एक दिन आफिस से घर लौटते हुए एक कॉफी शॉप पर कुछ युवा मदहोश व नशे में डूबे हुए मदमस्त आधुनिकता कि आड़ में घिरे युवाओं की आज की जिन्दगी का सच देखर कुछ पंक्तियाँ उम्मीद है पसंद आये ........!!
कॉफी हाउस में बैठा
आज का युवा वर्ग
मदहोश,मदमस्त,बेखबर
कर्म छोड़ कल्पना से
संभोग करता हुआ
निराशा को गर्भ में पालता हुआ
मायूसियो को जन्म दे रहा है
तो ऐसे कंधो पर
देश का बोझ
कैसे टिक पायेगा ?
जो
जो
या तो खोखले हो गये है
या जिनको उचका लिया गया है
पर आज के युवा को विसंगतियों में
भटक जाना स्वाभाविक है
पर ए - दोस्त
अब बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं
कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढ़ी आँखों से.........!!
-- संजय भास्कर