03 जुलाई 2012

.......कहीं ऐसा तो नहीं--संजय भास्कर

कहीं ऐसा तो नहीं की 
हम इस दुर्लभ जीवन के 
अनमोल क्षणों  को 
गवा रहे है ?
दुनिया की चकाचौंध में   
तो क्यों न हम 
स्वयं में झांके ,
की हम कितने पानी मैं है |
कहीं ऐसा तो नहीं की 
हम अटक गए है 
आलस्य में , परमाद मै 
और भूल बैठे है 
अपने  ध्येय को अपने कर्तव्य को 
तो क्यों हम पहचाने 
समय की महता को 
मेहनत की गरिमा को 
और हमारे कदम बढ उठे 
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!

( चित्र गूगल से साभार  )

@ संजय भास्कर

68 टिप्‍पणियां:

kunwarji's ने कहा…

सृजन के पथ पर... नयी मंजिल की और...

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ !
कहा सोचते हम अक्सर कि सच में कही ऐसा तो नहीं.., जो सोचते तो पाते है कि ऐसा ही तो है! हम भटक ही तो गए है!

कुँवर जी,

amrendra "amar" ने कहा…

बहुत खूबशूरत भावों की अभिव्यक्ति ,
सुंदर संम्प्रेषण,,बधाई ,,,

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बिलकुल........

आत्मविश्लेषण आवश्यक है....बढते रहने के लिए...
सुन्दर रचना.

अनु

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

बढ़िया आत्मावलोकन....बधाई !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आत्मविश्लेषण करने को प्रेरित करती अच्छी रचना

संध्या शर्मा ने कहा…

सृजन का पथ और नई मंजिल... बहुत सुन्दर भाव...शुभकामनायें

सदा ने कहा…

अनुपम भाव बेहतरीन प्रस्‍तुति

कल 04/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


'' जुलाई का महीना ''

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर आत्मविश्लेषण..यूँ ही बढ़ते जाओ सृजन के पथ पर और नई मंजिलकी ओर...शुभकामनाएं संजय..

अशोक सलूजा ने कहा…

जैसा आपने सोचा ...वैसा ही है ....
सोच बदलने को कहती सोच आपकी ....
शुभकामनाएँ!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

वीर तुम बढे चलो। धीर तुम बढे चलो।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सृजन करोगे मिलेगी जीवन पथ की डोर.
नए राही मिलजायगें,नई मंजिल की ओर

नई मंजिल की ओर,आलस्य त्यागना होगा,
समय की कीमत क्या,तुम्हे पहचानना होगा

मेहनत,ध्येय,और कर्तव्य, से कोई न भागे
मंजिल नई मिलेगी,और बढ़ जाओगे आगे,,,,

MY RECENT POST...:चाय....

Anita ने कहा…

बहुत सुंदर भाव और शब्द ! आपने कर्तव्य का पालन करना और श्रम का आदर करना...यही तो मानव को मानव बनाता है.

Kailash Sharma ने कहा…

कभी आत्म विश्लेषण करना भी ज़रूरी है...बहुत सुन्दर और सार्थक सोच...

Arvind Jangid ने कहा…

सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर. बहुत सुन्दर

केवल राम ने कहा…

आत्मावलोकन को प्रेरित करती रचना ...!

prritiy----sneh ने कहा…

तो क्यों न हम
स्वयं में झांके ,
की हम कितने पानी मैं है |

bahut hi achha likha hai, vicharniy kriti
shubhkamnayen

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा है संजय जी ... अपने पथ कों जितना जल्दी हो पहचानना जरूरी है ... देर होने से पहले उठाना जरूरी है ... लाजवाब ...

रविकर ने कहा…

nice

vandana gupta ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।

आशा बिष्ट ने कहा…

VASTAV MEIN AISA HI HAI...BAHUT SUNDAR

Ramakant Singh ने कहा…

तो क्यों हम पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!
KHUBSURAT KATHAN SAHI ANDAZ.

दीपक बाबा ने कहा…

सुन्दर आत्मविश्लेषण

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

बहुत सही कहा संजय जी !

Bharat Bhushan ने कहा…

आत्म मंथन करती सुंदर कविता.

Bharat Bhushan ने कहा…

शुभकामनाएँ.

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

आत्ममंथन जरुरी है तभी सृजन की ओर
बढ़ सकते है...सुन्दर रचना...
शुभकामनाये...
:-)

Sneha Rahul Choudhary ने कहा…

bahut sundar rachna! badhai sanjay ji!

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ...

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

आत्मविश्लेषण बहुत आवश्यक है!

Anupama Tripathi ने कहा…

bahut sundar bhav aur abhivyakti bhi ..
shubhkamnayen.

amit kumar srivastava ने कहा…

आत्म चिंतन एवं आत्म विश्लेषण की आवश्यकता सदैव होती है |

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

श्रम बिन्दु समय के वेदी पर हैं, जीवन पथ में सुधाधार..

