ऐसी खुशी नहीं चाहता
जो किसी का दिल दुखाने से मिले,
हंसी ऐसी नहीं चाहता जो किसी को रुलाने से मिले
उस दौलत का क्या करना जो अपनों से कर दे दूर,
जो जाने-अंजाने पैदा कर देती दिल में गुरूर |
सर ढकने को छत हो
खाने को रोटी हो भूखे पेट कोई सोये ना ,
नहीं चाहिए वो राम जो इंसानों में फर्क करे
आपस में बैर व धरती को नरक करे
कब आएगा वो दिन
जब उंच- नीच ख़तम होगा मानव सभी की जात होगी,
मानवता ही धरम होगा रोते हुये को हँसाना सबसे बड़ा करम होगा
मिलेगी ख़ुशी इस मन को तभी जब सारी दुनिया एक समान होगी..............!!!!
चित्र - गूगल से साभार
@ संजय भास्कर