22 जुलाई 2010

जैसे मिल गई चवन्नी भीख में भिखारी से

 मुफ्त में मिला था मैं,

इस देश को उधारी में ,

जैसे मिल गई चवन्नी,

भीख में भिखारी से |

37 टिप्‍पणियां:

  1. गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

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  2. आनंद आया पढ़कर...

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  3. jab pehli baar blog par aaya tha ...

    sahi jagah.....aaya hoon..

    behtreen hai lekhni........

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  4. Bheekh me aur wah bhi bhikhari se...waah!

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  5. वाह! क्या बात है!

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  6. मुफ्त में मिली चीजें ...हवा, पानी , धूप , चांदनी कितनी अनमोल हैं ...
    आपका जीवन भी ऐसा अनमोल हो जाये ...!
    वैसे चवन्नी/अठन्नी आजकल चलन से बहार है इसलिए रुपया बनने की कोशिश करें ..!

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  7. मुफ्त में मिला था मैं,

    इस देश को उधारी में ,

    ....आपने तो अपने उपर शाही उडेल ली!

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  8. उधार की खाज़ में ब्याज और पड़ गया.
    आपने बहुत अच्छा लिखा है.
    नज़र नज़र का फेर आपको सलाम करता है.

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  9. थोड़े शब्दों में आपने बड़ी बात कही इसके लिए धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  10. बेहद सटीक बात कही आपने

    रामराम.

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  11. गागर में सागर जैसी अभिव्यक्ति है संजय भाई।
    बहुत बहुत बधाई।
    --------
    ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
    व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।

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  12. सटीक बात कही आपने

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  13. अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.


    FIRST TIME UR BLOG

    NICE BLOG

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  14. वाह .. क्या बात है संजय जी ... बहुत खूब लिखा है ...

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  15. the blog decoration is supereb.posts are also good.

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  16. ---"धन्यवाद"-- पोस्ट पढने के लिए...

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. ---" शुक्रिया "-- अपना समय देने के लिए...


    धन्यवाद
    संजय भास्कर

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- संजय भास्कर