24 अप्रैल 2019

Memories Of School Days एक पिता का वात्सल्य गुलाबी चूड़ियाँ :)

जब भी कभी नागार्जुन बाबा का नाम दिमाग में आया सबसे पहले दिमाग में गुलाबी चूड़ियाँ ही याद आई ......कभी कभी पुरानी यादें लौट आती है याद नहीं कौन सा वर्ष रहा होगा पर इतना जरूर याद है स्कूल में हिंदी की क्लास में एक ट्रक ड्राईवर के बारें में ऐसे पिता का वात्सल्य जो परदेस में रह रहा है घर से दूर सड़कों पर महीनों चलते हुए भी उसके दिल से ममत्व खत्म नहीं हुआ जो अपनी बच्ची से बहुत प्यार करता है !............. यह कविता है नागार्जुन बाबा की “गुलाबी चूड़ियाँ”  जिसे उसने अपने ट्रक में टांग रखा है ये चूडियाँ उसे अपनी गुड़िया की याद दिलाती और वो खो जाता है हिलते डुलते गुलाबी चूड़ियाँ की खनक में .........!!

कविता के अंश…...गुलाबी चूड़ियाँ

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…

झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने


मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !

-- बाबा नागार्जुन

12 टिप्‍पणियां:

Meena Bhardwaj ने कहा…

और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वरना किसे नहीं भाँएगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ !...... पिता के स्नेह में डूबी यादें और गुलाबी चूड़ियाँ ..., अत्यन्त सुन्दर सृजन । नागार्जुन के काव्य भंडार का अनमोल मोती... गुलाबी चूड़ियाँ ।

Sweta sinha ने कहा…

बाबा नागार्जुन को पढ़ना एक अलग अनुभव है..यथार्थथवादी बेजोड़ लेखन और बिना लग-लपेट के दो टूक अभिव्यक्ति...भावों का गज़ब का संप्रेषण मिलता है इनकी रचनाओं में।
बहुत ही शानदार रचना का चयन किया है आपने..सादर आभार संजय जी..नायाब रचना पढ़वाने के लिए।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गुलाबी चूड़ियाँ ...
यादों को झंझोड़ गई बाबा की रचना ... मर्म को कितना करीब से समझते थे बाबा नागार्जुन ...
जन के कवी शायद ऐसे ही बनते हैं ...

शुभा ने कहा…

वाह!!संजय जी ,इतनी खूबसूरत रचना साझा करने हेतु धन्यवाद । दिल को छू गई ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, संजय जी।

Kailash Sharma ने कहा…

कई बार पढ़ी बाबा की कविता आज भी अंतस को छू जाती है। प्रस्तुति के लिए आभार...

M VERMA ने कहा…

सहजता ही तो बाबा की रचनाओं की जान है

जीवंत संयोजन

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

यह चूड़ियों का प्रतीक सदा से बड़ा प्यारा रहा है! रविन्द्र नाथ ठाकुर की काबुलिवाला से लेकर बाबा नागार्जुन की इस कविता तक! धन्यवाद भागिनेय!

Kamini Sinha ने कहा…

बहुत खूब संजय जी ,वातसल्य रस में डूबी बाबा नागर्जुन की इस प्यारी रचना को प्रस्तुत करने के लिए , सादर नमस्कार आप को

Anuradha chauhan ने कहा…

छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
बेहद हृदयस्पर्शी प्यारी रचना बाबा नागार्जुन की सुंदर प्रस्तुति के लिए आपका आभार आदरणीय

Meena sharma ने कहा…

इस सुंदर कविता को साझा करने हेतु सादर आभार।

ज्योति सिंह ने कहा…

ठीक कहा दिगम्बर जी ने ,अद्भुत हृदस्पर्शी रचना ,उन्हें बस प्रणाम