क्या खता मेरी थी जालिम
तुने क्यों तोडा मुझे ?
क्यों न मेरी उम्र तक ही
साख पर छोड़ा मुझे ?
खून मेरा अपने सर लेकर
तुझे क्या मिल गया ?
पेड़ के तख्ते जिगर लेकर
तुझे क्या मिल गया ?
जिसकी रौनक था मैं ,
बे रौनक वो डाली हो गई |
जैसे बिन बच्चे के माँ की गोद खाली हो गई |
साख क्या कहे और किससे ?
बस तू रहम करना ठान ले |
दिल का तोडना अच्छा नहीं |
अरे नादान - ये बात तू जान ले |
.........संजय भास्कर