कहीं ऐसा तो नहीं की
हम इस दुर्लभ जीवन के
अनमोल क्षणों को
गवा रहे है ?
दुनिया की चकाचौंध में
तो क्यों न हम
स्वयं में झांके ,
की हम कितने पानी मैं है |
कहीं ऐसा तो नहीं की
हम अटक गए है
आलस्य में , परमाद मै
और भूल बैठे है
अपने ध्येय को अपने कर्तव्य को
तो क्यों हम पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!
( चित्र गूगल से साभार )
@ संजय भास्कर
( चित्र गूगल से साभार )
@ संजय भास्कर
68 टिप्पणियां:
सृजन के पथ पर... नयी मंजिल की और...
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ !
कहा सोचते हम अक्सर कि सच में कही ऐसा तो नहीं.., जो सोचते तो पाते है कि ऐसा ही तो है! हम भटक ही तो गए है!
कुँवर जी,
बहुत खूबशूरत भावों की अभिव्यक्ति ,
सुंदर संम्प्रेषण,,बधाई ,,,
बिलकुल........
आत्मविश्लेषण आवश्यक है....बढते रहने के लिए...
सुन्दर रचना.
अनु
बढ़िया आत्मावलोकन....बधाई !
आत्मविश्लेषण करने को प्रेरित करती अच्छी रचना
सृजन का पथ और नई मंजिल... बहुत सुन्दर भाव...शुभकामनायें
अनुपम भाव बेहतरीन प्रस्तुति
कल 04/07/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' जुलाई का महीना ''
बहुत सुन्दर आत्मविश्लेषण..यूँ ही बढ़ते जाओ सृजन के पथ पर और नई मंजिलकी ओर...शुभकामनाएं संजय..
जैसा आपने सोचा ...वैसा ही है ....
सोच बदलने को कहती सोच आपकी ....
शुभकामनाएँ!
वीर तुम बढे चलो। धीर तुम बढे चलो।
सृजन करोगे मिलेगी जीवन पथ की डोर.
नए राही मिलजायगें,नई मंजिल की ओर
नई मंजिल की ओर,आलस्य त्यागना होगा,
समय की कीमत क्या,तुम्हे पहचानना होगा
मेहनत,ध्येय,और कर्तव्य, से कोई न भागे
मंजिल नई मिलेगी,और बढ़ जाओगे आगे,,,,
MY RECENT POST...:चाय....
बहुत सुंदर भाव और शब्द ! आपने कर्तव्य का पालन करना और श्रम का आदर करना...यही तो मानव को मानव बनाता है.
कभी आत्म विश्लेषण करना भी ज़रूरी है...बहुत सुन्दर और सार्थक सोच...
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर. बहुत सुन्दर
आत्मावलोकन को प्रेरित करती रचना ...!
तो क्यों न हम
स्वयं में झांके ,
की हम कितने पानी मैं है |
bahut hi achha likha hai, vicharniy kriti
shubhkamnayen
सच कहा है संजय जी ... अपने पथ कों जितना जल्दी हो पहचानना जरूरी है ... देर होने से पहले उठाना जरूरी है ... लाजवाब ...
nice
वाह बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।
VASTAV MEIN AISA HI HAI...BAHUT SUNDAR
तो क्यों हम पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!
KHUBSURAT KATHAN SAHI ANDAZ.
सुन्दर आत्मविश्लेषण
बहुत सही कहा संजय जी !
आत्म मंथन करती सुंदर कविता.
शुभकामनाएँ.
आत्ममंथन जरुरी है तभी सृजन की ओर
बढ़ सकते है...सुन्दर रचना...
शुभकामनाये...
:-)
bahut sundar rachna! badhai sanjay ji!
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ !
अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ...
आत्मविश्लेषण बहुत आवश्यक है!
bahut sundar bhav aur abhivyakti bhi ..
shubhkamnayen.
आत्म चिंतन एवं आत्म विश्लेषण की आवश्यकता सदैव होती है |
श्रम बिन्दु समय के वेदी पर हैं, जीवन पथ में सुधाधार..
