मजबूत नींव के कमजोर रिश्ते |
एक या दो जेनरेशन यानी कि पीढि़यों के बीच के बीच अंतर के फासले को जेनरेशन गैप कहते है। आम भाषा में तो ये सिर्फ उम्र के फासले के रूप में ही नजर आता है। लेकिन ये सिर्फ उम्र का फासला नहीं होता है। ये सोच, पसंद, नापसंद, जिंदगी जीने के अंदाज, रहन-सहन और न जाने कितनी ही चीजों का फासला होता है। यह वह कारण है जिसकी वजह से अभिभावक अपने बच्चों को और बच्चे अपने अभिभावकों को समझ नहीं पाते। |
जिम्मेदार कौन- |
कई बार इन बातों को सोच कर मन में ख्याल आता है कि आखिर इस जेनरेशन गैप का जिम्मेदार कौन है। वो अभिभावक जो सदियों से अपनी सोच के सहारे एक सफल जिंदगी जीते आये है। जो ये नहीं चाहते जिन रास्तों पर चल कर उन्होंने ठोकरे खाई है, वहां पर उनके बच्चे भी चल कर ठोकर खाये और टूटे। या फिर वो युवा जो आज की तेज रफ्तार जिंदगी से कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते है। जो अपने हर रिश्ते को साथ लेकर चलने की चाहत रखते है। जिनके लिए उनके पेरेट्स के साथ-साथ दोस्त, कलिग्स भी मायने रखते है। जो ढलती उम्र में ये नहीं कहना चाहते 'काश, मैंने ये किया होता..' जो अपनी जिंदगी से इस 'काश' शब्द को मिटा देने की चाहत रखते है। |
क्यों नहीं समझ पाते- |
जेनरेशन गैप का एक बहुत बड़ा कारण कम्युनिकेशन गैप है। आजकल के युवा अपने अभिभावकों से ज्यादा अपने दोस्तों को तरजीह देते है। उन्हे खुद के ज्यादा करीब पाते है। पर जब भी कुछ डिसकस करने बैठो खत्म बहस से ही होता है, तो इससे बेहतर तो यही है न कि उनको ज्यादा इंवाल्व ही न किया जाय। जब हम झूठ बोलते है, तो उन्हें सच लगता है और सच बोलते है तो झूठ। कुछ भी कर लो उन्हे अपनी बात समझाना नामुमकिन है। क्या ये जरूरी है कि जो हमारे लिए इम्पोर्टेस रखे वो उनके लिए भी रखे। नहीं न जब हम ये शर्त नहीं रखते तो फिर वो क्यों रखते है। वो हमें समझने की कोशिश ही नहीं करते। अपनी ही बात पर अड़े रहते है। हमारी बात सुनते तो है, पर समझते नहीं।' |
माँ बाप कहते है कि 'हमें पता है कि बच्चों के लिए क्या सही है और क्या गलत क्योंकि हमें जिंदगी का तजुर्बा है। हम नहीं चाहते जो गलती हमने की वे भी वहीं करें और फिर पछताए। लेकिन बच्चे तो बात ही नहीं सुनते।' ये दोनों ही पीढ़ी अपनी-अपनी जगह सही है। दोनों की अपनी सोच है जो आपस में कहीं भी मेल नहीं खाते है। क्योंकि अभिभावक अपनी परंपराओं का दामन नहीं छोड़ पा रहे | |
बच्चो के जवाब पर उनकी मम्मी दंग रह जाती । कब कहां, कैसे ओवर कान्फिडेस होना रूडनेस बन गया। 'बहुत सोचने पर लगा शायद हम ने ही उसे इतने दूर चले जाने की इजाजत दी थी। हर जगह बच्चों की च्वाइस को तवज्जाों दो तो वे आपको ही एक दिन गलत ठहरा देता है।' |
वास्तव में, दिल कचोट उठता है माता-पिता का जब उन्हे अपने बच्चों से ऐसा व्यवहार मिलता है। बचपन से जब बच्चों को अपनी पसंद की चीजें चुनने की आजादी दे दी जाती है, ऐसे में यह कोई आश्चर्य नहीं कि बड़े होने पर वही बच्चे पेरेंट्स की च्वाइस को ही रिजेक्ट कर दें। |
हर घर में बच्चों का अलग कमरा होता है। जहां उनकी जरूरत की सारी चीजें सुविधा के लिए रख दी जाती है। पढ़ना हो या-सोना उन्हे कमरे से बाहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। यहां तक की फुर्सत मिली तो इंटरनेट या दोस्तों से हो रही मोबाइल फोन पर बातचीत कमरे के बाहर कदम नहीं रखते। ऐसे में धीरे-धीरे वहीं कमरा उनकी छोटी-सी दुनिया बन जाता है। 'प्राइवेसी' अहम हो जाती है। जिसे लांघने की इजाजत किसी को नहीं। |
