यहाँ हर किसी कि अपनी मंजिल अपने रस्ते
कोई कुछ नहीं करता किसी के वास्ते ,
हर कोई रहता अपने ऐशो आराम में ,
उन्हें कुछ नहीं दिखता फायदा दया के काम में ,
मैं दुसरो का भला करे कि सोचता रहूँ ,
पर मेरे पास दान के लिए कुछ भी नहीं
मैं किसी को क्या कहूं ,
मानव के दुखों को देखकर रोता हूँ ,
अकेले बैठ उन्हें , उनके दुखों से छुटकारा दिलाने कि सोचता हूँ ,
पर यु खाली सोचने से कुछ बनता नहीं ,
गरीबो के दुखों को दूर करने के लिए धन चाहिए ,
पढता हूँ इसी मकसद से कि कुछ बन सकूं ,
ताकि दीन दुखियो के लिए कुछ कर सकूं ,
मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||
चित्र :- ( गूगल देवता से साभार )
..............संजय कुमार भास्कर