12 जून 2010

गरीबी के कारण छोड़ देते हैं 21 फीसदी बच्चे पढ़ाई


 देश के 21 प्रतिशत बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ देने की मुख्य वजह अब भी उनकी गरीबी है।
तमाम दावों और वादों के प्रचार-प्रसार से देश में पढ़ाई-लिखाई की तस्वीर भले ही गुलाबी लगने लगी हो, लेकिन जमीनी हकीकत अब भी ज्यादा नहीं बदली है। आलम यह है कि सरकार चाहकर भी सभी बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा करने में नाकाम रही है। तमाम तरक्की के दावों के बीच देश के 21 प्रतिशत बच्चों के बीच में पढ़ाई छोड़ देने की मुख्य वजह अब भी उनकी गरीबी है।
देश में पढ़ाई की इस बदरंग तस्वीर का खुलासा राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन की ओर से कराए गए सर्वे की बुधवार को यहां जारी रिपोर्ट से हुआ है। भारत में शिक्षा, भागीदारी एवं खर्च पर केंद्रित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय [एनएसएसओ] की रिपोर्ट बताती है कि 20 प्रतिशत बच्चों में पढ़ाई को लेकर कोई रुचि ही नहीं है। नौ प्रतिशत बच्चों के खुद माता-पिता को ही नहीं लगता कि पढ़ाई में कुछ रखा है। इसी क्रम में दस प्रतिशत महज इसलिए छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें उनके मन मुताबिक पढ़ने का मौका नहीं मिलता। जबकि दस प्रतिशत ऐसे भी हैं जो पढ़ाई के बोझ या फेल होने के डर के कारण बीच में स्कूल जाना छोड़ देते हैं।
इससे एक सच्चाई यह भी उभरी कि जिसमें 22 प्रतिशत अभिभावकों ने शिक्षा को जरूरी न मानते हुए अपने बच्चों को स्कूलों में दाखिला ही नहीं दिलाया। बच्चों को दाखिले से ही दूर रखने वाले 21 प्रतिशत अभिभावकों ने तो आर्थिक तंगी को मजबूरी बताई, जबकि 33 प्रतिशत मां-बाप की बच्चों को पढ़ाने में खुद की ही रुचि नहीं थी।
 मसलन तकनीकी शिक्षा में ग्रामीण क्षेत्र के एक छात्र का सालाना औसत निजी खर्च जहां 27,177 रुपये है, वहीं नगरीय क्षेत्र के एक छात्र का सालाना औसत निजी खर्च 34822 रुपये है। इसी तरह व्यावसायिक शिक्षा में यह निजी खर्च ग्रामीण छात्र पर जहां 13699 रुपये तक सीमित है, वहीं नगरीय क्षेत्र का छात्र अपने ऊपर सालाना औसतन 17016 रुपए खर्च करता है।
सर्वे बताता है कि कक्षा एक से आठ तक की कक्षाओं में राष्ट्रीय स्तर पर सकल उपस्थिति 80 प्रतिशत है।