बच्चों के पास यदि समय होता है तो वे टीवी देखते है। टीवी, नेट, मोबाइल, पढ़ाई के बीच बसी इनकी अपनी दुनिया सबसे अहम है। यहां पेरेंट्स को यह सोचने की जरूरत है कि क्या जो आजादी आज वे अपने बच्चों को दे रहे है कल क्या उसकी कीमत चुकाने को वे तैयार हैं? आज के बच्चे मानसिक व भावनात्मक रूप से पिछली जेनरेशन से अधिक मजबूत है। ऐसे में यह कहना तो ठीक नहीं कि उन्हे दी गयी आजादी कल को महंगी पड़ेगी। मगर हमें बच्चों के साथ स्ट्रिक्ट नहीं बल्कि फ्रेंडली होने की जरूरत है। वरना ये कोल्ड वार जेनरेशन गैप के सिवा कहीं और नहीं ले कर जाएगी। इसीलिए यह जरूरी है कि बच्चों के साथ समय गुजारा जाये। साथ समय बिताने से आप न केवल उनकी छोटी-बड़ी प्राब्लम साल्व कर सकते है बल्कि उन्हे सही-गलत के बारे में भी बता सकते है। आप उनकी अपनी बसायी अलग दुनिया में पेरेण्टस के साथ दोस्त की भूमिका भी अदा कर पाएंगे। |
ऐसा कैसे हो सकता है कि इस समस्या का समाधान न हो। आज के इस जेनेरेशन गैप और कम्युनिकेशन गैप के बीच भी कुछ पेरेंटस और बच्चे ऐसे हैं जिन्हें ये शब्द छू भी नहीं पाते है। जो इन सबसे परे है। लेकिन इन पेरेंट्स का ये मानना है कि अगर आप इस गैप को भरना चाहते हैं तो पहल तो बड़ों को ही करनी होगी। |
sahi kaha aapne generation Gap ke liye Communication kayam na rakhna bahut badi samasya hai
जवाब देंहटाएंBahut bhadiya aalekha ..ek dum sarthak bat kahi hai aapane!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लेख । शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंगुलमोहर का फूल
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसही कहा , पहल तो बड़ों को ही करनी चाहिए , हमारा एक कदम आगे आना ही काफी है ... मगर बढ़ाएं तो सही
जवाब देंहटाएंसही
जवाब देंहटाएंbahut achchhi baaten hain..
जवाब देंहटाएंaaha bahut hi rochak prastuti
जवाब देंहटाएंaur aapke visit ke dhanywaad sanjay ji :)
...प्रभावशाली लेख!!!
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक और सटीक आलेख.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Ek dam sahee
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha aapne gen gap aaj 1 prob ban gaya hai..parents ko jarurat hai bacho ko waqt de or unki feelings ko samjhne ki koshish kare..
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली लेख है बधाई
जवाब देंहटाएंbahut uchit vishay ...... aur bahut badhiyaa
जवाब देंहटाएं..प्रभावशाली लेख!!!
जवाब देंहटाएंBEHTREEN LEKH HAI BHAI
जवाब देंहटाएंbahut hi khoobsurat va prabhavshali aalekh.
जवाब देंहटाएंविचारणीय बहुत बढ़िया आलेख प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंअच्छा चिंतन किया है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..चिंतनपरक लेख..
जवाब देंहटाएं__________________
"शब्द-शिखर" पर - हिन्दी की तलाश जारी है
बिलकुल सही बात का ज़िक्र किया है आपने! बढ़िया आलेख!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..चिंतनपरक लेख..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार गर्भित लेख ,
जवाब देंहटाएंअपनी गलतियाँ सुधारने का बहुत ही सुंदर और उपयोगी सुझाव ! धन्यवाद
bahut hi vichaarniye lekh likhaa hain aapne.
जवाब देंहटाएंaabhaar.
thanks.
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बहुत प्रभावशाली लेख है बधाई
जवाब देंहटाएंमेरी सारी दौलत , खोखले आदर्श,
जवाब देंहटाएंनकली मुस्कराहट
सब छीनकर,
दो पल के लिए ही सही
मेरा बचपन लौटा देती है माँ...
सार्थक और सटीक आलेख.
जवाब देंहटाएंसुन्दर..!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक और विचारणीय...
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