30 अक्तूबर 2010

..........क्या चीज है यह जिंदगी ?

 जिस राह से भी गुजरे 
एक नाम सुना जिंदगी |
हमने भी चाहा कोई हमको बता दे 
क्या चीज है यह जिंदगी |
थके हुए राही ने कहा 
रुकना ही है जिंदगी 
अपाहिज ने कहा 
चलना ही है जिंदगी |
गरीबी में तड़पते हुए ने कहा 
पैसा ही है जिंदगी  |
खुशियों में डूबे किसी ने कहा 
प्यार ही प्यार है जिंदगी  |
मगर कोई हमसे भी तो पूछे 
क्या चीज है जिंदगी 
........पर मैं समझता हूँ 
ठोकर खाकर संभल जाने का नाम ही  है 
..................शायद जिंदगी | 
चित्र :- ( गूगल देवता से साभार  )

...............संजय कुमार भास्कर

25 अक्तूबर 2010

.............मेरी प्यारी बहना ?


 मेरी प्यारी बहना 
आज मन कर रहा है कि मैं दू तुम्हे कुछ न कुछ 
पर क्या दू है ही क्या पास मेरे 
हूँ तो एक छोटा सा कवि
कविता ही है मेरे पास 
दुआए ही दे सकता हूँ खुदा कि इच्छा से 
जो रक्खे सदा तुम्हे खुश 
तुम्हारे नए जीवन में ,
मेरी दुआ है तू भारती भारतीयता का सदा पालन करें | 
तू जिस आँगन में जाये वहाँ सदा रौशनी फैलाये 
धर्म करम मान मर्यादा से घर को सजाये ,
तेरे आँगन  में सदा गुलाब खुशियों के  महके 
तू सबको अपनाये प्यार सभी बड़े बुजुर्गो का पाए |
येही दुआ है तेरे लिए  मेरी तरफ से 
निवेदन है तेरे चरणों में 
बहना तू सदा मुस्कुराती रहे 
खुदा से गुजारिश है 
तेरे हिस्से के सारे गम मुझे मिले 
हो मेरे हिस्से कि सारी खुशिया तेरी ,
तेरे हाथो में है अब लाज तेरे माता पिता भाइयो की |
बहना अपने नए घर जा कर हमे कभी न भुलाना ,
तेरे भाई की दुआ है तेरे लिए तेरी हर खुशी के लिए 
अपनी जान भी न्योछावर कर देंगे |
............एक भाई का वादा है अपनी बहन से !
चित्र :- ( गूगल से साभार  )

..........संजय कुमार भास्कर 


20 अक्तूबर 2010

ऐसी खुशी नहीं चाहता .............!!!!!

ऐसी खुशी नहीं चाहता
जो किसी का दिल दुखाने से मिले,
हंसी ऐसी नहीं चाहता जो किसी को रुलाने से मिले
उस दौलत का क्या करे जो अपनों से दूर है |
जो पैदा करती दिल में गुरूर है
सर ढकने को छत हो
खाने को रोटी हो भूंखे पेट कोई सोये ना ,
नहीं चाहिए वो राम जो इंसानों में फर्क करे
आपस में बैर व धरती को नरक करे
कब आएगा वो दिन
जब उंच नीच ख़तम होगा
मानव सभी की जात होगी मानवता ही धरम होगा
तभी मिलेगी ख़ुशी जब मन को
जब सारी दुनिया समान होगी .........

.......संजय कुमार भास्कर

17 अक्तूबर 2010

अजब--गजब...........वह व्यक्ति कौन था ?

एक व्यक्ति  था जो............

31   वर्ष की आयु में व्यवसाय में हरा |
32   वर्ष की आयु में विधान सभा में हरा |
34  वर्ष की आयु में दोबारा व्यवसाय में हरा |
35   वर्ष की आयु में प्रेमिका से छला गया  |
36  वर्ष की आयु में तंत्रिकातंत्र में कमजोरी पैदा होने के कारण परेशान रहा | 
38   वर्ष की आयु में दोबारा चुनाव में हरा |
43  वर्ष की आयु में उम्र में कांग्रेस के चुनाव  में पराजित हुआ |
46   वर्ष की आयु में दोबारा कांग्रेस के चुनाव  में पराजित हुआ |
49   वर्ष की आयु में तीसरी बार पराजित हुआ |
56   वर्ष की आयु में दोबारा उप - राष्ट्रपति के चुनाव में हरा |


वह व्यक्ति कौन था______________








13 अक्तूबर 2010

.................क्या यही है मेरे देश का हाल ?

 क्या यही है मेरे देश का हाल |
धार्मिक कट्टरवाद अपना कर ,  नौजवानों  को मरवा दो 
भाई को भाई से लड़वाकर खून की नदियाँ बहा दो |
कुछ को मंदिर के नाम, कुछ को मस्जिद के नाम पर
अलग थलग कर दो |
लगता हा नेताओ ने बेरोजगारी दूर करने का 
यही उपाय सुझा है |
वे जनता से चाहते करवानी पूजा है 
लगता है वे बेरोजगारी जरूर हटायेंगे |
नौजवानों की शक्ति को भड़काकर महाभारत फिर दोहरायेंगे |
( चित्र - गूगल से साभार )

..........संजय कुमार भास्कर

10 अक्तूबर 2010

.................अपना घर

 जवान बेटी को बाप ने कहा 
जाना होगा अब तुम्हे अपने घर ,
बी. ए  की करनी वही पढाई 
ढूंढ़ लिया तेरे लायक वर ,
अब तक तुम हमारी थी 
पर अब यहाँ से जाना होगा 
जुदा होकर हमसे 
नया घर बसाना होगा ,
बेटी ने बहु बनकर बी. वाली बात दोहरायी
सुनकर उसकी बातें सास गुर्राई 
अगर आगे ही पढना था 
तो पढ़ती ' अपने घर '
बहु है हमारी अब सेवा कर ,
बेटी ने सोचा और समझा 
कौन सा है मेरा घर 
या फिर बेटिया दुनिया में 
होती है ........बे घर  | 

........संजय


06 अक्तूबर 2010

................कुछ फ़र्ज़ भी निभाना है


कुछ काम भी करना है कुछ फ़र्ज़ भी निभाना है ,
खुद को मिटा कर भी ये देश बचाना है |
 जो दुश्मन सीमा पर है उसे मिटा देंगे 
गद्दार जो अन्दर है उनको भी मिटाना है |
कोई धर्म या मजहब हो सब भाई भाई हैं
रूठे हुए भाइयो को सीने से लगाना है |
ये देश सलामत है तो हम भी सलामत है ,
हर देश के वासी को यह याद दिलाना है |
भूंखा न रहे कोई न कोई नंगा हो
ये काम मुश्किल
है  पर करके दिखाना है |
खेतो में हमारे भी सोने के खजाने है ,
इक फसल
मोहब्बत की दिल में भी उगाना है |
ये गर्व हो हर इक को भारत का मै वासी हूँ
इस शान से जीने का अंदाज सिखाना है |



...........संजय भास्कर


03 अक्तूबर 2010

दहेज़ की दूकान पर .............हास्य व्यंग

 सेल  ! सेल ! सेल !
आज रविवार है ,
सजा हुआ एक अद्भुत बाज़ार है |
हर तरह का माल तैयार है '
कोई चपरासी ,कोई थानेदार तो कोई तहसीलदार है |
भाव पदानुसार है ,
किसी की कीमत लाख तो किसी की हजार है |
चोंकिये  मत यह  ' दुल्हों ' का बाजार है |
 

.......संजय