तो क्यों हम पहचाने समय की महता को मेहनत की गरिमा को और हमारे कदम बढ उठे सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!
very nice Sanjay ji ......
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ जीवन के रंग संग कुछ तूफ़ां, बेचैन हवाएं ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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’कहीं ऐसा तो नहीं है---’ आज के जीवन को सत्य के शीशे में देखने का एक प्रयास.
सही कहा...कभी-कभी शिथिलता आ जाती है...सृजन की ओर सदा कदम बढ़ाते रहना चाहिए...प्रेरक प्रस्तुति !!
sundar chintan...
तो क्यों हम पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर..
यही प्रगति द्योतक है. नयी सोच नए सुभारम्भ को जन्म देती है.
अच्छी कविता है संजय भाई
प्रेरणा दायक
"तो क्यों हम पहचाने "
लगता है "न" छूट गया है
आभार
बहुत सुन्दर संजयजी....
हम तहे दिल से आपके आत्म अवलोकन का समर्थन और सम्मान करते हैं.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
आपका ब्लॉग देखा, पढ़ा. काफी अच्छा लिखते हैं आप. शुभकामनाये.
संजय भाई! बढ़िया ,सौदेश्य रचना के लिए बधाई -
आलस्य में , परमाद मै
और भूल बैठे है
अपने ध्येय को अपने कर्तव्य को
तो क्यों हम पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!
( चित्र गूगल से साभार )कृपया शुद्ध करें -'तो क्यों हम पहचाने 'यहाँ ' न छूट गया है और भाई साहब महता को महत्ता कर लें .शुक्रिया ज़नाब का आप हमारे ब्लॉग पे पधारे .
प्रेरक रचना। बधाई।
wah ! sarthak rachna
wah ! sarthak rachna
सही सोंच ...
शुभकामनायें संजय !
बेजोड़ भावाभियक्ति....
तो क्यों हम न पहचाने
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर............... !!!
बहुत प्रेरक ।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।
बहुत सुंदर और सशक्त रचना ...सीधे दिल में उतर गई
संजय भाई
इस दुर्लभ जीवन के अनमोल क्षणों को गवा रहे है ?
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना और बहुत सुन्दर प्रस्तुति... आभार....देरी के लिए क्षमा करें!
sahi kaha sanjayji.....duniya ki chakachaundh humesha pathbhramit karti h....prerit karti rachna....aap mere blog par aaye aur pure dhairya ke saath meri kai rachanaaon ko padha aur utsaah badhane ke liye unpe tippni bhi ki...iske liye m hriday se aapka aabhaar karti hu
BAHUT SUNDAR...
पथ की पहचान जितना जल्दी हो जरूरी है ...
सृजन करोगे मिलेगी जीवन पथ की डोर.
नए राही मिलजायगें,नई मंजिल की ओर
नई मंजिल की ओर,आलस्य त्यागना होगा,
समय की कीमत क्या,तुम्हे पहचानना होगा
मेहनत,ध्येय,और कर्तव्य, से कोई न भागे
मंजिल नई मिलेगी,और बढ़ जाओगे आगे,,,,
बहुत दिनों से मेरे पोस्ट पर नही आ रहे
आइये स्वागत है,,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
बहुत सुन्दर सार्थक आत्म विश्लेशण करती
अनुपम प्रस्तुति.
आभार,संजय जी.
bavon ko vyakt karti sunder kavita... sunder prastuti.
समय और सृजन...
वाह, बहुत सुंदर।
कर्म और कर्तव्य की महता सदैव सर्वोपरि होती है ....
सुंदर व प्रेरक रचना !!
समय की महता को
मेहनत की गरिमा को
और हमारे कदम बढ उठे
सृजन के पथ पर
नई मंजिल की ओर.....
बहुत सुंदर और सशक्त रचना...
बढ़िया है
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ !
आत्मविश्लेषण बहुत आवश्यक है!
...बहुत सुन्दर और सार्थक सोच...!
संजय भाई बेहतरीन रचना
I just loved these lines....bahut hi umda
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