28 सितंबर 2010

फूल की फरियाद..........!!


 क्या खता मेरी थी जालिम 
तुने क्यों तोडा मुझे ?
क्यों न मेरी उम्र तक ही
साख पर छोड़ा मुझे ?
खून मेरा अपने सर लेकर 
तुझे  क्या मिल गया ?
पेड़  के तख्ते जिगर लेकर 
तुझे  क्या मिल गया ?
जिसकी रौनक  था मैं , 
बे रौनक वो डाली हो गई |
जैसे बिन बच्चे के माँ की गोद खाली हो गई  |
साख क्या कहे और किससे ?
बस तू रहम करना ठान ले |
दिल का तोडना अच्छा नहीं |
अरे नादान - ये बात तू जान ले |

.........संजय भास्कर

26 सितंबर 2010

आसमान के सितारों को मैंने रोते देखा .........!!!!!


आसमान के सितारों को मैंने रोते देखा ,
उदासी का गम ढ़ोते देखा
देखा सब को तड़पते हुए,
सारी रात मैंने पूरे आसमा को तड़पते देखा,
रात की रौशनी को देखा ,
तारो की चमक को देखा
सुबह होते ही इनकी रौशनी को खोते देखा |
थके से आसमा को देखा ,
अन्दर से रोते
अन्दर से चमक दमक खोते देखा
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर
बस सबको रात भर
हमने बेफिक्र सोते हुए देखा |

........संजय कुमार भास्कर 

31 टिप्पणियाँ:


कविता रावत ने कहा…
आसमान के सितारों को मैंने रोते देखा , उदासी का गम ढ़ोते देखा देखा सब तो तड़पते हुए, सारी रात मैंने पूरे आसमा को तड़पते देखा ....man ke gahan udasi ka sundar nayanabhiram chitran

Dr.Ajeet ने कहा…
सभी यूं ही सोते है बेफिक्री में... उम्दा रचना डा.अजीत

Bhushan ने कहा…
कविता में एक बनावट उभर रही है. उसे संरक्षण दें.

विरेन्द्र सिंह चौहान ने कहा…
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | संजय जी.....बड़ी उम्दा पंक्तियाँ हैं वास्तविक जीवन में भी ऐसा होता है. आभार ....

सुधीर ने कहा…
सुंदर कविता पर तारों के बारे में मेरी राय तो कुछ यह है... मन रोया तो तारे रोये सब तो चादर तान कर सोये खुश होकर जब इन्हें निहारो ये भी तुम्हारे साथ हंसेंगे अंधियारे में रह सकते रोशन आओ समझाएं यही कहेंगे

संजय भास्कर ने कहा…
Dhanyawaad @ Kavita ji @ Dr.Ajeet ji @ Bhshan ji @ Virender Chohan ji धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए

रचना दीक्षित ने कहा…
अच्छी प्रस्तुति, आभार

सतीश सक्सेना ने कहा…
अच्छा प्रयास है हार्दिक शुभकामनायें !

karan ने कहा…
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | .............बहुत खूब, लाजबाब !

karan ने कहा…
वास्तविक जीवन में भी ऐसा होता है...

संजय भास्कर ने कहा…
धन्यवाद @ सुधीर जी.. @ रचना दीक्षित जी.. @ सतीश सक्सेना जी.. @ Karan ji सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए आभार अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें....”

मनोज कुमार ने कहा…
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं! काव्यशास्त्र (भाग-3)-काव्य-लक्षण (काव्य की परिभाषा), आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

Vandana ! ! ! ने कहा…
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा बहुत सच्ची बात कह दी आपने कविता के माध्यम से.

