कई दिनों बाद आज सुबह जैसे ही ब्लॉग पढ़ने बैठा नर्मदा के बारे में पढ़ रहा था तभी अचानक नर्मदा बचाओ आंदोलन की याद आई और नाम उभर कर आया बाबा आमटे नर्मदा घाटी के आदिवासी मछुआरों, किसानों की आवाज बुलन्द कर नर्मदा बचाओ आन्दोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले बाबा आमटे
तभी तुरंत कविता दीदी के ब्लॉग पर गया उनके ब्लॉग पर बाबा आमटे के बारे में एक आलेख पढ़ा था कुछ दिनों
नर्मदा बचाओ आन्दोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले बाबा आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को हिंगणापुर में हुआ। बाबा जीवन भर दुःखी और रोगी लोगों की सेवा में लगे रहे। युवाओं के लिए वे हमेशा प्ररेणास्रोत बने रहे, जिनके लिए उनका मूल मंत्र था- "हाथ लगे निर्माण में, नहीं मांगने, मारने में।" वे एक संवेदनशील कवि और साहित्यकार जिन्होंने सरकार द्वारा उपेक्षित आदिवासियों के दर्द को उन्होंने करीब से जिया और उनके लिए जिन्दगी भर आखिरी सांस तक जूझते-लड़ते रहे, लेकिन हारे नहीं, यह बात उनकी कई कविताओं में साफ देखने को मिलती हैं। ऐसी ही एक कविता "एक कुम्हलाते फूल का उच्छ्वास" में वे कहते हैं
कविता दीदी के ब्लॉग से साभार
मैं सतासी का हूँ
एक रीढ़हीन व्यक्ति जो बैठ नहीं पाता
मुरझा रहा हूँ मैं पंखुरी-ब-पंखुरी
लेकिन, क्या तुम नहीं देखते
मेरा रक्तास्रावी पराग?
मैं निश्चयी हूँ,
मगर ईश्वर मदद करे मेरी
कि रत रहूँ मैं गहरी हमदर्दी में
जो आदिवासियों की बेहाली से है।
वंचित विपन्न आदिवासियों की व्यथा का
किसी भी सत्ता द्वारा अपमान
अश्लील है और अमानवीय
सतासी पर
उम्र मुझे बांधे है दासता में
मैं पा चुका हूँ असह्य आमंत्रण अपने
आखिरी सफर का,
फिर भी मैं डटा हूँ
पाठको, मत लगाओ अवरोधक अपने
आवेग पर
कोई नहीं विजेता
सब के सब आहत हैं, आहत!
एक फूल की इस आह को कान दो!!
एक सच्चे निस्स्वार्थ समाजसेवी बाबा आमटे जी को विनम्र नमन
-- संजय भास्कर
तभी तुरंत कविता दीदी के ब्लॉग पर गया उनके ब्लॉग पर बाबा आमटे के बारे में एक आलेख पढ़ा था कुछ दिनों
नर्मदा बचाओ आन्दोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले बाबा आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को हिंगणापुर में हुआ। बाबा जीवन भर दुःखी और रोगी लोगों की सेवा में लगे रहे। युवाओं के लिए वे हमेशा प्ररेणास्रोत बने रहे, जिनके लिए उनका मूल मंत्र था- "हाथ लगे निर्माण में, नहीं मांगने, मारने में।" वे एक संवेदनशील कवि और साहित्यकार जिन्होंने सरकार द्वारा उपेक्षित आदिवासियों के दर्द को उन्होंने करीब से जिया और उनके लिए जिन्दगी भर आखिरी सांस तक जूझते-लड़ते रहे, लेकिन हारे नहीं, यह बात उनकी कई कविताओं में साफ देखने को मिलती हैं। ऐसी ही एक कविता "एक कुम्हलाते फूल का उच्छ्वास" में वे कहते हैं
कविता दीदी के ब्लॉग से साभार
मैं सतासी का हूँ
एक रीढ़हीन व्यक्ति जो बैठ नहीं पाता
मुरझा रहा हूँ मैं पंखुरी-ब-पंखुरी
लेकिन, क्या तुम नहीं देखते
मेरा रक्तास्रावी पराग?
मैं निश्चयी हूँ,
मगर ईश्वर मदद करे मेरी
कि रत रहूँ मैं गहरी हमदर्दी में
जो आदिवासियों की बेहाली से है।
वंचित विपन्न आदिवासियों की व्यथा का
किसी भी सत्ता द्वारा अपमान
अश्लील है और अमानवीय
सतासी पर
उम्र मुझे बांधे है दासता में
मैं पा चुका हूँ असह्य आमंत्रण अपने
आखिरी सफर का,
फिर भी मैं डटा हूँ
पाठको, मत लगाओ अवरोधक अपने
आवेग पर
कोई नहीं विजेता
सब के सब आहत हैं, आहत!
एक फूल की इस आह को कान दो!!
एक सच्चे निस्स्वार्थ समाजसेवी बाबा आमटे जी को विनम्र नमन
-- संजय भास्कर
14 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लगा कि आपने मेरे ब्लॉग से बाबा आमटे जी के बारे में जानकारी प्रस्तुत की ....धन्यवाद
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति एवम् सराहनीय भी !!!
बाबा आमटे को सादर नमन..
कविता जी की बहुत ही प्रभावी रचना ... बाबा आप्टे द्वारा समाज में अलख जगाने प् सफल प्रयास आज भी सभी को जुबानी है ...
नमन है बाबा को ...
अच्छी प्रस्तुति.....
सुन्दर ,सारगर्भित ,सराहनीय !
बधाई !!
कर्मनिष्ठ और महान बाबा आम्टे जी पर रचनाधर्मिता के लिए आपको विशेष बधाई*****
सच्चे समाजसेवी को नमन ।
अच्छी प्रेरणादायी प्रस्तुति ।
भैया भास्कर को जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
सुन्दर और सार्थक
सुन्दर और सार्थक
सुन्दर और सार्थक
बाबा आमटे को सादर नमन..
बहुत सुन्दर व सार्थक लेख .
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