( चित्र गूगल से साभार )
बीज बो गए विषमता के
आज यहाँ सापों की खेती उग आई है
क्यारी को फिर से सँवारो
बीज नए डालो प्यार के हमदर्दी के,
मेड़ें मत बाँधो
लकीर मत बनाओ अपनों के
बीच में
मत करो देशका विभाजन
जातिवाद और धरम के नाम पर
क्योकि धरती सबकी है
देश सबका है !!
- संजय भास्कर
18 टिप्पणियां:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रस्किन बांड और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
वाह्ह..।बहुत सुंदर संदेश दिया है आपने, समसामयिक परिप्रेक्ष्य में। काश कि हम समझ पाते जाति और धर्म से बढ़कर मानवता है।
सुंदर रचना संजय जी।
बहुत बढिया पोस्ट, शुभकामनाएं।
जानिए क्या है बस्तर का सल्फ़ी लंदा
संजय जी , बहुत खूबसूरत....., वसुधैव कुटुंबकम् के भाव को पोषित करती हृदयस्पर्शी रचना ।
आज के माहौल में भाईचारे और प्रेम का सुंदर संदेश देती भावपूर्ण रचना..
जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 22/05/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
देश सबका है और सभी को सोचना जरूरी है ...
सार्थक सन्देश चुओया है आपकी रचना में ..
बहुत सुन्दर संदेश देती रचना....
वाह!!!
उचित बात,साफ शब्द। बेबाक रचना।
विभाजन करना ही है तो
इंसानियत का धार्मिक -कचरापेटी से करो
प्रिय संजय जी -- बेहद सार्थक संदेश है रचना में | काश !फिरकापरस्त ये बात समझपाते !
भेदभाव को मिटाकर एकजुट होने का, साथ ही गद्दारों से सावधान रहने का संदेश देती यह रचना, राष्ट्रप्रेम की उदात्त भावना को अभिव्यक्त करती है। बधाई।
संजय जी,राष्ट्रप्रेम का संदेश देती बहुत ही सुंदर रचना।
अच्छा संदेश ।
सब नेताओ की करामात है भाइ
बहुत सुंदर संदेश देती सुंदर कविता
बहुत सार्थक भावाभिव्यक्ति ।शुभकामनाएँ संजयजी ।
सुंदर संदेश देती रचना
बहुत सुन्दर संदेश
बहुत सुंदर
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