आमीन ने कहा…
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | ---------------------------- वाह मेरे भाई। आपने तो कहर ढाह दिया। वाकई लाजवाब है, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं।

ALOK KHARE ने कहा…
sundar sirjan badhai

आमीन ने कहा…
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | ---------------------------- वाह मेरे भाई। आपने तो कहर ढाह दिया। वाकई लाजवाब है, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं।

Akhtar Khan Akela ने कहा…
संजय भाई आसमान के सितारों के रोने का दर्द आपने इस बेदर्द दुनिया के सामने जिस अंदाज़ में पेश किया हे वाकई मजा भी आया और इस दर्द का एहसास भी हो गया. बहुत खूब बधाई हो. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

संजय भास्कर ने कहा…
धन्यवाद @ मनोज जी.. @ Vandana ji ! @ आमीन जी.. @ ALOK KHARE JI @ अख्तर खान अकेला जी.. .........ब्लॉग में आने और सराहने के लिए आभार!

डॉ टी एस दराल ने कहा…
बढ़िया है ।

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…
वाह..बढ़िया प्रस्तुति जी

जेन्नी शबनम ने कहा…
bahut sundar rachna, shubhkaamnaayen.

parveen ने कहा…
सार्थक और बेहद खूबसूरत, रचना है....शुभकामनाएं।

arun c roy ने कहा…
बहुत सुंदर कविता.. बधाई

मेरे भाव ने कहा…
बहुत बहुत बधाई अच्छी कविता के लिए..

तिलक राज कपूर ने कहा…
अरे भाई रात चैन से सोने के लिये होती है, ये देखा दाखी में वक्‍त खराब मत किया करो। अब आप अगली कविता में यह न कहना कि रात का दर्द मैं चुपचाप सुना करता हूँ है न आईडिया सर जी।

M VERMA ने कहा…
कोई नहीं जताता हमदर्दी तारो पर बस सबको रात भर हमने बेफिक्र सोते हुए देखा | चलो कुछ लोग तो बेफिक्र सो रहे हैं वर्ना आज के समय में तो नींद भी नहीं आती ... सुन्दर रचना रचा है आपने

Udan Tashtari ने कहा…
दूसरों की तकलीफ नजर अंदाज कर बेफिक्र सोना तो आज इन्सान की फितरत बन गई है... देखा सब तो तड़पते हुए ///शायद तो की जगह को/// -बाकी बढ़िया/

संजय भास्कर ने कहा…
धन्यवाद @ डॉ टी एस दराल जी.. @ विनोद कुमार पांडेय जी.. @ जेन्नी शबनम जी.. @ Arun C Roy Ji @ मेरे भाव जी.. @ तिलक राज कपूर जी.. @ M VERMA JI @ Udan Tashtari Ji आप सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें. .......ब्लॉग में आने और सराहने के लिए आभार!

संजय भास्कर ने कहा…
Udan Tashtari Ji Apka Bahut Bhaut Abhaar Meri galti Se Avgat Karane ke liye Sanjay Bhaskar

ZEAL ने कहा…
. संजय जी, कवी-ह्रदय को समझ पाना मेरे बस की बात नहीं। एक दो बार प्रयास किया लेकिन हार गयी। इसलिए अभी भी नहीं जानती की कवि , इस कविता के माध्यम से क्या कहना चाहता है । अपनी तो स्पष्ट एवं सरल शब्दों में कहने की आदत है। इसलिए तारों को देखकर जो ख़याल मेरे मन में आता है वो कुछ इस प्रकार है-- तारों की छाँव में , चन्द्रमा की शीतल किरणों के मध्य इंदलोक में अप्सराएं नृत्य करती होंगी, मधुर संगीत गुन्जायेमान होगा। न तो वहां दुःख होगा, न ही आंसू होंगे। हर तरफ अलौकिक आभा बिखरी होगी । रोते तो पृथ्वी के कमज़ोर लोग हैं। मैं भी कभी-कभी रोती हूँ। लेकिन दिल भर कर रोने के बाद दोगुनी ऊर्जा के साथ जगमगाते तारों भरे आकाश को मुट्ठी में समेटने की कोशिश में पुनः लग जाती हूँ। आभार। .

दीपक 'मशाल' ने कहा…
बढ़िया रचना जन्मदिन पर आपकी शुभकामनाओं ने मेरा हौसला भी बढाया और यकीं भी दिलाया कि मैं कुछ अच्छा कर सकता हूँ.. ऐसे ही स्नेह बनाये रखें..