शब्दों की मुस्कुराहट :)
जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर शब्दों से मुस्कुराहट बाँटने की कोशिश :)
15 अप्रैल 2010
क्या पता कब दिल तोड़ दे !!!!!!!
वो अजनबी है जाने कब छोड़ दे ,
हवा का क्या पता कब रुख मोड़ दे ,
हम तो दुसरो का दिल खुश रखते है ,
मगर
दूसरो
का क्या पता कब दिल तोड़ दे |
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें