वह तोड़ती पत्थर !
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर |
वह तोड़ती पत्थर |
कोई न छायादार पेड़ ,वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार ,
श्याम तन, भर बँधा यौवन' ,
नत नयन ,प्रिय कर्म-रत मन
गुरु हथौड़ा हाथ ,
करती बार बार प्रहार ,
सामने तरु मालिका अट्टालिका ,प्राकार |
चढ़ रही थी धूप
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप |
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यो जलती हुई भू
गर्द चिनगी छा गई
प्रायः हुई दोपहर ;
वह तोड़ती पत्थर |
देखते देखा मुझे तो एक बार ,
उस भवन की और देखा छिन्नतार |
देख कर कोई नहीं |
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं |
सजा सहज सितार ,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार ,
एक क्षण के बाद वह कांपी सुघर ,
ढुलक माथे से गिरे सीकर ,
लीन होते कर्म में फिर ज्यो कहा-
.......... " मै तोड़ती पत्थर "
सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' जी के संकलन "अनामिका " से ये कविता आप तक
कुछ दिनों पहले मैं अपने गाँव इलाहाबाद गया था गाँव में ही मझे इस कविता को पढने का मौका मिला
यह कविता उत्तर परदेश में नौवी कक्षा के बच्चो के अध्याय में पढाई जा रही है
निराला जी की कविता मुझे बहुत ही पसंद आई तो सोचा क्यों आप सभी की पुरानी यादें ताजा कर दी जाये इसीलिए मैंने इसे अपने ब्लॉग पर ले आया |
यह कविता बचपन से पढ़ते आये. हमारे भी कोर्स में थी. आज बहुत दिन बाद पढ़ी. बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं----------------------------------------
जवाब देंहटाएंक्या कोई इस कविता में आए
"पत्थर" का अर्थ बता सकता है?
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... प्रसंशनीय प्रस्तुति ... संजय जी एक रचना और ढूंढ कर पढवाओ ...
जवाब देंहटाएं"...ऊंचाई छूने जिनके हाथ नहीं बढते
वे बौने कैसे ऊंचे हो सकते हैं
जिनके जीवन की चादर मैली रही सदा
वे दाग दूसरों के कैसे धो सकते हैं ..."
बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंये कविता तो हमने कोर्स में पढी थी आठवीं में।
जवाब देंहटाएंतभी से पत्थर तोड़ रहे हैं।:)
यह कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कालजयी कविता है।
जवाब देंहटाएंकविता पढवाने के लिए आपको कोटिश बधाई
जवाब देंहटाएंलगता है वर्तमान में कोर्स से हटा दी गयी है।
जवाब देंहटाएंlalit ji vartman me bhi cource me hai..
जवाब देंहटाएंye kavita.......
Sameer ji yaad gaye na bachpan ke din...
जवाब देंहटाएंdhanywaad apna kimti samay blog par dene ke liye
अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंमैं परेशान हूँ--बोलो, बोलो, कौन है वो--टर्निंग पॉइंट--ब्लाग4वार्ता पर आपकी पोस्ट
उपन्यास लेखन और केश कर्तन साथ-साथ-मिलिए एक उपन्यासकार से
बहुत बढिया-आभार
जवाब देंहटाएंमैं परेशान हूँ--बोलो, बोलो, कौन है वो--टर्निंग पॉइंट--ब्लाग4वार्ता पर आपकी पोस्ट
उपन्यास लेखन और केश कर्तन साथ-साथ-मिलिए एक उपन्यासकार से
ललित शर्मा जी
जवाब देंहटाएंब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' जी की पावन स्मृतियों को प्रणाम !
जवाब देंहटाएंसंज़य भाई ,
साधुवाद के पात्र हैं आप जो हम सबकी प्रेरणास्रोत विभूति को स्मरण करने का अवस्र उप्लब्ध कराया …
मंगलकामनाएं …
सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' जी की पावन स्मृतियों को प्रणाम !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकविता पढवाने के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंNirala ji ki zaradast rachaa ko salaam.....
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद पढ़ी यह कविता ...धन्यवाद भास्कर जी !
जवाब देंहटाएंश्रम के सौन्दर्य को उद्घाटित करती यह निराला जी की प्रसिद्ध कविता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लगा निराला जी की कविता पढ़कर! बहुत बहुत धन्यवाद ! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंइस कविता ने मुझे प्रेरित किया था, कविता लिखने को।
जवाब देंहटाएंस्कूल में एक बार मुझे वर्ग में प्रथम आने पर निराला जी के कविताओं का संग्रह मिला था पुरस्कार स्वरुप . उससे पहले यही कविता कोर्स में थी, तबसे निराला जी के लेखन से काफी प्रभावित हूँ. इतने दिनों बाद आपके ब्लॉग में उनकी रचना को पढ़कर सुखद अनुभूति हुई. धन्यवाद्.
जवाब देंहटाएंIs kavita ke baare men main itna hi kah sakta hun ki ise jitni baar padha utna hi aur padhne ke liye man karta hai.
जवाब देंहटाएंSanjay ji.... is kavita ko padhaane ke liye aapka dhanaybaad.
shram ko naman karti sunder kavita. badhai aapko ki chun chunkar moti jo la rahe hain sabke liye......
जवाब देंहटाएंनिराला जी की एक बेहतरीन कृति।
जवाब देंहटाएंNiralaji ki is anupam kruti ko prastut kar...purani yaaden taza kar di aapane.
जवाब देंहटाएंise post karane hetu bahut bahut dhanywad aapko.
mere bhi couse book may thi ....bahut dino baad padi ...bahut aachi lagi...Nirala jee ko Naman.........
जवाब देंहटाएंpurani yaad taaza kar di
जवाब देंहटाएंनिराला जी की एक बेहतरीन कृति....
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पढ़ने के लिए आभार ..!
वाह संजय जी ... मान मो लिए इस रचना ने ... हमारे कोर्स में भी थी यह कविता और तब भी उतना ही आनद देती थी जितना आज ... बहुत बहुत शुक्रिया इस रचना के लिए ...
जवाब देंहटाएंSchool mein padhi Nirala ji ke rachna aaj aapne padhyee bahut achha laga ... purani yaadion kee tahe khulane see lagti hai..
जवाब देंहटाएं..aabhar
ये कविता मैंने बचपन में पढ़ी थी.
जवाब देंहटाएंआपने इस कविता के बहाने हमें हमारे बचपन, पुरानी क्लास, और पुराने साथियों की याद दिला दी हैं.
आमतौर पर कविता हमें (मुझे और मेरे अधिकाँश दोस्तों को) पसंद नहीं थी, लेकिन इस कविता में कुछ ऐसा आकर्षण था जो हमें ये कविता पसंद आई.
बाद की कक्षाओं में जब हमें कविताओं से बोरियत और चिढ़ होती थी, तो मैडम (हिन्दी के सर तो होते ही नहीं थे) हमें निराला जी का नाम लेकर कविता पढने को प्रेरित किया करती थी.
वो अलग बात हैं कि हमें इस कविता जैसा आकर्षण उनकी (निराला जी) अन्य कविताओं में नहीं लगा.
ये कविता उनकी (निराला जी) सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक हैं.
बहुत बढ़िया.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
हाँ हमें भी ये कोर्स में पढ़ी थी आज बहुत दिनों बाद पढ़ कर अच्छा लगा .आभार.
जवाब देंहटाएंkavita ko padhwane ke iye dhanwayad.....
जवाब देंहटाएंकविता पढवाने के लिए आपको बहुत बधाई ....
जवाब देंहटाएंजब आप हमारा ब्लॉग भ्रमण किये थे तो अच्छा लगा और हम आप के ब्लॉग के जरिये आप तक पहुँच गए ...
