शब्दों की मुस्कुराहट :)
जिन्दगी के कुछ रंगों को समेटकर शब्दों से मुस्कुराहट बाँटने की कोशिश :)
31 मार्च 2010
इसलिए हम आंसू बहाते रहे
वह नदी नहीं थी आंसू थे मेरे
जिस पर मेरे दोस्त कश्ती
चलाते
रहे
मंजिल मिले उन्हें यही चाहत थी मेरी चाहत
इसलिए हम आंसू बहाते रहे |
....संजय भास्कर ....
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