Suresh kumar ने कहा…

तो क्यों हम पहचाने समय की महता को मेहनत की गरिमा को और हमारे कदम बढ उठे सृजन के पथ पर 
नई मंजिल की ओर............... !!!
very nice Sanjay ji ......

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार


प्रवरसेन की नगरी
प्रवरपुर की कथा



♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥

♥ जीवन के रंग संग कुछ तूफ़ां, बेचैन हवाएं ♥


♥शुभकामनाएं♥

ब्लॉ.ललित शर्मा
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मन के - मनके ने कहा…

’कहीं ऐसा तो नहीं है---’ आज के जीवन को सत्य के शीशे में देखने का एक प्रयास.

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सही कहा...कभी-कभी शिथिलता आ जाती है...सृजन की ओर सदा कदम बढ़ाते रहना चाहिए...प्रेरक प्रस्तुति !!

Arvind kumar ने कहा…

sundar chintan...

रचना दीक्षित ने कहा…

तो क्यों हम पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर..

यही प्रगति द्योतक है. नयी सोच नए सुभारम्भ को जन्म देती है.

Deepak Saini ने कहा…

अच्छी कविता है संजय भाई
प्रेरणा दायक
"तो क्यों हम पहचाने "
लगता है "न" छूट गया है
आभार

राहुल ने कहा…

बहुत सुन्दर संजयजी....
हम तहे दिल से आपके आत्म अवलोकन का समर्थन और सम्मान करते हैं.....

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

Akhileshwar Pandey ने कहा…

आपका ब्लॉग देखा, पढ़ा. काफी अच्छा लिखते हैं आप. शुभकामनाये.

virendra sharma ने कहा…

संजय भाई! बढ़िया ,सौदेश्य रचना के लिए बधाई -
आलस्य में , परमाद मै
और भूल बैठे है
अपने ध्येय को अपने कर्तव्य को
तो क्यों हम पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!

( चित्र गूगल से साभार )कृपया शुद्ध करें -'तो क्यों हम पहचाने 'यहाँ ' न छूट गया है और भाई साहब महता को महत्ता कर लें .शुक्रिया ज़नाब का आप हमारे ब्लॉग पे पधारे .

निर्मला कपिला ने कहा…

प्रेरक रचना। बधाई।

Rewa Tibrewal ने कहा…

wah ! sarthak rachna

Rewa Tibrewal ने कहा…

wah ! sarthak rachna

Satish Saxena ने कहा…

सही सोंच ...
शुभकामनायें संजय !

विभूति" ने कहा…

बेजोड़ भावाभियक्ति....

Asha Joglekar ने कहा…

तो क्यों हम न पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!

बहुत प्रेरक ।

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।

रमा शर्मा, जापान ने कहा…

बहुत सुंदर और सशक्त रचना ...सीधे दिल में उतर गई

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

संजय भाई
इस दुर्लभ जीवन के अनमोल क्षणों को गवा रहे है ?
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना और बहुत सुन्दर प्रस्तुति... आभार....देरी के लिए क्षमा करें!

आत्ममुग्धा ने कहा…

sahi kaha sanjayji.....duniya ki chakachaundh humesha pathbhramit karti h....prerit karti rachna....aap mere blog par aaye aur pure dhairya ke saath meri kai rachanaaon ko padha aur utsaah badhane ke liye unpe tippni bhi ki...iske liye m hriday se aapka aabhaar karti hu

Sudheer Maurya 'Sudheer' ने कहा…

BAHUT SUNDAR...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पथ की पहचान जितना जल्दी हो जरूरी है ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सृजन करोगे मिलेगी जीवन पथ की डोर.
नए राही मिलजायगें,नई मंजिल की ओर
नई मंजिल की ओर,आलस्य त्यागना होगा,
समय की कीमत क्या,तुम्हे पहचानना होगा
मेहनत,ध्येय,और कर्तव्य, से कोई न भागे
मंजिल नई मिलेगी,और बढ़ जाओगे आगे,,,,

बहुत दिनों से मेरे पोस्ट पर नही आ रहे
आइये स्वागत है,,,,,


RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर सार्थक आत्म विश्लेशण करती
अनुपम प्रस्तुति.

आभार,संजय जी.

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

bavon ko vyakt karti sunder kavita... sunder prastuti.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

समय और सृजन...
वाह, बहुत सुंदर।

शिवनाथ कुमार ने कहा…

कर्म और कर्तव्य की महता सदैव सर्वोपरि होती है ....
सुंदर व प्रेरक रचना !!

mark rai ने कहा…

समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर.....

बहुत सुंदर और सशक्त रचना...

deepakkibaten ने कहा…

बढ़िया है

वसुन्धरा पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ !

राज चौहान ने कहा…

आत्मविश्लेषण बहुत आवश्यक है!

राज चौहान ने कहा…

...बहुत सुन्दर और सार्थक सोच...!

अरुन अनन्त ने कहा…

संजय भाई बेहतरीन रचना

Aparajita ने कहा…

I just loved these lines....bahut hi umda