31 मार्च 2010

इसलिए हम आंसू बहाते रहे


वह नदी नहीं थी आंसू थे मेरे 
जिस पर मेरे दोस्त कश्ती चलाते रहे  
मंजिल मिले उन्हें यही चाहत थी मेरी चाहत 
इसलिए हम आंसू बहाते रहे |

....संजय भास्कर  ....