आज की चर्चा मे आदरणीय दिगंबर नासवा जी के कविता-संग्रह "कोशिश माँ को समेटने की"
दिगंबर जी चाहते थे जब भी उनकी पहली किताब का प्रकाशन हो माँ को समर्पित हो क्योंकि लिखने की प्रेरणा उन्ही से मिली....इसमे नासवा जी लिखते है इसे किताब कहूँ, डायरी या कुछ और जो भी नाम दूँ इसे पर ये गुफ्तगू है मेरी मेरे अपने साथ आप कहेंगे अपने साथ क्यों... माँ से क्यों नहीं? मैं कहूँगा माँ मुझसे अलग कहाँ लम्बा समय माँ के साथ रहा लम्बा समय नहीं भी रहा पर उनसे दूर तो कभी भी नहीं रहा... ये एक ऐसा अनुभव जिसको सोते जागते, हर पल मैंने महसूस किया है... मैं मानता हूँ हर किसी के जीवन में माँ के महत्त्व से ज्यादा कुछ नहीं माँ ही है जो जीवन का आधार, प्रेरणा और धुरी होती हैं। लम्बे समय तक बच्चे के मन में माँ से ज्यादा सुन्दर, सौम्य, साहसी कोई नहीं होता वो ईश्वर का ऐसा रूप होती हैं जिनके साये से रहमत बरसती है। ये शब्द हर संवेदनशील हृदय के दिल की भावनाएँ हैं और हर किसी के दिल से निकले हुए शब्द हैं जिनको मैं बस का$गज़ पर उतारने का यत्न कर रहा हूँ, कैनवस पर एक ऐसा चित्र बनाने की कोशिश है जो हर किसी के दिल में रहता है और जहाँ सिर्फ और सिर्फ माँ की छवि है अनेक रचनाएँ इस कड़ी में जुड़ती रहती हैं
माँ के लिए समर्पित किताब हैं उसमे लिखी हर एक कविता मन को छू जाती किताब को पढ़ते हुए कभी मन में एक डायरी पढ़ने जैसा सुखद अहसास जगता हैं बहुत मार्मिक जीवंत चित्र उकेरती रचनाएँ माँ तो परिवार की आत्मा होती है ,और माँ के बारे में जितना लिखे उतना ही कम है,
दिगंबर जी का स्वपन मेरे ब्लॉग काफी चर्चित ब्लॉग है संग्रह की सभी रचनाएँ माँ के लिए है संग्रह की एक रचना आपके साथ साझा कर रहा हूँ.......!!
उस दीवार पे
तेरी तस्वीर नहीं लगा पाया
चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं मेरे साथ
फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के
सूनी सपाट दीवार पे
शायद दिमाग भी साथ दे रहा था
पर मन ...
वो तो उतारू था विद्रोह पे
ओर मैं ....
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
जीवंत चित्र उकेरती रचनाएँ माँ के बारे में जितना लिखे उतना ही कम है,
पुस्तक का नाम - कोशिश माँ को समेटने की
लेखक – दिगम्बर नासवा
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन
सी-46 सुदर्शनपुरा एरिया एक्सटेंशन नाला रोड 22 जयपुर 302006
- कोशिश माँ को समेटने की
- संजय भास्कर