा बनाए रखता है, उनकी लेखनी से निकली कविताएं और कहानियां जीवन मूल्यों और मानव मन से जुड़ी होतीं है, "बेटी माटी की" कविता आज दिल से छू गई, आज मेरी बेटी का जन्मदिन है, उसको शेयर करूंगी ।
जवाब देंहटाएंवो निरंतर लिखती रहे,उनकी लेखनी समृद्ध रहे, उन्हें मेरी अनंत शुभकामनाएं ।
आपका हार्दिक अभिनंदन करती हूं प्रिय बंधुवर ।
आपका लेखकीय स्नेह हर रचनाकार के लिए प्रेरणादाई है ।