आने वाले दिनों में जब हम सब |
| कविता लिखते पढ़ते बूढ़े |
| हो जायेंगे ! |
| उस समय लिखने के लिए |
| शायद जरूरत न पड़े |
| पर पढने के लिए एक मोटे चश्मे की |
| जरूरत पड़ेगी |
| जिसे आज के समय में हम |
| अपने दादा जी की आँखों पर |
| देखते है ! |
| तब पढने के लिए |
| ये मोटा चश्मा ही होगा |
| अपना सहारा |
| आने वाले दिनों में |
| देखता हूँ यह स्वप्न |
| मैं कभी - कभी |
क्या आपको भी
ऐसा ही
ख्याल आता है कभी ........:)
ख्याल आता है कभी ........:)
@ संजय भास्कर
