पैर छू कर प्रणाम करना एक अदब एक इज्जत होती थी। जिसे संस्कार के रूप में भी आंका जाता था पर अब ये नमस्ते, हाय हेलो तक सीमित होकर रह गई है। .
ऐसा नहीं है कि वह उनको प्यार नहीं करता या फिर उनका सम्मान नहीं करता। बस उसे पाव छूना अटपटा सा लगता है, उसे यह पसंद नहीं। वो नमस्ते से ही अपना काम चला लेता है। आज के इस दौर में जहा सब कुछ बदल रहा है। वहा युवाओं की सोच भी बदल रही है। वे बड़ों को सम्मान देते हैं, उनका आदर भी करते हैं। लेकिन वे पुरानी सभ्यताओं के नाम पर कुछ भी करने को तैयार नहीं हैं।
भारतीय सभ्यता की निशानी बड़ों के पांव छूकर आर्शीवाद लेना एक बहुत ही पुरानी भारतीय परंपरा है। यहा पर पैर छूना सामने वाले को सम्मान देने की दृष्टि से देखा जाता है। जब भी हम किसी बड़े से मिलते हैं जिसका हम सम्मान करते हैं, तो उसका पैर छूकर उसका आर्शीवाद लेते हैं। भारतीय परंपराएं और तहजीब तो दुनिया भर में मशहूर हैं। और आर्शीवाद लेने की यह प्रक्रिया भी इसी का ही एक हिस्सा है। लेकिन आज के दौर में इसमें जरा सा बदलाव आ गया है। इनके मायने तो नहीं बदले हैं लेकिन इसे व्यक्त करने का तरीका जरूर बदल गया है।
अपना अलग है अंदाज-आज की पीढ़ी के लिए वह उनके सबसे करीब है जिसके सामने वे खुलकर खुद को व्यक्त कर सकें और न कि वह जिसके सामने वे नार्मल भी बिहेव न कर पाएं। सम्मान करने के लिए अपनापन चाहिए न कि सिर्फ ऊपरी दिखावा। ऐसे में यह जेनरेशन रिश्तों को एक नया रूप देने में लगी है जिससे वक्त की इस तेज दौड़ में जाने-अंजाने भी उसके अपनों का साथ न छूटे। जो चीज आज की जेनरेशन को नहीं भाती वे उसे करना तो दूर उसके बारे में सोचते भी नहीं हैं।
अभिषेक का सोचना भी कुछ ऐसा ही है। वह कहता है कि मुझे पैर छूना अच्छा नहीं लगता। मैंने कभी भी किसी भी अपने बड़े से व्यक्ति से बूरी तरह बात नहीं की। क्योंकि मैं उनका सम्मान करता हूं। लेकिन पैर छूना, नहीं। वह नहीं। हर किसी की अपनी सोच होती है। और मेरी नजर में सम्मान देना ज्यादा जरूरी है और वह कैसे दिया जा रहा है वह नहीं। हैं इसके भी फायदे कई लोगों का मानना है कि पैर छूने से सामने वाले की सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह आपके अंदर होता है। इसके साइंटिफिक मायने से भी बहुत फायदे हैं। आज यह परंपरा शहरों में अपने मायने जरूर खोती जा रही है। लेकिन गांवों में आज भी यह जीवित है। समय के साथ इस जेनरेशन ने हर बात में अपनी दखलंदाजी जरूर शुरू कर दी है लेकिन आज भी यह अपनी जड़ों से जुड़ी है। अपनों के लिए इसके दिल में आज भी वहीं सम्मान है बस जरूरत है उसे गलत न समझकर उसकी बातों को और उसके विचारों को समझने की कोशिश करने की।