अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती। शहर में आजकल वो बात ही नहीं पर पर अभी कुछ साल पहले तक जब भी जब गाँव जाता था देखा करता था हर सुबह दादी और चाची आंगन में चावल साफ़ करती है तो आंगन की मुंडेर पर कुछ गौरैया अपने आप ही मंडराने लगती है और चाची के थाली लेकर हटते ही गौरैया आंगन में बिखरे चावलों पर टूट पड़ती थी पर अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती !
बटेर अब कभी-कभार ही दिखते है। वनों की कटाई और वन क्षेत्र में बढ़ते मानवीय दखल से पंछियों की दुनिया प्रभावित हुई है और पंखों वाली कई खूबसूरत प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है !
'मसूरी की पहाड़ियों की सैर करने वाले सैलानियों के लिए बटेर एक खास आकर्षण होती थी। अब कभी कभार ही यह बटेर नजर आती है। यह लुप्त होती जा रही है। हर घर के आंगन में गौरैया को फुदकते हुए देखा जाता था। आज गौरैया नजर नहीं आती....!!!
( c) संजय भास्कर
51 टिप्पणियां:
बढ़िया भावुक रचना लेखन व संदेश संजय भाई धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन - घरेलू उपचार ( नुस्खे ) -भाग - ८
बीता प्रकाशन - जिंदगी हँसने गाने के लिए है पल - दो पल !
waah sundar likha bhai
सच में गुम हो गयी है आँगन की चहक .....
विचारणीय और सार्थक पोस्ट।
मेरे आँगन में रोज दर्जनो आती हैं :) आजकल बच्चे भी हो रहे हैं सुबह से चीं चीं शुरु कर देती हैं
बाज भी ले जाता है एक दो कभी कभी :(
यहाँ गुजरात में भी दिखती हैं!! मगर कम ज़रूर हो गयी हैं!!
सार्थक ....
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन 'ह्यूमन कंप्यूटर' और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मानवी तृष्णा खिलौनों जैसे सुन्दर प्राणियों के लिए काल बन गई है !
प्राकृतिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन का चिंतन ही इन्हें बचाने के लिए प्रेरणादायी होगा । उत्तम पोस्ट हेतु आभार ।
निर्मल मन से उपजी बहुत कोमल अभ्व्यक्ति
बहुत सुन्दर भाई संजय भास्कर जी।
जाने क्या क्या खोने वाले हैं हम ... और ये सब इंसानी भूख के कारण ही होने वाला है ... कई बार खुद को इंसान कहने में शर्म आती है ...
सच ही लिखा है आपने. गौरैया अब यहाँ भी दिखाई नहीं देती। कुछ वर्ष पहले तक घर-आंगन में फुदकने वाली गौरैया न जाने कहाँ गुम हो गयी है। मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं। गौरैया महज एक पक्षी नहीं है, ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो आनेवाली पीढ़ियों को यह शायद ही देखने को मिले।
sab pradushan ki bhent chadh gai ......bahut sundar prastuti .....
सच कहा आपने अब वो चहचहाहट देखने और सुनाने को कम मिलती है
पता नहीं क्यूँ नाराज हो गए हैं ये नन्हे मेहमान
सही कहा
विचारणीय तथ्य सामने रखा है आपने ....
विकास की दौड़ में हम कितना कुछ खोते जा रहे हैं...
सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति
दुखदायी है , गौरैया का खो जाना ! मंगलकामनाएं संजय !
दुखदायी है , गौरैया का खो जाना ! मंगलकामनाएं संजय !
हमारे आँगन में तो खूब हैं गौरैया.....
पानी भरे कसेरों में फुदकती....
:-)
अनु
अब छोटे छोटे शहरों से भी गौरैया लुप्त हो चुकी है, गाँव में तो फिर भी दिखती है. महानगरों में तो पुरी तरह से मिट गया है उनका अस्तित्व.
sanjay ji,jahan tejabi dhup chhawn ho wahan samvedanshil prani ka basera mumkin nahi.ham jaise kalamkaron ko dekhiye chinar ke chhanw tale dhup lagti hai,kyon?
True, we don't see that many birds now. :(
संजय भाई बहुत बहुत शुक्रिया आपकी टिप्पणी का ,टूटे पर्यावरण पारितंत्रों की खबर देती रही है गौरैया आखिर आखिर तक विलुप्त प्राय :होने से पहले। बढ़िया रचना पृथ्वी दिवस के अनुरूप।
मनन कराता संदेश..
