कब से उड़ रही है
थकती नहीं
शाम ढले भी चहचहाती है
घोंसले को बनाती है ,सजाती है
खुद को सवारने से पहिले
शाम ढले भी चहचहाती है
घोंसले को बनाती है ,सजाती है
खुद को सवारने से पहिले
बच्चो को खिलाती है ,उड़ना सिखाती है
फिर अपने साजन का करती है इंतिज़ार
करके श्रींगार ,घोंसले को रखती है
फिर अपने साजन का करती है इंतिज़ार
करके श्रींगार ,घोंसले को रखती है
ज्यों हो मंदिर प्यार का
जिसमे आते ही साजन
बजती है प्यार की घंटियाँ
जिसकी मधुर आवाजें
दिलों की धडकने बन
संसार में फैलाती है प्यार ,प्यार ,प्यार
तुम हो वो चिड़िया ..........
जिसमे आते ही साजन
बजती है प्यार की घंटियाँ
जिसकी मधुर आवाजें
दिलों की धडकने बन
संसार में फैलाती है प्यार ,प्यार ,प्यार
तुम हो वो चिड़िया ..........
राकेश मुथा जी आपने बहुत ही खूबसूरत लिखा .....
मुझे इतना पसंद आया की मैं अपने ब्लॉग पर भी पोस्ट कर दिया ...
http://seepkasapna-rakesh.blogspot.com |
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