आने वाले दिनों में जब
हम सब
कविता लिखते पढ़ते बूढ़े
हो जायेंगे !
उस समय लिखने के लिए
शायद जरूरत न पड़े
पर पढ़ने के लिए
एक मोटे चश्मे की
जरूरत पड़ेगी
जिसे आज के समय में हम
अपने दादा जी की आँखों पर
देखते है !
तब पढने के लिए
ये मोटा चश्मा ही होगा
अपना सहारा
आने वाले दिनों में
देखता हूँ यह स्वप्न
मैं कभी - कभी
क्या आपको भी
ऐसा ही
ख्याल आता है कभी !!
-- संजय भास्कर
21 टिप्पणियां:
हाँ कुछ कहीं जरूर होगा। कौन सी इन्द्री साथ देती है कौन सी रूठती है समय के जाल में है :)
हां ,जरूर आता है उम्र के साथ ये तो होगा ही ,और आज के युग में तो कुछ जल्दी ही हो रहा हैं ,ख्याल अच्छा है आप का
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 30 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन तीसरा शहादत दिवस - हवलदार हंगपन दादा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
बहुत सही...., चश्मा भी आएगा और भी ना जाने कितनी ही आदतें बदल जाएंगी । चिन्तनपरक सृजन :-)
रोचक
हमारे तो कदम उधर ही बढ़ गए..जो भी होगा अच्छा होगा।
सार्थक।
चश्मा नज़र की हो या न हो पर नज़रिये का जरूर होना चाहिये
चश्मा ही आगे दुनिया दिखाएगा कुछ नज़र आए या न आए आँखों पर मोटा चश्मा जरूर नजर आएगा बेहतरीन प्रस्तुति संजय जी
रोचक!! कभी कभी ऐसे ख्याल आते तो हैं मन में....
रोचक विचार संजय जी...उम्र के साथ मन की आँखें निर्मल, स्वच्छ और तन की आँखें कमजोर हो जाती हैं।
पढ़ाकू नामकरण हो जाता है.. इक उंगली ज्यादा व्यस्त हो जाती है , संतुलित करने में नाक तक खिसक आती है जब...
सुंदर लेखन
प्रभावशाली रचना
बढिया प्रस्तुति।
हाँ प्रिय संजय -- मैं भी सोचती हूँ -- ये आजकल के जीवन की शाश्वत सच्चाई है | इसका सामना साहस से किया जाना चाहिए ना कि परेशान होकर | जब छोटे छोटे बच्चे चश्मे को सहर्ष [ अपनी मज़बूरी में ] अपना रहे हैं तो एक उम्र के बार हमें भी इस के लिए तैयार रहना चाहिए | हल्की फुल्की रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
बहुत सुन्दर कविता।
यथार्थपरक हृदयस्पर्शी रचना
सही कहा आप ने, बहुत ही सुन्दर
प्रणाम
सादर
बढ़ीया रचना
डराइये मत।
Very nice...
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