सच है गौरैया कहीं गुम हो गई है और गुम हो गया है रुंझुन मधुर संगीत ची ची भी
आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
हमारे यहाँ भी फुदकने लगी है गौरैया... लगता है रूठी चिड़िया मान गईं हैं .... सार्थक सन्देश … शुभकामनायें
आज के समय की सबसे ज्वलंत समस्या है ये...
बहुत सुंदर. कंक्रीट के घने जंगलों में खो गई है गोरैया.
नई पोस्ट : मूक पशुएं और सौदर्य प्रसाधन
वाकई अब गोरैया भी डरने लगी है,यह दुखद है
बहुत खूब लिखा
बधाई सार्थक सोच के लिये
आग्रह है----
और एक दिन
आईये पहाड़ ...फिर देखिये ...गौरेया ही गौरेया ...
sach kaha panchhi lupt hote ja rhe hain kuchh pedon ki katai aur kuchh hamne jo ye apni suvidha ke liye mobile ke tower lagaye hain vaigyanik kehte hain unki kirnon se prajnan khshamta khatm hoti ja rhi hai.
sunder lekh
shubhkamnayen
सच में कहां गुम हो गईं गौरैया ?
जी संजय भाई कुदरत से छेड़छाड़ महंगी पड़ सकती है हमें ..इस मामले में हम अब भी भाग्यशाली हैं की पहाड़ों में हिमाचल में गौरैया अब भी साथ साथ फुदकती नजर आती हैं ..सार्थक सन्देश
भ्रमर ५
गौरैया संकट में है। कुछ वर्षों बाद कहीं ये दुर्लभ पक्षी की श्रेणी में न आ जाए, प्रकृति प्रेमी चिंतित हैं !
Very thoughtful post! And your words create lovely imagery...:)
सच में गौरैया संकट में है । महानगरों में ये अब लुप्तप्रायः ही हो गयी हैं । और उन नगरों में जो तथाकथित विकास की ओर उन्मुख हैं वहाँ भी इनका अस्तित्व खतरे में हैं ।
आपने जो लिखा वह वाकई में सार्थक है यदि इसमें निहित प्रश्न के हल के विषय में हम सभी कोई कदम उठा सकें । सादर ।
साथ ही आशा बिष्ट जी से सहमत हूँ कि पहाड़ो में अभी दिखाई जरूर पड़ती हैं । मगर उनकी संख्या में निरंतर कमी ही हुई है और साथ ही यह भी कहूँगा कि "धनेर" सरीखे पक्षी अब पहाड़ों में बचे नहीं हैं ।
सादर
सादर
सच में गौरैया संकट में है । महानगरों में ये अब लुप्तप्रायः ही हो गयी हैं । और उन नगरों में जो तथाकथित विकास की ओर उन्मुख हैं वहाँ भी इनका अस्तित्व खतरे में हैं ।
आपने जो लिखा वह वाकई में सार्थक है यदि इसमें निहित प्रश्न के हल के विषय में हम सभी कोई कदम उठा सकें । सादर ।
साथ ही आशा बिष्ट जी से सहमत हूँ कि पहाड़ो में अभी दिखाई जरूर पड़ती हैं । मगर उनकी संख्या में निरंतर कमी ही हुई है और साथ ही यह भी कहूँगा कि "धनेर" सरीखे पक्षी अब पहाड़ों में बचे नहीं हैं ।
सादर
सादर
संजय जी
सार्थक रचना के लिए आपको साधु वाद ......
सही कहा संजय जी। वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया है। सुबह शाम चिड़ियों की चहचाहट जो वर्षों पहले सुनायी देती थी, अब कहाँ!
sach me kitna kuch badal gya hai. Bahut achha likha hai aapne. Mujhe bhi Hindi me likhne ke liye prerit krne ke liye shukriya...
Very true ... the beauties of nature are fast diminishing, and that's really sad.
क्या बात है। प्रेरक
क्या बात।
pradushan aur manav key shoshan ke karan prakriti vilupt hoti ja rahi hai..
Adhunikta samay ke saath bahut kuch aur nilaglegi.
मेरे गाँव में आँगन में गौरैया आती है .... चहकती रहती है ...इधर से उधर फुदकती फिरती है ...पर उनकी आँखों में जैसे एक अजीब सी मायूसी है ...जैसे वो मुझसे कुछ कहना चाहती हो .. जब भी शहर जाता हूँ गौरैया दिखाई नहीं देती ....और तब पता चलता है की मेरे गाँव में गौरैया मुझसे क्या कहना चाहती थी ... इसके ऊपर मेरा एक पुराना हाइकु ...
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सीमेंट का जंगल
बूढ़ी गोरैया
-विशाल सर्राफ धमोरा
बचपन की याद दिला गई आपकी यह रचना .
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