अच्छा लगा नए ब्लोगर का उत्साह बर्धन करने के लिए सुक्रिया ...!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंये कोर्स में पढ़ी थी..
पढ़ कर अच्छा लगा...
आभार...!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंNirala Ji Zindabaad
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद पढ़ी निराला जी की एक बेहतरीन कृति।...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमेरी प्रिय कविता पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंवापस हाईस्कूल के समय में पहुंचा दिया भाई.. बहुत बहुत आभार..
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.... .
जवाब देंहटाएं* निराला की इस बहुचर्चित / बहुपठित और बहुश्रुत कविता को यहाँ देखना - पढ़ना अच्छा लगा। यह भी अच्छा लगा कि बहुत से लोगों को याद है कि उन्होंने इस कविता को अपने स्कूली पाठ्यक्रम में पढ़ रखा है। नागार्जुन ने कोर्स में पढ़ी - पढ़ाई जाने वाली कविताओं को 'सुहागिन' कहा है।
जवाब देंहटाएं* निराला की यह कविता तनिक पाठ्यान्तर के साथ देखकर कुछ अजीब - सा लगा है। निराला आधुनिक युग के कवि हैं और ऐसा नहीं है पुराने साहित्य की तरह उनकी रचनाओं / कविताओं के एकाधिक पाठ उपलब्ध हैं। हिन्दी ब्लाग की बनती हुई दुनिया प्रकारान्तर से साहित्य का दस्तावेजीकरण कर रही है और आज तथा आने वाले समय के लिए यह एक महत्वपूर्ण काम है। अत: रचना के मूल पाठ पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है नहीं तो गलतियाँ अक्सर दुहराई जाती रहेंगीऔर एक समय वह भी आएगा जब गलत पाठ ही सही पाठ मान लिया जाएगा।
* निराला की कविताओं की प्रतिनिधि पुस्तक 'राग विराग' सहज ही उपलब्ध है तथा कुछ ब्लाग्स पर भी इस रचना का मूल पाठ उपलब्ध है। यहाँ प्रस्तुत पाठ पाठान्तर लिए हुए है जैसे:
- 'पर बंधा योवन' नहीं बल्कि 'भर बँधा
यौवन'
-'हथोड़ा' नहीं 'हथौड़ा'
- 'अत्त्लिका' नहीं 'अट्टालिका'
- 'दृष्टी' नही'दृष्टि'
- 'ष्ण' नहीं 'क्षण'.....
* साहित्य हमारे समाज की सांस्कृतिक धरोहर है।अत: उसके प्रस्तुतीकरण और उसे साझा करते समय सावधानी बहुत जरूरी है। हिन्दी ब्लाग्स पर तो यह और भी जरूरी है क्योंकि हम सब अपने - अपने स्तर पर दस्तावेजीकरण के काम में लगे हुए हैं। मित्रो ! यह टिप्पणी केवल इसलिए कि हम सब लिखने - पढ़ने के काम के प्रति और लिखे गए की तारीफ के लिए जल्दबाजी न करें।
* यह बात मैं इस उम्मीद के साथ कर रहा हूँ कि इस पोस्ट के लेखक और इस पर टिप्पणी करने वाले उत्साही साथी अन्यथा न लेंगे और हिन्दी साहित्य के दस्तावेजीकरण के काम के प्रति ( और) गंभीर व सचेत होंगे।
एक अच्छी कविता सबको याद दिलाने का शुक्रिया !!......मै सिद्धेश्वर जी की बात से पूरी तरह सहमत.......
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना है ...
जवाब देंहटाएंइतनी सशक्त और अनुपम रचना दोबारा पढने को मिल गयी आपके सौजन्य से इसके लिये आभारी हूँ ! निरालाजी तो स्वयम प्रखर सूर्य की तरह दैदीप्यमान थे ! उनकी रचना पर टिप्पणी करने का दुस्साहस मैं कैसे कर सकती हूँ ! रचना पढ़वाने के लिये धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंbahut achchha laga
जवाब देंहटाएंकई बार पढ़ने की बाद भी इस कविता को दुबारा पढने का जी करता है.
जवाब देंहटाएंकल मैं शिवपूजन सहाय जी को पढ़ रहा था उसने उन्होंने लिखा है कि निराला जी के अंतिम दिन काफी अभावों में गुज़रे.आधुनिक साहित्यकार तो बस पैसा कमाने की जुगत और पुरस्कार के पीछे पड़े रहते हैं. धन्य हैं निराला जी और उनका साहित्य. निराला जी का एक उपन्यास 'नई पौध' बहुत अच्छा है, राजकमल ने छापा है.
Hindustaan ke mahaan saahitya ke is mahatvapoorn dastaavez, iss kaaljayi rachnaa ko hm sb tk pahunchaane ke liye aabhaar swikaareiN .
जवाब देंहटाएंमै बहुत लेट आया। लगभग सभी कुछ कहा जा चुका है। ये कविता कविता नहीं एक काव्य काल-खण्ड का दस्तावेज़ है। मेरे हमउम्र सभी ने ये उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के हिन्दी विषय में इसे अवश्य ही पढ़ा है।
जवाब देंहटाएंसूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' जी की पावन स्मृतियों को प्रणाम
जवाब देंहटाएंis moolyawaan rachna ko baantne keliye aapka dhanyawaad.
जवाब देंहटाएं.मै सिद्धेश्वर जी की बात से पूरी तरह सहमत.....
जवाब देंहटाएंमेरी हौसला अफज़ाई के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसंजय कुमार
हरियाणा
sanjay achha laga todti patthar padh kar , tumne fir wo class wo padhai yaad dila di .......sukriya bhai ...
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद पढ़ी निराला जी की एक बेहतरीन कृति।...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी की यह कविता ना केवल स्कूल के पाठ्यक्रम में है बल्कि हिंदी साहित्य के उच्चतर कक्षाओं में भी है और जब भी कक्षा के बाहर आम जीवन के .. आम आदमी के कविता की बात होती है तो यह कविता सबसे पहले कही जाती है.. यह कविता कई अर्थों और सन्दर्भों में कालजयी है क्योंकि करीब करीब इन्ही कविताओं से हिंदी कविता अपने आधुनिक काल में छंद से मुक्त होकर प्रवेश कर रही थी... संजय ने इस कविता को ब्लॉग पर प्रस्तुत कर पुरानी कविताओं के प्रति आसक्ति को फिर से जगा दिया है और मैं अभी अपने निजी पुस्तकालय से निकाल कर "राम की शक्ति पूजा" पढ़ रहा हूँ... संजय आपका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंjahan tak mujhe yaad hai maine ye kavita pehle kabhi nahi padhi,
जवाब देंहटाएंmere course mein humesha se saamanya hindi rahi hai,aur yeh kavita vishish hindi ke paathya kram mein hogi........
khair thodi der se hi sahi par aachaa lagi.........
श्रद्धेय निराला जी की पावन स्मृति ....यह कविता...आभार संजय जी.
जवाब देंहटाएंसुंदर भावाभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंThanx for making me nostalgic about our hindi classes and discussion and my hindi teacher..... keep it up. Sanjay ji....
जवाब देंहटाएंसंजय जी,कविता पढवाने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंलीन होते कर्म में फिर ज्यो कहा-
जवाब देंहटाएं.......... " मै तोड़ती पत्थर "
nirala ji ki rachna hum tak pahunchane ke liye shukriyaan .
संजय जी, छोटी कक्षा में पढ़ी थी यह कविता...उस समय भी जब पढ़ाई की किताबें भयंकर रूप से बोर करती थीं निराला की कविताएँ थीं जिनसे हमें कोई शिकायत नहीं थीं....आज बहुत दिनों के बाद उनकी कोई कविता पढ़ने को मिली...नई-नई संवेदनाओं, भावों को सहज और आकर्षक रूप में कविता के रूप में ढालने में निराला का कोई जवाब नहीं...काश आज के दौर में भी हमें कोई निराला मिल पाता...उनकी कविताओं का मर्म हर बार नया और गहरे चोट करने वाला इसलिए होता था क्योंकि वे जो लिखते थे वही जीते भी थे..
जवाब देंहटाएंनिराला जी की एक बेहतरीन कृति....
जवाब देंहटाएंnirala ji.. kaljayee kritiyon ke behatareen rachanakar...
जवाब देंहटाएंatisundar prastuti..
dhanyawad..
सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' जी की कलम को शत शत नमन। धन्यवाद इस इसे पढवाने के लिये। आशीर्वाद।
जवाब देंहटाएंनिरालाजी की श्रेष्ठ कविता पढवाने का आभार ..!
जवाब देंहटाएंइस प्रकार की कालजयी रचनाएं हज़ार पढ़ी जाएं तो भी कम है. पढ़वाने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंनिराला जी की कालजयी कविता ..... पढ़वाने के लिए आभार ....
जवाब देंहटाएंयह तो निराला जी की प्रसिध्द कविता है इसे फिरसे पढवाने का आभार ।
जवाब देंहटाएंमेरे प्रिय कवि हैं मुझे यह कविता याद भी है...फिर भी घन्यवाद
जवाब देंहटाएंnirala ji ka to mai fan hu..vo hai hi niraale. unki kavita kisi ka bhi man moh sakti hai....
जवाब देंहटाएंThanks sanjay
www.kavyalok.com
बचपन से पढ़ते आये. हमारे भी कोर्स में थी. आज बहुत दिन बाद पढ़ी!
जवाब देंहटाएंआभार!!!
bahut sundar..............padhvane ke liye shukriya..........
जवाब देंहटाएंhamane bhi padha hai isako. kintu phir se padha to isake shabdon aur arthon ne kuchh aur aabhas diya. tab course ki tarah padha tha aur ab vo kavita jo yatharth se judi kahani kah rahi hai.
जवाब देंहटाएंkavita bahut suMdar hai....prerana daayee aur satyataa ka prtinidhitva karati hai!....dhanyawaad!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना प्रेषित की है। स्कूल की फाठय पुस्तक मे पढ़ी थी कभी।
जवाब देंहटाएंNirala jee, ko padhwane ke liye abhar!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंजिस जगह कोई नहीं पहुंच सकता वहां सिर्फ एक कवी पहुँचता है दोस्त कविता पड़ी जो एक गरीबी की कहानी सुना रहा था पड़ कर अच्छा भी लगा और उसकी म्हणत पर गर्व भी !
जवाब देंहटाएंmahakavi nrala ki kaaljayee rachna padhvaane ke liye dhanyavaad...bahut badhiya prastuti.
जवाब देंहटाएंbahut khoob... ye kavita maine apne papa se sunee thi... thank you for providing...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधिजनों ( ब्लागरों ) को मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआशा है आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
संजय भास्कर
Bachpan men padhee yah kawita fir se padhwane ka aabhar.
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya......
जवाब देंहटाएंAre wah... mujhe to class ki saari shararatein bhi yaad aa gayi... thnk u..
जवाब देंहटाएंडॉ. इंद्रनाथ मदान इस कविता बहुत प्रेम से पढ़ाया करते थे. सब याद हो आया.
जवाब देंहटाएंनिराला जी,
जवाब देंहटाएंनमामि त्वम्
Nirala ji ki ek gahari abhivyakti
जवाब देंहटाएंjisme unhone bahut manav man ki sthiti aur vyatha ko vyakt kiya hai.
thanx for sharing it
इस कविता की खूब व्याख्या की है बचपन में .....:))
जवाब देंहटाएंनिराला जी की अनुपम कृति ... मजा आ गया ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंयह कविता बचपन से पढ़ते आये. हमारे भी कोर्स में थी. आज बहुत दिन बाद पढ़ी. बहुत आभार.
जवाब देंहटाएं