मेरे आलेख चिड़ियाँ का हमारे आंगन मे आना को पढ़कर आदरणीय जिज्ञासा जी ने गोरैया दिवस पर लिखी रचना को मेरे आलेख को समर्पित किया जिसे आप सभी के समक्ष साँझा कर रहा हूँ रचना के लिए बहुत- बहुत आभार जिज्ञासा जी
संजय जी, गौरैया पर आपका ये आलेख बहुत ही चिंतनपूर्ण और विचारणीय है, सौभाग्य से मेरे घर बहुत गौरैया आती हैं और घोसला भी बनाती हैं अभी एक महीना पहले गौरैया अपने तीन चिड्डों के साथ मेरा घर गुलजार किए थीं सभी उड़ गए गौरैया के लिए पानी, दाना और कुछ झुरमुटी पौधों का होना बहुत जरूरी होता है वे बड़े आनंद में रहती हैं, गौरैया दिवस पर लिखी एक रचना आपके आलेख को समर्पित है:
गौरैया को समर्पित गीत🐥🌴
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अब उससे हो कैसे परिचय ?
दो पंखों से उड़ने वाली,
दो दानों पे जीने वाली,
जीवन पर फिर क्यूँ संशय ॥
तीर निशाने पर साधे
बड़े शिकारी देखें एकटक,
घात लगाए बैठे हैं
घर अम्बर बाग़ानों तक,
संरक्षण देने वालों ने
डाल दिया आँखों में भय ॥
कंकरीट के जाल
परों को नोच रहे हैं,
जंगल सीमित हुए
सरोवर सूख रहे हैं,
हुआ तंत्र जब मौन
सुनेगा कौन विनय ॥
ये नन्ही गौरैया चिड़ियां
मिट्टी मानव छोड़,
दूर कहीं हैं चली जा रहीं
जग से नाता तोड़,
वहाँ जहाँ पर पंख खुलें
फुर फुर उड़ना निर्भय ॥
-जिज्ञासा सिंह
--संजय भास्कर
तीर निशाने पर साधे
जवाब देंहटाएंबड़े शिकारी देखें एकटक,
घात लगाए बैठे हैं
घर अम्बर बाग़ानों तक,
संरक्षण देने वालों ने
डाल दिया आँखों में भय ॥////
प्रिय संजय , जिज्ञासा जी की लेखनी प्रकृति से जुडी है और प्रकृति का श्रृंगार करता है चिड़िया का मधुर कलरव | उसके मिटते अस्तित्व पर जिज्ञासा जी ने बहुत ही मार्मिक रचना लिखी है | सच है जब कंक्रीट के सौदागर इस रह के प्रपंच रच रहे, निरीह गौरैया कब तक खुद को बचाएगी | सहयोगियों के प्रति अत्यंत उदार दृष्टिकोण से तुमने ब्लॉग जगत में एक अलग पहचान बनायी है | इस सराहनीय पहल के लिए हार्दिक आभार | जिज्ञासा जी को भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं |
आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया मेरे ख्याल से हर ब्लॉगर के लिए संजीवनी है खासकर मेरे जैसों के लिए ।आपका स्नेह सर आंखों पर । बहुत आभार सखी ।
हटाएंसंजय जी आपके ब्लॉग पर मेरी रचना की प्रस्तुति अन्तर्मन को छू गई । आपकी इस सदाशयता के लिए तहेदिल से आभारी हूं, मैने सोचा भी नही था कि मेरी एक प्रतिक्रिया आपकी ब्लॉगपोस्ट बनेगी । ब्लॉग जगत में आपकी ये पहल बहुत ही सराहनीय और प्रेरक है । इस तरह का प्रोत्साहन सहस सरस हर्ष दे जाता है, जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं ।आपकी ये पहल ब्लॉग के लिए भी संजीवनी है ।
जवाब देंहटाएंमैंने जब ब्लॉग लिखना आरंभ किया था उस समय मैने गौरैया के ऊपर एक रचना "गौरैया और मेरी गुड़िया" पोस्ट की थी । वो रचना आदरणीय विश्वमोहन जी ने अपने मित्र संजय कुमार जी को पोस्ट की थी जो बिहार में गौरैया संरक्षण की दिशा में काफी काम कर रहे हैं, या कहें कि देश स्तर पे। वो रचना बिहार सरकार की प्रदर्शनी में लगी । एक और गौरैया गीत जो गौरैया के ऊपर मैंने बहुत पहले लिखा था वो संजय कुमार जी की प्रसिद्ध किताब "अभी मैं जिंदा हूं गौरैया" में प्रकाशित है और उस गीत को बहुत प्रशंसा मिली । वैसे मैंने करीब बीस रचनाएँ गौरैया पर लिखी हैं।
आज आपने इस रचना को मान दिया । एक बार फिर आपका बहुत आभार ।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-07-2022) को चर्चा मंच "सिसक रही अब छाँव है" (चर्चा-अंक 4489) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना लगी यह ,नन्ही सुंदर चिड़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस पूरे गौरैया संवाद का आनंद लिया । अच्छा लगा । साहित्य संवाद स्थापित करने के लिए ही तो है । गौरैया से हमारा भी आत्मीय रिश्ता रहा है । जिज्ञासा जी जितनी नहीं । पर कई बार कविता,कहानी लिखी हैं अपने ब्लॉग पर । एक बात मन में आई । क्यों न गौरैया पर आधारित किसी भी विधा में लेखन का एक संग्रह तैयार किया जाए ?
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार नूपुर जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट ।जिज्ञासा जी का लेखन बहुत प्रभावित करता है । गौरैया के लिए आपके ले़ख व
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी को कविता के लिए बहुत बहुत बधाई ।
मनुष्य से अधिक स्वार्थी भला और कौन हो सकता है जिसने नन्हीं सी गौरैया का जीवन ही असंभव सा बना दिया। संजय जी आपका लेख भी बहुत अच्छा था और जिज्ञासा जी की कविता भी। आप दोनों को बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयग्राही नन्ही गौरैया की व्यथा-कथा! कवयित्री व प्रस्तोता दोनों को हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंसत्य को प्रस्तुत किया सपने,,,,सराहनीय प्रयास
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