घर से दफ्तर के लिए
निकलते समय रोज छूट
जाता है मेरा लांच बॉक्स और साथ ही
रह जाती है मेरी घड़ी
ये रोज होता हो मेरे साथ और
मुझे लौटना पड़ता है उस गली के
मोड़ से
कई वर्षो से ये आदत नहीं बदल पाया मैं
पर अब तक मैं यह नहीं
समझ पाया
जो कुछ वर्षो से नहीं हो पाया
वह कुछ महीनो में कैसे हो पायेगा
अखबार के माध्यम से की गई
तमाम घोषणाएं
समय बम की तरह लगती है
जो अगर नहीं पूरी हो पाई
तो एक बड़े धमाके के साथ
बिखर जायेगा सबकुछ......!!
हर बार नया साल नयी उम्मीदें, नयी आशा लेकर आता है,
यह नया साल आपके सभी के जीवन में ढेर सारी खुशियां और खूबसूरत समय लेकर आए आप सभी को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं !!
यह नया साल आपके सभी के जीवन में ढेर सारी खुशियां और खूबसूरत समय लेकर आए आप सभी को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं !!
- संजय भास्कर
18 टिप्पणियां:
कैलेण्डर बदलता है बाकी सब तो वैसा ही चलता रहता है. जोश में सभी सोच लेते हैं ऐसा करेंगे वैसा करेंगे, लेकिन होता वही है जो चलता आ रहा है। बहुत कुछ कहाँ बदलता है दुनिया में फिर भी नया साल है एक पर्व कह लो .....
आपको भी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत अच्छे से दार्शनिक भाव में मानव प्रवृतियों को समय के साथ बांधा है आपने ....., "अखबार के माध्यम से की तमाम घोषणाएँ समय बम की तरह लगती है
जो अगर नहीं पूरी हो पाई
तो एक बड़े धमाके के साथ
बिखर जायेगा सबकुछ......!!
घोषणाएं चाहे बच्चे करें या बड़े .पूरी कहां होती हैं . नव वर्ष की परिवार सहित हार्दिक मंगल कामनाएँ.
समय के पहिये अनवरत चलते है बिना रुके,तारीख कैलेंडर में साल-दर साल बदलते है ज़िदगी अपनी रफ्तार मे चलती है और हम सहूलियत के हिसाब से बदलते है।
बहुत सुंदर लिखा आपने.....लाज़वाब संजय जी👌👌
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको
हृदय से आपकी शुभेच्छाओं के लिए प्रार्थना है। नववर्ष मंगलमय हो यही कामना।
वाआआह क्या बात है ... बेहतरीन रचना
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, १०० में से ९९ बेईमान ... फ़िर भी मेरा भारत महान “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
साहित्यकार केवल राह बता सकता है चिंता कर सकता है
बाकी कुछ नहीं
यूँ ही लेखनी सदा चलती रहे
Waah...sahab, kavi ki kalpana dekhiye
वाह!!संजय जी ,बहुत खूब लिखा । समय तो समय है ,न रुका है न रुकेगा .......
आपको नववर्ष की मंगलकामनाएं।
सुंदर लेखन..नव वर्ष की शुभकामनायें !
सुंदर संजय
बूढ़ा इंतज़ार
उस टीन के छप्पर मैं
पथराई सी दो बूढी आंखें
एकटक नजरें सामने
दरवाजे को देख रही थी
चेहरे की चमक बता रही है
शायद यादों मैं खोई है
एक छोटा बिस्तर कोने में
सलीके से सजाया था
रहा नहीं गया पूछ ही लिया
अम्मा कहाँ खोई हो
थरथराते होटों से निकला
आज शायद मेरा गुल्लू आएगा
कई साल पहले कमाने गया था
बोला था "माई'' जल्द लौटूंगा
आह : .कलेजा चीर गए वो शब्द
जो उन बूढ़े होंठों से निकले।
मार्मिक रचना ,बेहद खूबसूरत
ये सच है बदलना आसान नहीं होता पर फिर भी इच्छा न रहे बदलाव की टी जड़ हो जायगा सब कुछ ...
आशा और उमंग को जीवित रखना भी जरूरी है ...
नव वर्ष की मंगल कामनाएं ....
सुप्रभात संजय जी,वाह!!! मुझे लौटना पड़ता उस गली से... कमाल की पंक्तियां लिख डाली आपने,ये दैनिक संवाद ये क्रियाकलाप जब शब्दों में ढलकर आते हैं स्वत:ही मन उन से जुड़ जाता है ... बहुत खुबसूरत कविता लिखी आपने ... साथ ही नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ..!
सुंदर कविता
सही कहा संजय जी हम नए साल पर वादे तो बहुत कर लेते हैं लेकिन वास्तव में उन्हें निभा नहीं पाते। बहुत सुन्द4 अबिव्यक्ति।
bahut khub sanjay ji
सुन्दर रचना
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